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गली गली समाजसेवी और जागरूकता कार्यक्रम, फिर भी नही बदल रहा समाज

Posted on: Mon, 18, Nov 2019 10:41 PM (IST)
गली गली समाजसेवी और जागरूकता कार्यक्रम, फिर भी नही बदल रहा समाज

अशोक श्रीवास्तवः बस्ती जनपद में सामाजिक कार्यकर्ताओं की भरमार है। समाजसेवा के अपने फायदे और अलग तरह का नशा है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मंशा सिर्फ अखबारों, डिजिटल और सोशल मीडिया में छाये रहना है। कुछ ऐसे तथाकथित समाजसेवी हैं जो सुबह नहा धोकर पूरी साज सज्जा के साथ घर से निकलते हैं और पूरे दिन शहर में होने वाले आयोजनों का हिस्सा बनते हैं। इस दौरान सेल्फी से लेकर ग्रुप फोटो सेशन तक कोई मौका चूकना नही चाहते। उनकी आय का जरिया क्या है, समझ से परे है लेकिन महंगी गाड़ी, पहनावा, सबसे अलग दिखने वाला स्मार्ट फोन, कभी कभार जल जलपान कैसे संभव होता है, इन सवालों का जवाब हैरान करने वाला होगा। मीडिया दस्तक ने बार बार यह सवाल खड़ा किया है, आखिर इतने सारे जागरूकता कार्यक्रम और गली गली में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ताओं की फौज आखिर समाज में बदलाव क्यों नही ला पा रही है। कुछ भी नही रूक रहा है, बलात्कार, दहेज हत्यायें, महिलाओं संग छेड़छाड़, बेइमानी, भ्रष्टाचार, सड़क हादसे, अतिक्रमण, प्रदूषण, जमीनों पर कब्जे और कत्ल जैसे गंभीर अपराध तरह तरह के जागरूकता अभियानों पर बदनुमा दाग हैं। दरअसल बदलाव का संदेश लेकर आप अपने घरों से निकलते हैं तो सबसे पहले आपको अपनी इच्छाशक्ति मजबूत कर लेनी चाहिये। पहले खुद को बदलकर दिखाना होगा तब इसका समाज पर कुछ असर पड़ेगा। लेकिन खुद को बदलना कितना कठिन है ये सभी जानते हैं।

हर कोई आसान राहों पर चलना चाहता है जिस पर लोग पहले चले हों। लेकिन बदलाव के लिये कठिन रास्तों पर चलना होगा, ये कम ही लोगों को पता है। जिसे पता है वह भी उन रास्तों पर चलने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि अनगिनत सामाजिक कार्यकर्ता और जागरूकता अभियान समाज में रत्ती भर परिवर्तन नही ला पा रहे हैं। सच्चाई हैरान करने वाली है। हम आपको सच्चाई दिखाने और बताने के लिये एक उदाहरण देना चाहेंगे। सोमवार को समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य कर रही संस्था ह्यूमन सेफ लाइफ फाउण्डेशन एवं महर्षि विद्या मन्दिर के संयुक्त तत्वावधान में बड़ेवन पुलिस चौकी पर सड़क सुरक्षा अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित किया गया। दोनो संस्थानों के जिम्मेदारों और छात्र छात्राओं ने कार्यक्रम में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।

मीडिया दस्तक को भी कार्यक्रम में भागीदारी के लिये न्योता मिला था। फाउण्डेशन की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीत श्रीवास्तव, रणविजय सिंह एडवोकेट, अजय कुमार श्रीवास्तव, अपूर्व शुक्ला, अनिल कुमार पाण्डेय, अमर सोनी सहित कई अन्य लोग कार्यक्रम के कर्ता धर्ता रहे। हमारे मन में सवाल उठ चुके थे, आखिर इतने सारे जागरूकता कार्यक्रमों और शहर से लेकर गांव तक फैले अनगिनत सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास बेनतीजा क्यों हैं। मै इसका जवाब ढूढ़ रहा था। मीडिया दस्तक का कैमरा उन जिम्मेदारों को ढूढ़ रहा था जो खुद तो रत्ती भर नही बदलना चाहते और समाज को थोक में बदलना चाहते हैं। सच जानकर हम खुद हैरान हो गये, किसी के पास हेलमेट नही था, बगैर हेलमेट के सभी फर्राटे से मोटरसाइकिल चलाते आये और जागरूकता कार्यक्रम करके चले गये।

हैरान करने वाली बात ये है कि न जाने कैसे इनका जमीर साथ दे रहा था और जिन रास्तों पर खुद नही चल सकते उस पर चलने के लिये दूसरों को प्रेरित कर रहे थे। इसका जवाब तो यही दे पायेंगे लेकिन हमारे सवाल का जवाब हमे मिल गया। शायद यही कारण है कि सदियों से बदलाव जिन युवाओं के कंधों पर बैठकर आता है वे खुद ही भ्रम के शिकार हैं और दूसरों को भी गुमराह कर रहे हैं। अब आप ही बतायें इनकी प्रेरणा से लोग खुद को कितना बदल पायेंगे और समाज कितना बदलेगा। आज इस व्यवहारिक अनुभव को संपादकीय में शामिल करने का मकसद सिर्फ इतना है कि दूसरों से बदलाव की उम्मीद करने से बेहतर होगा कि खुद से इसकी शुरूआत करें और पूरी इमानदारी से खुद को बदलकर दिखायें, हमे उम्मीद है आप अकेले नही रहेंगे एक लम्बी सी कतार आपके पीछे लगी होगी।


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