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कृषि/बागवानी

मूली की उन्नत खेती से लाखों कमायें

Posted on: Sun, 29, Oct 2017 10:37 PM (IST)
मूली की उन्नत खेती से लाखों कमायें

भारत में मूली की खेती वर्षभर की जाती है। यह बीज बोने के 1 महीने बाद तैयार हो जाती है। मूली की फसल से 2 महीने बाद खेत खेत खाली हो जाता है। मूली की खेती ठंडे इलाकों से ले कर ज्यादा तापामन वाले इलाकों में भी की जा सकती है, लेकिन ज्यादा तापमान वाले इलाकों में मूली की फसल कठोर और चरपरी होती है. मूली की खेती के लिए रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी उम्दा होती हैं। मटियार जमीन में इस की खेती करना फायदेमंद नहीं होता है क्योंकि उस में मूली की जड़ें सही तरीके से बढ़ नहीं पाती है। मूली के लिए ऐसी जमीन का चयन करना चाहिए, जो हलकी भुरभुरी हो और उस में जैविक पदार्थों की भरपूर मात्रा हो। मूली के खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए, क्योंकि उन से जड़ों की बढ़वार रुक जाती है।

खेत की तैयारीः मूली की फसल लेने के लिए खेत की कई बार जुताई करनी चाहिए. पहले 2 बार कल्टीवेटर से जुताई कर के पाटा लगा दें, उस के बाद गहरी जुताई करने वाले हल से जुताई करें। मूली की जड़ें जमीन में गहरे तक जाती हैं, ऐसे में गहरी जुताई न करने से जड़ों की बढ़वार सही तरीके से नहीं हो पाती है।

मूली की उन्नत किस्में : मूली की फसल लेने के लिए ऐसी किस्म का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ठ हो. मूली की रैपिड रेड, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी, पूसा हिमानी, हिसार मूली नंबर 1, पंजाब सफेद व व्हाइट टिप वगैरह किस्मों को अच्छा माना जाता है। मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त तक आसानी से की जा सकती है. वैसे मूली की तमाम ऐसी किस्में तैयार की गई हैं, जो मैदानी व पहाड़ी इलाकों में पूरे साल उगाई जा सकती हैं. पूसा चैतकी, पूसा देसी व जापानी सफेद वगैरह किस्में ऐसी हैं, जिन्हें साल भर उगाया जा सकता है। मूली की 1 हेक्टेयर खेती के लिए करीब 10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है। बारिश के मौसम में मेंड़ बना कर इस की बोआई की जाती है, जबकि दूसरे मौसमों में इसे समतल जमीन में भी उगाया जा सकता है। अगर मूली की फसल मेड़ों पर ली जा रही है, तो मेंड़ों से मेंड़ों की दूरी 45 सेंटीमीटर व ऊंचाई 22-25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

खाद व उर्वरकः चूंकि मूली की जड़ें सीधे तौर पर इस्तेमाल की जाती है, लिहाजा इस में कम से कम रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाना ठीक माना जाता है. मूली की बोआई से पहले ही मिट्टी में 120 क्विंटल गोबर की खाद व 20 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए। इस के अलावा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिलानी चाहिए।

सिंचाईः बारिश के मौसम में मूली की फसल को सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती है, लेकिन गरमी में 4-5 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करते रहना चाहिए. सर्दी वाली फसलों की सिंचाई 10-15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।

खरपतवार व कीटः मूली की फसल से खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए, चूंकि खरपतवारों से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है, लिहाजा हर 15 दिनों पर खेतों में उगने वाले खरपतवारों के निकाल देना चाहिए। मूली की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों में पत्ता काटने वाली सूड़ी, सरसों की मक्खी व एफिड शामिल हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सही नहीं होता है. इन कीटों की रोकथाम के लिए हमेशा जैविक कीटनाशकों का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस के लिए 5 लीटर गोमूत्र व 15 ग्राम हींग को आपस में मिला कर फसल पर छिड़काव करते रहना चाहिए। आमतौर पर मूली की फसल में कोई खास रोग नहीं लगता है, फिर भी कभी कभी इस में दतुआ रोग का हमला देखा गया है. इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा, गोमूत्र व तंबाकू मिला कर फसल को पूरी तरह से तरबतर करते हुए छिड़काव करना चाहिए।

उपज व लाभ : मूली की फसल जब कोमल हो तभी इस की खुदाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि ऐसी अवस्था में इस के दाम बहुत अच्छे मिलते हैं. बोआई के 30-35 दिनों बाद मूली की फसल उखाड़नी शुरू कर देनी चाहिए.

मूली के 1 हेक्टेयर रकबे से अलगअलग प्रजातियों के मुताबिक 100 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिलती है, जो आमतौर पर 1000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजार में आसानी से बिक जाती है. इस हिसाब से किसान को 1 हेक्टेयर खेत से करीब 3 लाख रुपए की आमदनी होती है. अगर फसल की लागत को निकाल दिया जाए तो किसान 2-3 महीने में 1 हेक्टेयर खेत से आसानी से 2 लाख रुपए की आमदनी हासिल कर सकते हैं.


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