एसिड अटैकः क्या करें जब जिंदगी जहन्नुम बन जाये
अरूणिमा की कलम सेः यू तो समाज में महिलाओं पर तरह तरह से हमले हुआ करते हैं। रेप, गैंगरेप, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, खरीद फरोख्त के बहाने महिलाओं का स्वाभिमान पुरूष के पैरों तले रोजाना रौदा जात है। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा भयानक और दर्द देने वाला है एसिड अटैक। घटना के बाद सिर्फ शरीर नही जलता बल्कि पूरी जिंदगी जहन्नुम बन जाती है।
हमारे शरीर के किसी भाग में एक छोटा सा दाग, कील मुँहासे या छोटी सी चोट का निशान लग जाये तो हम उसे हटाने के लिए क्या क्या प्रयास करते हैं। एक औरत जिसके चेहरे पर हल्की झाइयाँ पड़ जाय तो वह दुनिया के सारे सौंदर्य नुस्खे खोज निकालती है। अब सोचिये कि छोटी सी झाई या चोट के दाग को छुपाने के लिए हमने क्या क्या नही किया जो भी मिला उससे ही नुस्खे पूछे। लाखो रुपये उपचार में खर्च कर दिया। अब उस महिला के विषय में विचार कीजिये जिसका पूरा चेहरा, शरीर तेजाब से जला दिया जाता है। कभी कभी तो इन हमलों में गले, आंख, कान व वक्ष स्थल इस तरह जख्मी हो जाते है कि पीड़िता को पूरे जीवन अंधे, बहरे, गूंगे व स्तन विहीन होकर गुजारना पड़ता है। तेजाबी हमले के समय हुई असहनीय पीड़ा व पूरे जीवन घुट घुट के जीने को मजबूर करने वाली इन घटनाओं पर आज भी समाज गम्भीर नही है।
अब तक के आंकड़ो पर अगर गौर करे तो अधिकतर हमले ऐसे मिले हैं जिसमे पीड़िता किसी स्कूल या कॉलेज की छात्रा थी या शादी से पहले कही नौकरी कर रही थी। अब यह घटना उस वक्त और भी गंभीर हो जाती है जब पीड़िता अभी अविवाहित है और उसका पूरा जीवन बचा हुआ है। सोचने पर ही भावनाएं हमारी आत्मा को झकझोर देती हैं, ऐसी लड़की जिसके चेहरे को कोई देखना नहीं चाहता है। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं, समाज उलाहना देता है, बच्चे डर के मारे डायन और चुड़ैल का नाम देते हैं, यहां तक की एसिड अटैक से पीड़ित महिला खुद को आईने में देखकर घबरा जाती है। ऐसी घुटन भरी जिंदगी को जीना कितना कठिन और दुश्वारियों भरा होगा। कुंठित पुरुषवादी समाज के लिए महिलाओं को जिस्मानी और दिमागी तकलीफ देना कोई नई बात नहीं है। तेजाबी हमले पर शुरुआती दौर में कानून को भी समझ में नहीं आया होगा कि किस धारा के अंतर्गत मुजरिमों को सजा दी जाए।
आज तेजाबी हमले से बहुत सी लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है, बहुतों ने ऐसे हमले में अपनी जान गवा दी है, उसने समाज के भयावह रूप को देख कर आत्महत्या कर ली तो बहुत लड़कियों व महिलायें जिंदा लाश बनकरं अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं। इन वारदातों से सीख लेकर समाज को सोचना चाहिए कि महिलाओं के प्रति हमारी सोच कहां जा रही है ? हम अपनी कुंठा, अपनी हवस, अपनी जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने के लिए समाज में किस ओर बढ़ रहे हैं ? हमारी बढ़ती जा रही कुंठित मानसिकता और इंसानी हैवानियत का परिणाम भविष्य में क्या होगा ? हम आने वाली पीढ़ी को सौगात में क्या दे रहे हैं ? क्या हम लगातार बढ़ रहे स्त्रीवादी पुरुष विरोधी सोच के जिम्मेदार बन रहे हैं ? क्या महिलाओं पर हो रहे लगातार दुष्कर्म महिलाओं के मन मस्तिष्क पर पुरुषों के खिलाफ जहर भर रहे हैं ? इन सभी प्रश्नों को अब हमें गंभीरता से सोचना होगा क्योंकि समाज स्त्री पुरुष और नपुंसक इन तीनों के आपसी सामंजस्य पर बना है।
बात करते हैं कि ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं? जब तक की घटनाओं को पता लगाते हैं तो पता चलता है की घटनाओं की जो वजह थी वह बहुत ही निम्न कोटि की है। जैसे प्यार को ठुकराना, सुंदरता पर घमंड, पुरानी बात का बदला, दहेज, नफरत, आपसी नोक झोंक आदि छोटी-छोटी वजहो ने किसी को जिंदगी भर के लिए अभिशाप बना देता है। अंत में मैं उन महिलाओं के साहस को सलाम करती हूं जिन्होंने हमले का जवाब अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करके दिया है। जिंदगी की नई शुरुआत ऐसा जघन्य कार्य करने वाले लोगों के मुंह पर जोरदार तमाचा है, क्योंकि वह हमले से पहले महिलाओं को कमजोर व लाचार समझते हैं। अच्छा हो कि इन हमलों को रोकने के लिए कठोर कानून बने और कड़ी सजा का प्रावधान हो। पीड़िता के लिए सरकार की तरफ से इलाज प्लास्टिक सर्जरी आदि की व्यवस्था हो और उनके पुनर्वास के लिए सरकार समाज सभी लोग आगे आएं। जिससे पीड़िता को दोबारा जीवन जीने में कुछ मदद मिल सके और उनके पुनर्वास में समाज की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।