मुस्कराइये, आप बस्ती में हैं

संपादकीय, 28 March. अशोक श्रीवास्तव। मुस्कराइये आप बस्ती में हैं। यहां के लोग आज से फिर उत्सव का आनंद ले पायेंगे। नृत्य संगीत का मंच सजा है और आपकी वाहवाही का इंतजार कर रहा है। अभी बस्ती महोत्सव खत्म हुये एक महीना नही हुआ, दूसरा उत्सव आ गया। इस बार अवसर है रामनवमी का। स्थान है मखौड़ा धाम जहां चक्रवर्ती राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ कर 4 पुत्र प्राप्त किये थे।
धन्य है उत्तर प्रदेश यहां ऐसी सरकार है जो येन केन प्रकारेण जनता को फील गुड का अहसास कराती रहती है। यहां उत्सवों की भरमार है। जैसे सांसद खेल महोत्सव, जिलों के नाम से उत्सव, पार्टी का स्थापना दिवस, यूपी स्थापना दिवस, सरकार के एक साल, दो साल, तीन साल पूरे होने पर मनाये जाने वाले उत्सव, अन्न उत्सव, दीप उत्सव, विवाह उत्सव इत्यादि। पूरे वर्ष उत्सव होते रहते हैं। जनता भी आनंदित है और आयोजक भी। जनता इन उत्सवों में न भी आये तो क्या, सरकारी मशीनरी पूरी तत्परता से इनके आयोजनों को सफल बनाने में लगी रहती है। जिले की आशाओं, लेखपाल, और सफाईकर्मियों से वैसे ही पंडाल भर जाता है, जनता की क्या जरूरत है।
इन उत्सवों के पीछे का सच बहुत कम लोगों को पता है। कुछ लोग दबी जुबान से कहते हैं ये उत्सव धन उगाही का जरिया बन गये हैं। दबी जुबान से क्यों ? इसलिये कि ये वसूली जनता से नही होती। ऐसे लोगों से होती है जो सरकार का ही अंग हैं और खिलाफत करने पर उनका नुकसान तय है। उत्सव इस बात का अहसास कराते हैं कि उत्तर प्रदेश में रामाराज आ गया है लोग घी के दिये जला रहे हैं, फसलों से पैदावार ऐसी कि रखने की जगह नही है और लोग खुशी में नाच रहे हैं। सच्चाई जो जान रहे हैं वे बोलने को तैयार नही हैं।
मीडिया के बड़े संस्थानों का मुंह विज्ञापनों ने बंद कर रखा है। नतीजा है कि सरकारी धन के बंदरबांट और दुरूपयोग में पूरा तंत्र लगा हुआ है। बस्ती शहर के मालवीय रोड़ धर्मशाला रोड, ब्लाक रोड सहित अनेक बदहाल सड़कें, छुट्टा जानवरों का खौफ, रोज होती दुर्घटनायें, कमरतोड़ महगाई, शिक्षा चिकित्सा की बदहाली, सरकारी दफ्तरों में जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार, महिलाओं और मासूम बच्चियों के संग हो रहे दुराचार, गौशालाओं में चारा, भूसा, इलाज के अभाव में दम तोड़ते गोवंश, बंदरों के आतंक, सुरसा की तरह मुंह बा रही बेरोजगारी तथा दम तोड़ती पेयजल परियोजनाओं को इसलिये बर्दाश्त करना है कि हम रामराज की ओर बढ़ रहे हैं।
इसके साथ ही 100 रूपये का पेट्रोल, 1200 रूपये की गैस, 125-130 रूपये कि. अरहर दाल, 135 रूपये रिफाइंड और 150 रूपये कि. सरसों का तेल इसलिये खरीदते रहना है क्योंकि भारत को विश्वगुरू बनाना है। तमाम दुश्वारियों के बीच उत्सव मनाना तो कोई मौजूदा सरकार से सीखे। उत्तर प्रदेश में एक संवेदनशील सरकार है, लेकिन हालात बदलने में सक्षम नही है। तस्वीरें वही हैं सिर्फ किरदार बदले हैं। प्रदेश की कमान एक ऐसे व्यक्ति के हाथ है जिससे जनता का आशान्वित होना स्वाभाविक है। कहते हैं काम, लोभ, मोह उन्हे छू नही पाया है। हालांकि क्रोध उनके वश में नही है।
तमाम अच्छाइयों के बावजूद 6 सालों में जनता को महगाई, बेरोजगारी से राहत नही मिलीं। सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार नही गया। महिलाओं संग दुराचार कम नही हुये, न्याय मिलने में देरी पूर्ववत है, प्राथमिक शिक्षा में सुधार नही के बराबर है, अस्पतालों में दवाइयां और जांच बाहर से लिखी जा रही, अरबों रूपया गन्ना मूल्य बकाया है। बात सुशासन की हुई थी, जो वर्ग जाति विशेष के खिलाफ कार्यवाही करने या विपक्ष की कमर तोड़ने तक सिमट कर रह गयी है। फिलहाल जनता आपदा के बीच अवसर और दुश्वारियों के बीच उत्सव की परंपरा को समझ चुकी है।
बेहतर होता, जनता खुशहाल होती और खुद ही उत्सवों के आयोजन करती। हर घर में उत्सव का माहौल होता। लोग आत्महत्यायें नही करते। फसलें सुरक्षित रखती और रिकार्ड उत्पादन होता। महंगाई काबू में रहती, पुलिस थानों से लेकर अदालतों तक लोगों को समय से न्याय मिलता, हर घर में रोजगार होता, चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़ी व्यवस्थायें दावों के सापेक्ष होती तो जनता उत्सवों में बढ़चढ कर हिस्सा लेती। इसके बाद जो आनंद आता वह वाकई रामराज का अनुभव कराता।