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जीते-जी मिथक बन चुके थे महाकवि निराला

Posted on: Tue, 24, Jan 2023 9:36 PM (IST)
जीते-जी मिथक बन चुके थे महाकवि निराला

बस्ती। मंगलवार को प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला के संयोजन में कलेक्ट्रेट परिसर में महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की जयन्ती के परिप्रेक्ष्य में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ चिकित्सक एवं साहित्यकार डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि वसंत पंचमी की बात चले और सरस्वती पुत्र निराला की याद न आए, यह संभव नहीं।

‘वर दे वीणा वादिनी’ का महाघोष करने वाला यह महाकवि अपनी अमर वाणी से हिंदी कविता में अमर हो गया। उनकी रचनाओं में जहां वसंत का उल्लास है तो ‘सरोज स्मृति’ की पीड़ा भी। वसंत के कुछ पहले ही चीनी सेना का भारत पर आक्रमण हुआ था और निराला ‘तुलसीदास’ से होते हुए ‘राम की शक्तिपूजा’ तक जा पहुंचे थे। वे युगों तक याद किये जायेंगे। साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि महाकवि निराला के इतने किस्से हैं कि वे जीते-जी मिथक बन चुके थे।

निराला जयन्ती के परिप्रेक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में डा. श्याम प्रकाश शर्मा, बी.के. मिश्र, बाबूराम वर्मा, आदि ने कहा कि निराला जी का जीवन उनके ही शब्दों में कहें तो दुःख की कथा-सा है। तीन वर्ष की आयु में उनकी माँ का और बीस वर्ष के होते-होते उनके पिता का देहांत हो गया। पहले महायुद्ध के बाद फैली महामारी में उनकी पत्नी मनोहरा देवी का भी निधन हो गया। इस महामारी में उनके चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। इन झंझावतों के बीच भी निराला अपने लक्ष्य पर अडिग रहे। गोष्ठी में मुख्य रूप से अजमत अली सिद्दीकी, पेशकार मिश्र, सुशील सिंह पथिक, दीपक सिंह प्रेमी, सागर गोरखपुरी, राहुल यादव, राघवेन्द्र शुक्ल, दिनेश सिंह, दीनानाथ यादव, हरिश्चन्द्र शुक्ल आदि उपस्थित रहे।




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