कहां से लाते हो इतनी बेशर्मी ?
अशोक श्रीवास्तव की संपादकीयः सरकार की बदइंतजामी, अरबों रूपयों का गोलमाल और जिम्मेदारों में इच्छाशक्ति की कमी अब जनमानस से बर्दाश्त नही हो रही है। अस्पतालों में लोग आक्सीजन की कमी से तड़पकर मर रहे हैं। जनता पीएम केयर फंड, सांसदों विधायकों और अन्य माध्यमों से कोरोना से निपटने के लिये मिली भारी भरकम धनराशि का जनता हिसाब मांग रही है।
लोग कह रहे हैं कोरोना से हो रही मौतें, मौत नही हत्या है। आलम ये है कि लाशों को जलाने तक की व्यवस्था नही है। लकडियां कम पड़ गयी हैं। लाश जलाने की जगह नही है। केन्द्र सरकार कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में इतनी व्यस्त हो गयी कि उसे याद ही नही रहा कि 130 करोड़ जनता के प्रति उनकी कुछ जवाबदेही भी है। सारी ताकत, सारा धन और बौद्धिक क्षमता दूसरे राज्यों की सत्ता हासिल करने में लगायी जा रही है। पलायान कर प्रवासी मजदूरों के घर पहुंचने तक का उचित इंतजाम नही है। लोग टॉयलेट में बैठकर घर पहुंच रहे हैं। अब तो लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि अस्पताल गये तो मर जाओगे। सरकार की बदंइतजामी देखने के बाद कोरोना की दूसरी लहर में ज्यादा से ज्यादा लोग होम आइसोलेट होना पसंद कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुये दो हादसों ने हिलाकर रख दिया है। ऐसे मामले देश के तमाम हिस्सों में हो रहे हैं। लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार अनिल श्रीवास्तव (65) कोरोना संक्रमित होने के बाद अस्पताल में एडमिट थे। उनका आक्सीजन लेवल काफी नीचे आ गया था। बिसतर पर रोते बिलखते रहे, कई बार ट्वीट करके सरकार से मदद मांगा लेकिन उन्हे कोई मदद नही मिली, वे तड़पकर मर गये। इससे पहले दैनिक जागरण के अनिल शुक्ल की कोरोना के चलते मौत हुई थी। विनम्र खंड में रहने वाले रिटायर्ड जज रमेश चन्द्रा की कहानी ने उत्तर प्रदेश सरकार के दावों की हकीकत सामने लाकर रख दिया।
सात साल पहले सेवानिवृत्त हुये रमेश चन्द्रा की पत्नी मधू चन्द्र और वे कोरोना पाजिटिव हो गये। एडमिट होने के लिये एम्बुलेंस को काल करते रहे, एम्बुलेंस नही पहुंची, पत्नी घर में ही तड़पकर मर गयी। उनकी अपनी ताकत भी इतनी नही कि वे पत्नी को खुद लेकर अस्पताल पहुंच सके। फिलहाल पत्नी सरकार के संवेदनहीनता की भेंट चढ़ गयीं। अब लाश को ले जाने के लिये वे एम्बुलेंस को फोन लगाते रहे, किसी ने उनकी सुध्स नही ली। मध्य प्रदेश के शहडोल मेडिकल कालेज में 12 मरीज आक्सीजन के बगैर तड़पकर मर गये। इससे पहले जबलपुर में आक्सीजन बंद होने से 5 मरीज मौत के मुंह में चले गये।
ऐसा देश के तमाम हिस्सों में हो रहा है। लेकिन ये देश का दुर्भाग्य नही है। इससे बड़ा दुर्भाग्य है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे लोग इस देश के प्रधानमंत्री हैं। वे राजनीतिक शोर में इतने मशगूल हैं कि उन्हे सिर्फ राज्यों की सत्ता दिखाई दे रही है। ऐसे लोभी दल और राजनेताओं को राजनीति छोड़कर कोई बड़ा व्शपार कर लेना चाहिये। लोग यही कहेंगे कि राजनीति छोड़कर व्यापार कर रहे हैं, लेकिन ये कहना लोग बंद कर देंगे कि वे राजनीति में भी व्यापार ढूढ़ रहे हैं। जब कोरोना-1 की लहर थमी तो देश में अस्पताल और आक्सीजन प्लांट लगाने की बजाय ये राजनीतिक मोहरें बिछाने में लगे रहे।
अब लाशों पर लाशें पटी पड़ी हैं और वे रैलियों में फूल माला पहनकर इतरा रहे हैं। इतनी सारी लाशों पर हंसी तो इन्हे ही आ सकती है। देश को ऐसा किरदार दूसरा नही मिलेगा। लेकिन देश की लाखों महिलाओं को वे चुप नही करा सकेंगे जिन्होने अपना सुहाग और बेटा खोया है। ऐसे पिता को कौन चुप करा पायेगा जिनके कंधों पर बेटे की लाश का वजन बहुत भारी पड़ रहा है, उन बेटों को सवाल पूछने से कौन चुप करा पायेगा जिनके सिर से बाप का साया छिन गया। सत्ता की शक्ति के आगे दुम हिलाते चुनाव आयोग की क्या कहें, इशारों पर सारे काम हो रहे हैं या फिर कब क्या करना चाहिये इसकी अकल ही नहीं। अथवा रिटायर होने के बाद राजनीति गलियारे में इनका भी रूतबा तय हो चुका है। आजादी के बाद देश में तमाम सरकारें आइ्रं और गयीं लेकिन इतनी बेशर्मी कभी नही देखी गयी जितनी इस वक्त देखी जा रही है।