• Subscribe Us

logo
29 मार्च 2024
29 मार्च 2024

विज्ञापन
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।
साक्षात्कार शख्सियत / व्यक्तित्व / लेख

कहानीः ‘तन, मन, धन‘

Posted on: Sat, 25, May 2019 7:49 PM (IST)
कहानीः ‘तन, मन, धन‘

इंगेजमेंट हो जाने के बाद देवेश और देविका दोनों एक दूसरे से मिलने-जुलने लेते थे। दोनों ही समान गुणवान व योग्य थे, देवेश बी0 एड0 करके गवर्नमेंट टीचर की तैयारी में था और देविका बी0एड0 के अंतिम वर्ष में थी। देविका सामान्य परिवार से सम्बंधित थी जबकि देवेश बहुत ही धनाढ्य परिवार से था, वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, उनके पिता जी बहुत बड़े विजनेस मैन थे। यद्यपि यह रिस्ता देवेश की पसंद से ही तय हुआ था, वे दोनों एक दूसरे को जानते थे, इसलिए बहुत ज्यादा दहेज की माँग नहीं थी।

देविका की माँ कहती थी कि मेरी बेटी बहुत भाग्यशाली है क्योंकि इसका विवाह बहुत ही बड़े घर में हो रहा है और लड़का भी बहुत होनहार है। एक दिन देविका देवेश से कहती है कि अगर तुम्हारी नौकरी लग गई तो तुम बदल तो नहीं जाओगे, क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करने लगी हूँ, अब तुमसे अलग होना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल होगा। इस पर देवेश कहता है देविका तुम्हें क्या लगता है कि सिर्फ तुम्हीं मुझसे प्यार करती हो, मैं नहीं ? अरे मैं भी तो तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तो बहुत पहले से ही पत्नी के रूप में तुम्हारी कल्पना करता था।

एक महीने बाद देवेश सरकारी अध्यापक बन जाता है इस कारण कई बड़े घरानों से रिश्ते आने लगते ते हैं, एक बहुत सुंदर लड़की व उसके साथ खूब सारा धन मिलने के कारण देवेश के पापा राजी हो जाते हैं कितुं हाँ करने के पहले देविका की माँ से बात करते हैं कि वह दहेज और बढ़ाए साथ ही कार भी देनी होगी क्योंकि बेटा अब सरकारी नौकर हो गया है। अभी तक तो कुछ नहीं मांगा था मगर अब बेटा स्वयं इस लायक है अन्य जगहों से मुँह मांगा धन मिल रहा है।

यह सुनकर देविका की माँ रोने लगती हैं और कहती हैं कि मैने तो पहले ही अपनी व्यवस्था बता दी थी, मेरे पास इतना कहाँ है ?

इस पर देवेश के पापा कहते हैं अगर नहीं है तो मत करो विवाह अपने बराबरी में रिश्ता ढूंढो। हमें क्षमा करो, अब यह रिश्ता हम नहीं कर पायेंगे, इतना कह कर चले जाते हैं और अन्य जगह रिश्ता तय कर लेते हैं। कुछ लोग देविका की माँ को सलाह देते हैं कि वह पुलिस की सहायता से विवाह कर सकती हैं। क्योंकि इंगेजमेंट हो चुकी है अब दहेज माँग रहे हैं ऐसा बता दीजिए तो वो लोग विवाह करने के लिए विवश हो जाएंगे। लेकिन देविका मना कर देती है यह कहकर की कोई ज़रूरत नहीं, मैं इतनी गिरी नहीं जो किसी भी दबाव से विवश करके विवाह करूँ।

अगले दिन देविका-देवेश से कहती है कि हमें खुशी है कि तुम सरकारी सर्विस में हो गए मगर अफसोस है कि तुम सच में बदल गए। देवेश कहता है कि समय के साथ सभी बदल जाते हैं, इसमें आश्चर्य क्या ? तुम भी बदल जाओ क्योंकि तुम्हारे घरवालों की इतनी औकात नहीं कि हमसे विवाह कर सके, इसलिए अब तुम मुझे भूल जाओ, मैं तुम्हें तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य हेतु शुभकामनाएं देता हूँ। देविका चुपचाप अपने घर लौट आती है। देविका विद्यालय खोलने के सपने को पूरा करने का संकल्प लेती है।

समय बीतता है देविका का कालेज बहुत तरक़्क़ी कर जाता है, सरकार के द्वारा विद्यालय को मान्यता प्राप्त हो जाती है।

3 वर्ष पश्चात देवेश जिस कालेज में टीचर है उसमें एक समर कैंप का आयोजन किया जाता है जिसमें विभिन्न कलाओं जैसे खेल-कूद, लेखन आदि के सेमिनार आयोजित होने थे। कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में सीपी मेमोरियल इंटर कॉलेज की प्रबन्धक देविका जी मंच पर उपस्थित थी। सभी शिक्षकों ने उनका माल्यार्पण कर स्वागत किया, काँपते हांथो में माला लिए देवेश भी पहुंच जाता है कितुं वह कुछ सोच में उलझा हुआ खड़ा था तब तक देविका ने उसके हाथों से माला देविका ने उसके हाथों से माला लेकर देवेश को ही पहना दिया।

अब वह तो और भी शर्म से डुब गया और देविका के कदमों में झुकने चला कि देविका ने उसे झुकने से रोक लिया और कहा नहीं देवेश तुम्हारा स्थान मेरे कदमों में कभी नहीं हो सकता, अरे मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती, मैने तुम्हें सच्चा प्रेम किया है, तुम्हारी जगह तो मेरे मन में है, तुम आज भी मेरे मन के देवता के रूप में हो इसलिए आपके कदमों में, मैं हो सकती हूँ आप नहीं। दृश्य असामान्य हो गया था सभी लोग आश्चर्य से देख रहे थे। देवेश हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा और कहने लगा, देविका आज मुझे एहसास हो रहा है कि मैने सिर्फ देविका को ही नहीं ठुकराया बल्कि एक सच्चे मन की देवी को ठुकरा दिया था। इस कारण मैं तो आपसे बात करने योग्य भी नहीं हूँ।

देविका ’’नहीं देवेश तुम कल भी योग्य थे आज भी योग्य हो। तुम सरकारी नौकरी के अहंकार में मुझे छोटी औकात का बता के ठोकर मार दी थी, तुमने मेरे मन के सच्चे प्रेम को छोड़कर सुंदर तन और अधिक धन को चुन लिया था। तुम सफल हुए थे तो अहंकार से हार गए थे, कितुं मैने अपनी सफलता से अहंकार को ही हरा दिया। शायद इसी कारण आज तुम्हें झुकने नहीं दिया यह जानते हुए कि तुमने मुझे जलील किया था। देवेश ’’हो सके तो मन से हमें माफ कर देना क्योंकि मेरे पास क्षमा शब्द के सिवाय कुछ नहीं है, मैं निशब्द हूँ। अंत में देविका कहती है मैं आप सबके बीच में एक बात कहना चाहूँगी कि समय बदलने से मनुष्य को नही बदलना चाहिए और ना ही रूप, धन के कारण मन के रिश्ते को तोड़ना चाहिये। तन मन धन में सदैव सच्चे मन को ही चुनना चाहिए। इतना कहकर देविका चली जाती है। लेखिका-एडवोकेट तृषा द्विवेदी ’मेघ’ उन्नाव, उ.प्र.


ब्रेकिंग न्यूज
UTTAR PRADESH - Basti: बस्ती में राष्ट्रीय शोषित समाज पाटी नेताओं का जमावड़ा 31 को