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28 मार्च 2024
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चार साल डराती रही सरकार

Posted on: Fri, 19, Mar 2021 7:23 PM (IST)
चार साल डराती रही सरकार

UP सरकार के 4 साल पूरे होने पर प्रभारी मंत्री जिलों में जाकर उपलब्धियां गिना रहे हैं। जबकि किसानों, नोजवानों की बदहाली, महिलाओं में असुरक्षा का भय, रिकार्डतोड़ आत्महत्या, दिनदहाड़े हत्या, बलात्कार, लूट, अपहरण के घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी इन चार सालों में। सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार रिकार्ड तोड़ रहे हैं। बगैर रिश्वत काम नही हो रहे हैं। शिकायतों के निस्तारण में गुणवत्ता दूर तक नही है।

वकीलों, पत्रकारों, लेखकों, समाजसेवियों को फर्जी मुकदमों से डराया जा रहा है। जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों की कोई अहमियत नही रह गयी है। आईएएस आईपीस पूरी सरकार चला रहे हैं, यही कारण है कि जनभावनाओं की कद्र नही है। अनाप शनाप फैसले हो रहे हैं। सोचने की जरूरत है सारे काम आईएएस आईपीस करेंगे तो जनप्रितनिधि क्या करेंगे। इन चार सालों में लोकतंत्र को मजाक बनाकर रख दिया गया। सरकार ने केवल बदले की भावना से काम किया। देशद्रोह की अपने ढंग से परिभाषा गढ़ दी। आईएएस जनता को बेइज्जत कर रहे हैं, उनकी भावनाओं से खेल रहे हैं।

हाथरस कांड में सरकार को जरा भी शर्म नही आई जब सरकार के मंत्री और आईएएस आईपीएस ने प्रदेश की 24 करोड़ जनता को गुमराह किया। सच सामने आया तो शर्म भी नही आई। बलात्कार पीड़िता के पिता को डीएम ने लात से मारा। कोरोना काल में सरकारी कार्यक्रमों में गाइडलाइन की दीवाल रोज गिरती रही, नियम कानून कदम दर कदम टूटते रहे, जनता और विपक्ष जब अपने हक के लिये सड़क पर मुट्ठी भर संख्या लेकर उतरी तो उसे मुकदमे झेलने पड़े। इसकी तुलना में सरकारी या सत्ताधारी नेताओं के कार्यक्रमों में भारी भीड़ इकट्ठा होती रही तो अफसर आंख मूदते रहे। इसको दोहरा मापदंड कहते हैं, सरकार और सरकारी तंत्र ने इस मामले में रिकार्ड कायम किया।

भ्रष्टाचार का ये आलम रहा कि कोरोना अफसरों के लिये एक बहुत बड़ा अवसर बनकर आया। कोरेनटीन सेण्टर से लेकर एल 1, एल 2 अस्पतालों तक जितनी लूट की जा सकती थी, की गयी। सामूहिक हत्या, सामूहिक रेप, सामूहिक सुसाइड के तो रिकार्ड बन गये। घर में घुसकर मौत के घाट उतार देने का दौर चला। पूरे परिवार को निशाना बनाया गया। साधू संतों पर जानलेवा हमले होते रहे। प्रदर्शनकारी महिलाओं को राजधानी में पुरूष पुलिसकर्मियों ने पीटा, उनके बाल पकड़कर खींचे गये, निर्दोषों को जेल भेजा गया। जनता और विपक्ष का मुंह बंद करने के लिये सरकार ने वो सबकुछ किया जो जो एक तानाशाह कर सकता है।

उद्योगहीनता चरम पर रही। उत्पादकता रोडमैप में है ही नही। बिजली और अन्य उपभोग के वस्तुओं की महगाई आसमान तक पहुंची। गन्ना बकाया किसानों का आज भी बेचैन कर रहा है। एकबीए एमटेक, एमसीए पास कर नौजवान 8 हजार रूपये की नौकरी तलाश रहे हैं। चमचमाती सड़के, हवाई अड्डे, हवा से बात करती ट्रेनें, मेट्रो, मॉल, शहरों, योजनाओं और इमारतों के नामों में परिवर्तन, पंचायत भवन, मन्दिरों के निर्माण, महापुरूषों के नाम पर तमाम खर्च नौजवानों के चेहरों पर मुसकान नही ला सकते। हर परिवार समृद्धि के रास्ते पर हो, कम से कम एक बेटा-बेटी सरकारी नौकरी में हो इसका कोई रोडमैप सरकार नही बना पायी।

कदम कदम पर अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश की गयी। पूरे चार साल सरकार जनता को डराती रही। डर के साये ने खुशियां छीन लीं। समाज का एक तबका तो घर की दीवारों में दुबक गया। उनके आयोजन डर के मारे फीके पड़ गये। उल्लास नही रह गया। अनहोनी का भय, फर्जी मुकदमों का खौफ कायम रहा। सरकार के कामकाज से अंसतुष्ट लोगों के हर प्रकार के विरोध को देशद्रोह से जोड़ने की कोशिश की गयी। इन सबके बावजूद 4 साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। जश्न मनाया जाना चाहिये, अच्छा लगता जब ये जश्न नौजवान खुद मनाते।

उनके परिवार इसमे शामिल होते, लोगों के चेहरों पर खुशियां होतीं, बेटियों में डर नही होता, जनता पर टैक्स का बोझ आय के स्तर को देखते हुये तय किया जाता। उद्योग इतने होते कि लोग बेरोजगार न होते। भ्रष्टाचार पर लगाम कसा जाता। पुलिस जनभावनाओं का कद्र करती, जनता से उसके संबंध अच्छे होते और स्कूल कालेजों में पढ़ रहे छात्र छात्राओं में एक निश्चिंतता का भाव होता कि पढ़ लिखकर वे नौकरी पायेंगे और अपने मां बाप का सहारा बनेंगे। कोई भी सरकार हो जब तक ये तस्वीरे धरातल पर नहीं उतरेंगी तब तक सरकार का हर जश्न महज धोखा है। आज जो जश्न मनाये जा रहे हैं उसमे जनता गायब है। 10-20 अफसर मिलकर सरकार के उपलब्धियों के गीत गा रहे हैं। हालांकि उनकी भाव भंगिमा हकीकत से मैच नही करती है।


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