करेले की खेती से करोडपति बने
बुआई का समयः उत्तर भारत में इसकी बिजाई फरवरी व मार्च के अलावा जून व जुलाई में की जा सकती है। 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर डाला जाता है। नालियों के बीच 1.5 मीटर एवं पौधों के बीच 1 मीटर की दूरी होनी चाहिए।
खादः 50 टन गोबर की पकी खाद खेत तैयार करते समय डालें। 125 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट या किसान खाद, 150 किलोग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश तथा फॉलीडाल चूर्ण 3 प्रतिशत 15 किलोग्राम का मिश्रण 500 ग्राम प्रति गड्ढे की दर से बीज बोने से पूर्व मिला लेते हैं। 125 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट या अन्य खाद फूल आने के समय पौधों के पास मिट्टी अच्छी तरह से मिलाते हैं।
बुआईः बीजों को नालियों के दोनों तरफ बुआई करते हैं। नालियों की सिंचाई करके मेड़ों पर पानी की सतह के ऊपर 2-3 बीज एक स्थान पर इस प्रकार लगाए जाते हैं कि बीजों को नमी कैपिलरी मूवमेंट से प्राप्त हो। अंकुर निकल आने पर आवश्यकतानुसार छंटाई कर दी जाती है। बीज बोने से 24 घंटे पहले भिगोकर रखें, जिससे अंकुरण में सुविधा होती है।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाईः फसल की सिंचाई वर्षा पर आधारित है। साधारण प्रति 8-10 दिनों बाद सिंचाई की जाती है। फसल की प्राथमिक अवस्था में निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवारों से मुक्त करना चाहिए। वर्षा ऋतु में इस फसल को डंडों या मचान पर चढ़ाना अच्छा होता है। फसल की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। करेले की फसल ड्रिप सिंचाई पर भी ले सकते हैं।
पौध संरक्षणः कीड़ेः एफिड, माइटस, रेड पमकिन, बीटिल की रोकथाम के लिए मैलाथियान एक मिली लीटर, सेविन 3 मिली लीटर प्रति लीटर या मैलाथियान या सेविन चूर्ण 5 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। नीमयुक्त कीटनाशक का छिड़काव भी कर सकते हैं।
सावधानीः रासायनिक कीटनाशी दवाएं जहरीली होती हैं। प्रयोग सावधानीपूर्वक करें। फल तोड़ने के 10 से 15 दिन पूर्व दवाओं का प्रयोग बंद कर देना चाहिए।
फल तोड़नाः सब्जी के लिए फलों को साधारणतः उस समय तोड़ा जाता है जब बीज कच्चे हों। यह अवस्था फल के आकार एवं रंग से मालूम की जा सकती है। जब बीज पकने की अवस्था आती है तो फल पीले-पीले हो जाते हैं और रंग बदल देते हैं।
पैदावारः 130 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। बीज उत्पादन के लिए प्रमाणित बीज के लिए 500 मीटर व आधारीय बीज के लिए 1000 मीटर अलगाव दूरी रखें। फल पूरी तरह पकने के बाद निकालकर बीज अलग करें व सुखाकर अपरिपक्व कच्चा बीज अलग करें। स्त्रोत : राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान नासिक, महाराष्ट्र।