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28 मार्च 2024
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आखिर कम क्यों नही हो रहे हैं सड़क हादसे

Posted on: Tue, 26, Nov 2019 11:26 PM (IST)
आखिर कम क्यों नही हो रहे हैं सड़क हादसे

बस्तीः मीडिया दस्तक पिछले कई दिनों से ये जानने की कोशिश में लगा है कि इतने सारे जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद आखिर सड़क हादसे कम क्यों नही हो रहे हैं। आये दिन सड़कें खून से लाल हो रही है। पुलिस और परिवहन महकमे से लेकर समाजसेवियों और शिक्षण संस्थानों तक सभी लोगों को अपने अपने तरीकों से जागरूक कर रहे हैं। फिर भी जनपद में होने वाले सड़क हादसों में कमी नही आई। मीडिया दस्तक बार बार कहता आ रहा है कि सड़क हादसों की जो खास वजह है उसे फोकस नही किया जा रहा है, बल्कि दूसरे सभी तरीके अपनाये जा रहे हैं। 21 नवम्बर को मुण्डेरवां में सुगर मिल के पेराई सत्र का उद्घाटन करने मुख्यमंत्री को आना था। यहां मंडल के तीनों जिलों के नेता और अफसरों का जमावड़ा हुआ।

यहां आने बाले नेता रहे हों या अफसर किसी ने न खुद सीट बेल्ट लगाया था न उनके ड्राइवर ने। यहां तक पुलिसकर्मी भी बगैर हेलमेट के बाइक चलाते देखे गये। तीन सवारी आम आम बात थी। उद्यान मंत्री, सदर सहित अपवादों को छोड़ सभी विधायक, सांसद, एसपी, डीएम, सीडीओ कोई इस आरोप से मुक्त नही था। ये खुद तो सीट बेल्ट नही लगाये थे, इनके चालक भी बिंदास थे। मीडिया दस्तक का कैमरा बानगी के तौर पर बारी बारी से सभी को ढूढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इनके लिये संविधान में अलग कानून बने हैं। तभी तो दूसरों को सड़क सुरक्षा का पाठ पढ़ाने वाले निमयों से बेकफक्र दिखे। इनकी जिम्मेदारी केवल डंडा पटककर आम आदमी को डराना है। ऐसे बहुत सारे सच हैं जिससे परदा उठे तो सभी को समझ में आ जायेगा कि सड़क हादसे क्यों कम नही हो रहे हैं।

न अतिक्रमण पर बात हो रही है, न अण्डरपास पर और न ही पार्किंग पर। यहां तक कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिये सड़कों पर कराई जाने वाली ह्वाइट पेण्टिंग तक नही कराई जा रही है। कहीं गोष्ठी हो रही है तो कहीं स्कूली छात्र छात्राओं को हाथ में तख्ती लेकर खड़ा कर दिया जा रहा है। सामने से तीन लोग बाइक पर सवार होकर, बगैर हेलमेट के और कार सवार बगैर सीट बेल्ट के चला जा जाता है लेकिन उसे कोई रोकने टोकने वाला नही है। रांग साइड गाड़ियां सीधे दुर्घटना को दावत देती है लेकिन इसको लेकर चालान होता नही देखा गया। चलती गाड़ी पर मोबाइल से बात करने का परहेज तो मुश्किल से पांच फीसदी लोग भी नही करते। स्पीड लिमिट के मायने ही नही रह गये।

आपकी जितनी मर्जी हो उतनी तेज गाड़ी चला सकते हैं। कोई चालान नही होगा। बस हेलमेट लगा लीजिये हादसे रूक जायेंगे। मंगलवार को हुये सड़क हादसे में पुलिस महकमे ने अपना एक सिपाही खो दिया। उसने तो हेजमेट लगा रखा था फिर उसकी जान कैसे चली गयी। तेज गति से तो हमने किसी पुजिसकर्मी को बाइक चलाते नही देखा। निश्चित रूप से ट्रक गलत तरीके से खड़ी रही होगी जो सिपाही को कोहरे के कारण नही दिखी। फिलहाल उसकी मौत का कारण हेलमेट तो था नही, दूसरा की कोई कारण रहा होगा। बेशक उन कारणों में ही जिसे हम अपने इस आर्टिकिल में फोकस कर रहे हैं। हादसों को रोकना है तो उन कारणों को ढूढ़ना होगा।

जागरूक करने वाले खुद इस भ्रम के शिकार हैं और दूसरों को भी भरमा रहे हैं। शराब की दुकानों पर पैग लगाकर सरेआम लोग बाइक या कार में सवार हो रहे हैं और धड़ल्ले से ड्राइविंग कर रहे हैं। एक भी आदमी का चालान नही हुआ। बिल्डिंग मैटेरियल बेंचने वालों ने जैसे फुटपाथ अपने नाम बैनामा करा लिया हो, बाइक सवार को न जानकारी हो तो 40 की स्पीड में भी वह गिट्टी के ऊपर फिसल कर चोटिल हो जायेगा। फिलहाल कानून का पालन कराना जिसकी जिम्मेदारी है, व्यवस्था प्रदान करना भी उसकी की जिम्मेदारियों में आता है। नतीजों के लिये लिये इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। डाक्टर, टीचर, वकील, पत्रकार, नेता, अफसर, समाजसेवी सभी आम जनता के रोल मॉडल हैं, अपनी थोड़ी सी सुविधा के लिये ये नियमों की अनदेखी कर सकते हैं तो आम जनता को भला कैसे दोषी ठहरा सकते हैं ?


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