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यूपी बोर्ड द्वारा संचालित सीबीएसई पैटर्न की किताबों में करोड़ों का खेल

Posted on: Thu, 12, Mar 2020 12:03 AM (IST)
यूपी बोर्ड द्वारा संचालित सीबीएसई पैटर्न की किताबों में करोड़ों का खेल

अशोक श्रीवास्तवः यूपी बोर्ड द्वारा संचालित सीबीएसई पैटर्न की किताबों के नाम पर जिले में करोड़ों रूपया कमीशन बंट रहा है। सारा बोझ अभिभावक उठा रहे हैं। प्रकाशक, स्कूल प्रबंधक और शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से यह सुनियोजित खेल खेला जा रहा है। जिस अभिभावक को एक से ज्यादा पाल्यों को पढ़ाना है उन्हे सीबीएसई की किताबें खरीदने के लिये कई बार सोचना पड़ता है। पूरे पाठ्यक्रम की किताबें कमजोर आर्थिक स्थिति वाले अभिभावक एक बार में नहीं खरीद पाते हैं। दरअसल प्राइवेट प्रकाशनों का बाजार पर कब्जा है। सुनियोजित षडयंत्र के तहत किताबें बाजार में आवश्यकता के अनुसार नही लाई जातीं, 10 हजार किताबों की जरूरत है तो बाजार में एक हजार किताबें लाई या भेजी जाती हैं।

मारा मारी स्वाभाविक है। उसी किताब को अभिभावक महंगे दामों पर खरीदता है। वहीं जब सरकारी किताबें बाजार में नही रह जाती तो प्राइवेट प्रकाशन की वही किताब चार गुने से ज्यादा दामों पर विद्यार्थी और अभिभावक खरीदने को मजबूर रहते हैं। सूत्रों की माने तो ये खेल शुरू होने से पहले शिक्षा विभाग के आला अफसरों और रूकूल प्रबंधकों की जेब गरम हो जाती है। प्रति वर्ष नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही सभी किरदार सक्रिय हो जाते हैं। जगह जगह से इकट्ठा की गयी जानकारी के अनुसार प्राइवेट प्रकाशनों में नगीन प्रकाशन मेरठ, विद्या प्रकाशन मेरठ, बालाजी साहित्य भवन, कृष्णा बुक डिपो मेरठ ऐसे प्रकाशन हैं जो स्कूलों के प्रबधंकों व प्रधानाचार्यों को सत्र शुरू होने से पहले एडवांस रकम दे जाते हैं।

बिलकुल उसी तरह जैसे दवाइयों की बड़ी बड़ी कम्पनियां बाजार पर अपना बर्चस्व स्थापित करने के लिये डाक्टरों का अस्पताल तक बनवा देती हैं शर्त बस इतनी कि डाक्टर उसी कम्पनी की दवा लिखता रहे। किताबों के मामले में बोर्ड ने पहले ही पाठ्यक्रम तय कर रखा है, यहां बस छात्र छात्राओं पर किताबें खरीदने का दबाव बनाना है और सरकारी अमले को किसी तरह सरकारी किताबों की बाजार में शार्टेज बनाये रखनी है। एक महीने के खेल में कमीशन की रकम सही ठिकानों पर पहुंच जाती है, अभिभावक भी दर्द भूल जाता है और छात्र छात्रायें भारी भरकम पाठ्यक्रम संभालने में लग जाती हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक बुकसेलर ने बताया इण्टर फीजिक्स की सरकारी किताब करीब 120 रूपये की है।

जबकि प्राइवेट प्रकाशन की किताब 850 रूपये की है वहीं बॉयो की सरकारी किताब करीब 75 रूपये की है और प्राइवेट 575 की। गणित की 9 वीं की सरकारी किताब करीब 60 रूपये की है जबकि प्राइवेट 150 रूपये से भी ज्यादा, 10 वीं की 195 रूपये। कुल मिलाकर देखा जाये तो हाईस्कूल की सरकारी किताब के लिये अभिभावक को करीब एक हजार रूपये और इण्टर के लिये 15 सौ रूपये खर्च करने पड़ते हैं। इन्ही कक्षाओं की प्राइवेट प्रकाशनों की किताबें 4 से 6 हजार रूपये में मिलती हैं। बुकसेलर ने बताया ये सारा खेल शासन प्रशासन के सज्ञान में खेला जा रहा है।

जरूरत भर सरकारी किताबें बाजारों में नही आती तो छात्रों की जरूरतें आखिर कैसे पूरी होती हैं। जरूरत की 10 फीसदी किताबें बाजारों में भेज दी जाती हैं जिससे सरकारी किताबों की शार्टेज हमेशा बनी रहे और खेल जारी रहे। अनेकों बार अभिभावकों ने इसके खिलाफ आवाज उठाया है लेकिन सारे प्रयास बेनतीजा रहे हैं। परिणाम सामने है अभिभावकों का जमकर शोषण किया जा रहा है। अभिभावकों को इस बात का इंतजार है कि ज़ीरो टॉलरेंस अगेन्स्ट करप्शन की पॉलिसी पर काम कर रही सरकार और स्थानीय प्रशासन का ध्यान इस समस्या पर जाये और अभिभावकों को राहत मिले साथ ही सुनियोजित षडयंत्र भी जनता के सामने आये।


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