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25 अप्रैल 2024
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लोकतंत्र खत्म हो रहा है, हम आखिरी सीन का इंतजार कर रहे हैं..

Posted on: Thu, 16, Mar 2023 10:49 AM (IST)
लोकतंत्र खत्म हो रहा है, हम आखिरी सीन का इंतजार कर रहे हैं..

मुट्ठी भर पत्रकार देश में बचे हैं जो सत्ता की कारगुजारियां निर्भीक होकर लिख रहे हैं और प्रकाशित कर रहे हैं। बाकी को सरकार और उनकी मशीनरी काबू कर चुकी है। जिसे काबू नही कर पाये उस मीडिया हाउस की बोली लगा दी। यह लोकतंत्र के लिये सबसे ज्यादा शर्मनाक है। जिस भारतीय लोकतंत्र की दुनिया भर में तारीफ होती थी और मिसालें दी जाती थीं वह लोकतंत्र अब खत्म हो रहा है।

संवैधानिक संस्थाओं को गुलाम बनाकर रखा जा रहा है। जिस तरह लोग दरवाजे पर कुत्ता पालकर रखते हैं और वह हर आने जाने वालों पर भौंकता रहता है, उसी तरह जिसकी लोकप्रियता बढ़ने लगती है, या जो सच कहने और लिखने की हिम्मत रखता है उनके ऊपर संवैधानिक संस्थाओं को पालतू कुत्तों की तरह छोड़ दिया जाता है। सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि भारत का लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है और अब यह कितना निष्पक्ष और शक्तिशाली रह गया है। अनेक उदाहरण है जो इस बात की पुष्टि करते हैं।

अहंकार में मस्त सत्ता यह समझने को तैयार नही है कि भारत की पहचान और सम्मान किससे है। धर्मनिरपेक्षता भारत का गौरव रहा है। लेकिन संविधान की आत्मा को घायल कर इतर माहौल बनाया जा रहा है। एनडीटीवी के साथ क्या हुआ, सत्ता की कारगुजारियों को एक एक कर जनता के सामने लाने वाले पत्रकार रवीश कुमार के साथ क्या हुआ, दुनिया जानती है। ये घटना देश में घटती रहीं और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ आखें फाड़कर देखता रहा और कान खोलकर सुनता रहा।

लेकिन प्रतिक्रया नही आई, कुछ दिन का छिपा हुआ आक्रोश था जो बांद में शांत हो गया। ऐसा नही है कि आने वाली पीढियां चौथे स्तम्भ से सवाल नही पूछेंगी, पूछेंगी और जो मौजूद रहेंगे उन्हे जवाब देना पड़ेगा। सत्ता के अहंकार, मनमानी रवैये और मौन ने यह साबित कर दिया है कि लोकतांत्रिक परंपरायें दम तोड़ रही हैं और हम आखिरी सीन का इंतजार कर रहे हैं। ताजा मामला यूपी के संभल से आया है जिसे सुनकर गोदी मीडिया अट्टहास कर सकता है लेकिन सच लिखने पढ़ने और बोलने वाले पत्रकारों को सतर्क हो जाना चाहिये। शायद निष्पक्ष पत्रकारिता के दिन खत्म होने वाले हैं।

अनकों लोगों ने गोदी मीडिया का किरदार निभाना शुरू कर दिया, जो जुबान खोलते रहे उन्हे मौन कर दिया गया। संभल में यूट्यूबर सुरेश राणा ने शिक्षा राज्यमंत्री गुलाब देवी से उनके कामकाज का ब्योरा मांग लिया, उसके खिलाफ 13 मार्च को एफआईआर दर्ज हुई, यूपी पुलिस ने उसको गिरफ्तार किया है। उसे बकायदा हथकड़ी पहनाकर रस्सियों से हाथ बांधकर ले जाया गया। जैसे कोई बड़ा अपराधी हो। लोकतंत्र के लिये इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नही हो सकता। हालांकि उसको जमानत दे दी गई है। यूपी सरकार में माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री गुलाब देवी एक चेक डैम के उद्घाटन में शिरकत करने पहुंची थी।

वहां पर एक यू-ट्यूबर पत्रकार सुरेश राणा ने हाथ में माइक आईडी लेकर शिक्षा राज्यमंत्री के कार्यक्रम में विकास कार्यों पर सवाल उठाते हुए शिकायतों की झड़ी लगा दी थी, यही नहीं लोगों से हामी भरवाई थी। भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के जिला महामंत्री शुभम राघव ने कोतवाली चंदौसी को तहरीर देकर मारपीट का केस दर्ज कराया था। इसके बाद पुलिस ने संजय राणा के खिलाफ मारपीट और गाली गलौज करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। यू ट्यूबर ने मंत्री से सवाल पूछा कि आपने कहा था कि बुद्धनगर खंडवा गांव मेरा अपना गांव है। इसको आपने गोद भी लिया था। आपने मंदिर पर खड़े होकर शपथ ली थी कि ये गांव मेरा है और मैं इस गांव की हूं। इसका विकास करवाऊंगी।

लोगों से हर काम करवाने का वादा किया था। चुनाव जीतने के बाद आपने कहा था कि मंदिर वाली रोड को पक्का करवाऊंगी। अभी तक यह रोड कच्ची है। इस पर पैदल चलना भी मुश्किल है। देवी मां के मंदिर की बाउंड्री नहीं हुई है। जिसका आपने वादा किया था। जिससे गांव वाले परेशान है। इसके बाद यू ट्यूबर ने शिक्षा राज्य मंत्री ने सामने गांव वालों के हाथ उठवा कर कहा कि कौन-कौन सहमत मेरी इस बात से। वहां पर मौजूद कूछ गांव वाले ने हाथ उठाया भी था और कहा कि गांव में कोई काम नहीं हुआ है। हालात ऐसे थे कि मौके पर मौजूद अफसरों के माथे पर पसीना साफ दिखने लगा। वहीं जनता पत्रकार के साथ खड़ी रही।

घटना को लेकर पत्रकारों ने धरना प्रदर्शन नही किया। ज्ञापन तक नही दिये गये। प्रतिक्रियायें भी नही आईं। पत्रकारों को समझना होगा पूरे गांव में आग लगेगी तो उनका कुनबा भी नही बचेंगा। सत्ता से मेल रखने वाले किसी कीमत पर पत्रकार नही हो सकते हैं। गोदी मीडिया जैसे शब्द ऐसे ही पत्रकारों और मीडिया हाउसेज के लिये इजाद हुआ है। नीति नियामकों और सत्ता के शीर्ष पर बैठे अहंकारी लोगों को भी यह समझना होगा कि सही मायने में जो पत्रकार हैं वे हमेशा सत्ता से सवाल पूछते रहेंगे, यह उनका अधिकार भी है और कर्तव्य भी। इसलिये दलाल पालना बंद करो और सच सुनने की हिम्मत रखो। जब तक एक भी पत्रकार बंचेगा सच जिंदा रहेगा और सच की पैरवी होती रहेगी।


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