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जानकारियां छिपाने का हस्र, बेकाबू हो रहा कोरोना

Posted on: Sun, 19, Jul 2020 9:34 PM (IST)
जानकारियां छिपाने का हस्र, बेकाबू हो रहा कोरोना

कोरोना मरीजों का विवरण और जानकारी छिपाना देश पर बहुत भारी पड़ेगा। प्रशासनिक अधिकारियों और सरकार के गठजोड़ ने मरीजों की जानकारी सार्वजनिक न करके बहुत बड़े खतरे को दावत दिया है। निःसंदेह इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। कोरोना के मामले में शुरू से शासन प्रशासन का रवैया पारदर्शी नही रहा। आंकड़े छिपाने से लेकर स्थानीय स्तर पर संक्रमितों की जानकारी सार्वजनिक न करने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन जिम्मेदारों के कान में जूं नही रेंगा। नतीजा ये हुआ कि हमारे पड़ोस में कोरोना पहुंच गया और हमे पता नही हुआ। कोरोना संक्रमित परिवारों में लोग आते जाते रहे लेकिन सावधान नही किया गया। बस्ती शहर के तुलस्यान वस्त्रालय का मैनेजर कोरोना पाजिटिव पाया गया।

उसके टच में रहने वाले एक दर्जन से ज्यादा स्टाफ अचानक बदल दिये गये, लेकिन शो रूम बेखौफ खुलता रहा। सत्ताधारी दल के करीब होने का मालिक को फायदा मिलता रहा और लोग वहां से संक्रमण ले जाकर बांटते रहे। संक्रमण पाये जाने पर कई बैंक, अस्पताल, सरकारी दफ्तर सील हो गये लेकिन रसूखदार पर कोई असर नही पड़ा। कहने के लिये पांच दिन का हफ्ता हो गया है। शनिवार रविवार को लाकडाउन घोषित किया गया है लेकिन परिवहन के साधन चल रहे हैं।

लखनऊ दिल्ली से आकर लोग आपके शहर में दाखिल हो सकते हैं, कहीं भी आ जा सकते हैं। बसें और ट्रेने चल रही है तो लाकडाउन का क्या मतलब। सब्जी मंडी में हजारों लोग इकट्ठा हो रहे हैं, कोई दूरी नहीं सटकर खड़े हो रहे हैं, एक दूसरे को टच कर रहे हैं, अधिकांश लोग मास्क भी नही लगा रहे हैं। आयुष मंत्रालय और डब्लू एच ओ की गाइडलाइन सिर्फ प्रचार के लिये हैं। इसको लेकर गंभीरता बिलकुल नही है। गेहूं और बैंक खातों में पैसा ट्रांसफर करने की बजाय सरकार ने च्यवनप्राश और गिलोय बांट दिया होता तो मौतें आधी कम हो जाती। कोरोना का केवल हौव्वा खड़ा किया गया, महज शासन और डब्लू एच ओ से मिलने वाले बंजट के बंदरबांट के लिये।

जितना बजट खर्च करके इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिये प्रचार कराया गया उतना ही खर्च करके लेगों की इम्यूनिटी बूस्ट की जा सकती थी। लेकिन सरकार या व्यवस्था में सुधार की सोच का अभाव है, तभी तो 10 रूपये का मास्क न लगाने पर 500 रूपये का जुर्माना वसूल किया जा रहा है। इससे बेहतर होता बगैर मास्क दिखने पर 10 रूपया लेकर मास्क पकड़ा देते। इसमे सुधार की संभावना छिपी थी। दरअसल सरकार ऐसे काम ही नही करना चाहती कि लोगों की सोच बदले और समाज में बदलाव दिखाई दे। पहले चरण के लाकडाउन से देखे तो आत्महत्याओं की बाढ़ सी आ गयी। अचानक जीवन में आई अस्थिरता, बेरोजगारी का दंश, लाकडाउन के कारण लगातार घर में रहने से बढ़े गृह कलह, आर्थिक मंदी के कारण असंख्य नागरिकों ने मौत को गले लगा लिया।

न इस पर चिंतन किया गया और न ही कहीं काउंसलर उपलब्ध कराये गये। कोरेनटीन सेण्टरों से लेकर कोरोना वार्ड़ों में सरकार को काउंसलर उपलब्ध कराना चाहिये था जो डाउटफुल और कंनफर्म कोरोना संक्रमितों को डिप्रेशन से बाहर निकालने का प्रयास करता। प्राइवेट अस्पतालों में आधा घण्टा रिसेप्शन पर बैठना पड़ता है। उतनी देर के लिये रोगियों और तीमाररदारों के लिये अस्पताल प्रबंधन टेलिविजन लगवा देता है। कोरोना वार्डों या कोरेनटीन सेण्टरों में ऐसी कोई व्यवस्था नही की गयी।

जो लोग वहां से लौटकर बाहर आये, लोगों से उन कठिन और उबाऊ दिनों की चर्चा किये, लोगों के भीतर कोरोना से ज्यादा कोरेनटीन होने का भय सताने लगा। शायद यही सब कारण थे कि हलका जुकान, बुखार और ब्रीदिंग प्रॉब्लेम होने के बावजूद लोग बाजारों में टहलते रहे और कोरोना बांटते रहे। कोरोना को लोग उसी तरह छिपाये जैसे कुछ लोग कोढ़ छिपाते हैं। जबकि यह और संक्रमणों की तरह एक संक्रमण है। इसे योगा और इम्यूनिटी बूस्ट करके हराया जा सकता है। बेहतर होगा पूरा पारदर्शी तरीके से कोरोना से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक की जायें और सजा देने की बजाय सुधार की प्रवृत्ति अपनाई जाये। वरना देश और समाज ऐसे मोड़ पर आ गया है कि बहुत कुछ आउट ऑफ कण्ट्रोल हो चुका है।


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