कहने को दुकानें बंद थीं, गलियों में बिक रही थी शराब
अशोक श्रीवास्तवः बस्ती में होली के एक दिन पहले से ही जिलाधिकारी के आदेश पर शराब की अधिकृत दुकानें बंद थीं लेकिन शराब की बिक्री चालू थी। फर्क बस इतना था कि बंदी से पहले आदतन शराब के शौकीनों को दुकान तक जाना पड़ता था, बंदी के बाद शराब गांव और शहर की गलियों में धड़ल्ले से बिकी। जिसे देखो वही शराब के नशे में। दरअसल जिलाधिकारी ने जो आदेश जारी करवाकर जनता को बताया कि होली के मद्देनजर शराब की दुकानें बंद रहेंगी यह जानकारी जनता को वर्षों पहले से है। इसलिये पीने के शौकीन दो दिन पहले से ही इसे स्टोर करने लगते हैं। शराब के दुकानदरों ने भी गलियों में अपने कैरियर बना रखे हैं, जब उनकी होली दिवाली में बंद हो जाती है तो कैरियर सक्रिय हो जाते हैं। इसलिये बंदी होने पर उनके व्यवसाय पर कोई फर्क नही पड़ता और बंदी के पीछे शांति कायम रखने की सरकार की मंशा भी धरी रह जाती है।
आबकारी महकमा इतना उदार है कि परिस्थितियां चाहे जो हों शराब कभी मार्केट से गायब नही होगी। सब्जियां, नानवेज व उपयोग व उपभोग की अन्य वस्तुयें गायब हो सकती हैं शराब का हमेशा फुल स्टाक रहता है। कभी किसी शराबी को दुकान से इस कारण निराश लौटते नही देखा कि वहां उसके पसंद की ब्राण्ड नही मिली। बुद्धिमान तर्क देते हैं शराब से देश चल रहा है। बहुत बड़ा राजस्व सकार को इससे मिलता है। इतना ही नही बंदी होने के कारण सरकारी महकमों के लोग सतर्क हो जाते हैं और आबकारी महकमे से उनके पास पेटी की पेटी शराब पहुंच जाती है। यह सिलसिला दो दिन पहले से ही जारी था।
पत्रकारों को भी खूब शराब बांटी गयी। हैरान करने वाली बात ये थी कि जो नही पीते हैं वे भी दो महीने का स्टाक ले गये। धन्य है आबकारी महकमा। शायद यही कारण है कि पूरे जिले में शराब प्रिण्ट रेट से ज्यादा मूल्य पर बिकती है। शिकायतें करते रहो कोई फर्क नही पड़ता। जनता खुश, पत्रकार खुश, पुलिस खुश, महकमे को रिश्वत की तय रकम हर महीने पहुंच ही रही है कोई क्या कर लेगा। ये तो रही सरकारी शराब की बात, रही बात गांव में बनने वाली अवैध शराब की तो इसके निर्माण और बिक्री पर रोक लगाने के लिये आबकारी महकमे के निरीक्षक गांव गांव जाते हैं छापेमारी करते हैं, भारी मात्रा में लहन और शराब बनाने के उपकरण नष्ट करते हैं लेकिन इनका सूचना तंत्र इतना मजबूत है कि एक भी कारोबारी इनके हाथ नही लगते।
बताया जाता है कि अवैध शराब के कारोबारी महकमे की ऊपरी कमाई का जरिया हैं इसलिये कारोबारियों को आजाद रखा जाता है। मसलन अण्डे खाकर मुर्गी को जिंदा रखने का चलन। महकमे की कार्यशैली को लेकर कई तरह के भ्रम हैं। होली जैसे अवसरों पर जिलाधिकारी शराब की दुकानों को बंद करा देते हैं और देख लिया जाये तो होली कि तीन दिन पहले की बिक्री सामान्य दिनों से कई गुना ज्यादा रहती है। होना भी चाहिये क्योंकि वही जिलाधिकारी राजस्व कम आने पर महकमे के जिम्मेदारों की क्लास भी तो लेंगे। नतीजा ये था कि गांव से लेकर शहर तक बंद बेअसर था। झोले में रखकर शराब बेंची जा रही थी।