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Uttar pradesh

भाजपा विधायक खब्बू तिवारी सहित तीन को 5-5 साल की जेल

Posted on: Mon, 18, Oct 2021 10:05 PM (IST)
भाजपा विधायक खब्बू तिवारी सहित तीन को 5-5 साल की जेल

अयोध्या ब्यूरो (प्रभाकर चौरसिया) यूपी के अयोध्या से बड़ी खबर है। यहां फर्जी अंक पत्र के आधार पर महाविद्यालय में प्रवेश लेने के मामले में विशेष न्यायाधीश पूजा सि‍ंह ने गोसाईंगंज से भाजपा विधायक इंद्रप्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी, साकेत महाविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष फूलचंद यादव व चाणक्य परिषद के संरक्षक कृपानिधान तिवारी को पांच-पांच साल जेल की सजा सुनाई है।

1992 में दर्ज मामले की चार्जशीट 13 साल बाद अदालत भेजी गई। अदालत में मुकदमे की पत्रावली से कई मूल दस्तावेज भी गायब हो गए। सभी दस्तावेजों की द्वितीय प्रतियां तैयार कराकर सुनवाई आगे बढ़ाई गई। केस परीक्षण के दौरान वादी यदुवंशराम त्रिपाठी की मौत भी हो गई। साकेत महाविद्यालय के तत्कालीन अधिष्ठाता महेंद्र कुमार अग्रवाल, गोपनीय कार्यालय के रामबहादुर व अन्य गवाहों ने अदालत में गवाही दी।

अदालत ने तीनों अभियुक्तों को कूटरचना के आरोप में पांच-साल की जेल व आठ-आठ हजार रुपये जुर्माना तथा धोखाधड़ी के मामले में तीन-तीन साल की जेल व छह-छह हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है। साकेत महाविद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य यदुवंश राम त्रिपाठी ने 18 फरवरी 1992 को रामजन्मभूमि थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। प्राथमिकी के मुताबिक खब्बू तिवारी ने 1990 में बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा अनुत्तीर्ण होने पर फर्जी अंकपत्र के आधार पर अगली कक्षा में प्रवेश ले लिया। इसी तरह फूलचंद यादव ने 1986 में बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा अनुत्तीर्ण होने पर तथा कृपानिधान तिवारी ने 1989 में विधि प्रथम वर्ष की परीक्षा में फर्जी अंकपत्र के आधार पर अगली कक्षा में प्रवेश ले लिया।

हैरानी की बात

देर से न्याय मिलना न्याय न मिलने के बराबर है। न्याय मिलने में देरी से देश के नागरिकों की हालत बदतर होती जा रही है। जिन मामलों के निस्तारण 3 दिन में हो सकते हैं उनमे 30 साल लग रहे हैं। अनेकों मामलों में वादी की मौत हो जाती है। देश की न्यायिक व्यवस्था 130 करोड़ देशवासियों पर भारी पड़ रही है। मामूली केस में अदालत को फैसला लेने में 29 साल का समय लगा। खास मामलों में तो फैसले का इंतजार करते करते पीढ़िया खत्म हो जायेंगी। हैरानी की बात ये है कि न तो इस समस्या को मीडिया उठाता है और न जनता। जन प्रतिनिधियों और सरकारों का क्या है देश में नागरिकों को जिंदा रहने का अवसर देना क्या किसी अहसान से कम है।




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