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29 मार्च 2024
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लॉकडाउन के और कितने इफेक्ट झेलेंगे हम..

Posted on: Fri, 10, Apr 2020 3:43 PM (IST)
लॉकडाउन के और कितने इफेक्ट झेलेंगे हम..

अशोक श्रीवास्तवः बस्ती जिले में पांच दिनों में 5 आत्महत्यायें। सभी लॉकडाउन पीरियड में। सुनकर हर कोई हैरान है। लॉकडाउन की घोषणा हुई तो कुछ लोगों से इसके साइड इफेक्ट को लेकर लम्बी बहंस चली थी। वे लोग बेवजह बहंस इसलिये कर रहे हैं थे क्यों दूर तक सोचने की उनकी क्षमता नही थी। हमने ऐसी कई संभावनाओं पर ध्यान केन्द्रित कराने का प्रयास किया था। इनमे सबसे खास ये था कि लोग किसी तरह लॉकडाउन का एक हफ्ता झेल लेंगे। जब वास्तविक परिस्थितियों का उनको अंदाजा होगा तो देश के अलग अलग हिस्सों से पलायन शुरू होगा। इसे न तो सरकार रोक पायेगी और न ही अचानक इतनी बड़ी व्यवस्था दे पायेगी।

पलायन का अनुमान सचः यह बात 100 फीसदी सच निकली। बडी संख्या में पलायन शुरू हुआ। एनएच पर लाखों की संख्या में लोग आ गये। पैदल, ठेला, साइकिल, टैम्पू, बाइक और कामर्शियल वाहन जिसे जो मिला उसी से अपने घर की ओर चल पड़ा। हालात ऐसे बन गये कि राज्य सरकारों की हालत खराब होने लगी। रोते बिलखते भूख से तड़पे बच्चे, पैदल सिर पर गठरी लेकर अपने घर जा रही युवती, ठेला चलाकर दिल्ली से दरभंगा जा रहे कम उम्र के बच्चे, पैदल चलकर बार बार थककर सड़क पर बैठ जाने वाले मासूम बच्चों की अनेकों तस्वीरों ने आम जनमानस को विचलित कर दिया। प्रबुद्ध अचानक घोषित लॉकडाउन पर सवाल उठाने लगे।

भयंकर बेरोजगारी का अनुमान सच

दूसरे साइड इफेक्ट में हमने भयंकर बेरोजगारी पर फोकस किया था। चाय पान, सब्जी की दुकान लगाने वाले, रिक्शा, ठेला, टैम्पू, चलाने वाले, पटरी व्यवसायी की श्रेणी में आने वाले असंख्य लोगों के रोजगार छिन गये हैं। मंदिरों में चढ़ावा नही आ रहा, पुजारी का परिवार संकट में है, बाहर प्रसाद बेंचने वाले खाली हाथ हैं। बसों ट्रेनों में सामान बेंचकर परिवार चलाने वाले बेहद परेशान हैं। ये सरकार की उस लिस्ट में भी नही हैं जिन्हे कुछ आर्थिक मदद दी जा रही है। अभी प्राइवेट कम्पनियों के द्वारा कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी बाकी है। तस्वीरें भयावह हैं। कोई सोच पा रहा है तो कोई नही सोच पा रहा है।

अवसाद में आत्महत्या और मानसिक बीमारी

यह तीसरा अनुमान था। इसके नतीजे भी आने लगे हैं। लगातार घरों में बंद रहने, रोजगार और संभावनायें क्षीण होने के कारण लोग अवसाद में हैं और खौफनाक कदम उठाने लगे हैं। केवल बस्ती जिले की बात करें तो यहां 5 से 10 अप्रैल तक 5 लोगों ने अपनी जीवनलीला खत्म कर लिया। कोई हाई प्रोफाइल का नही है। परिवार में विवाद भी नही था, आखिर उन्हे आत्मत्यि का फैसलना क्यों करना पड़ा। 5 फरवरी को लालगंज थाना क्षेत्र के महादेवा चैराहे पर पान की दुकान लगाने वाले धुसनाखोर गांव निवासी तुलाराम नाम के अघेड़ ने आत्महत्या कर लिया। 9 अप्रैल को पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र के पचपेड़िया रोड पर टैम्पू चलाने वाले 25 वर्षीय चिराग अली ने फांसी लगा लिया।

इसी दिन रूधौली थाना क्षेत्र के तकरौली गांव में पेड़ से लटकती 28 वर्षीय युवती की लाश मिली, इसी दिन नगर बाजार थाना क्षेत्र के बिरऊपुर गांव में 35 वर्षीय सूरज विश्वकर्मा ने आत्महत्या कर लिया। 10 अप्रैल को कप्तानगंज थाना क्षेत्र मे कजरी कुंड वन बिहार के पास पेड़ से लटकती 22 साल के अशोक कुमार की लाश मिली। ऐसा गारण्टी के साथ नही कहा जा सकता कि सभी आत्महत्याओं का कारण लॉकडाउन से उपजा अवसाद ही रहा होगा। लेकिन इस सच को भी नकारा नही जा सकता कि जब जीवन में अस्थिरता का माहौल हो, संभावनायें क्षीण हों, भयंकर बेरोजगारी हो तो व्यक्ति का अवसादग्रस्त होना स्वाभाविक है। हालांकि ऐसे लोगों को समझना चाहिये कि आत्महत्या सबसे कमजोर विकल्प है। रास्ते और भी हैं। यह यादि रखना होगा, जब सारे रास्ते और विकल्प बंद हो जाते हैं तो एक नई उम्मीद आशा की किरण लेकर आती है, हम सकारात्मक सोचे तो इसमे अनंत संभावनायें छिपी होती हैं, हमे इन्ही संभावनाओं पर काम करना होगा।

ओवर रेटिंग से भी बढ़ी मुश्किल

ओवररेटिंग का अनुमान था। लॉकडाउन की घोषणा के बाद दुकानदारों ने ओवररेटिंग कर सामाना बेंचना शुरू कर दिया। सरकार से लेकर जिला प्रशासन तक सभी स्तरों पर जरूरी चीजों के दाम तय कर लिस्ट सार्वजनिक की गयी है। बावजूद इसके बढ़े हुये दामों पर सामान बेंचे जा रहे हैं। दुकानदारों का कहना है कि तय किये गये दाम अव्यवहारिक हैं। जब सामान मंहगे खरीदे जा रेह हैं तो मंहगा बिकना स्वाभाविक है। लिस्ट जारी कर देने से वस्तुओं के दाम नियंत्रित नही होते, मण्डी भी जाकर थोक रेट का पता करना चाहिये, और दाम वहां नियंत्रित करना चाहिये।

उपरोक्त सभी साइड इफेक्ट तात्कालिक हैं जो दिखाई दे रहे हैं। लॉकडाउन और कोरोना अनेकों बदलाव लेकर आयेगा। राजनीतिक दलों के नेता रैलियां भूल जायेंगे, सैकड़ों बारातियों को लेकर शादियों में धमाल मचाना लोग भूल जायेंगे, केवल परिवारीजन ही समारोहों का हिस्स बनेंगे। हर कोई भीड़ का हिस्सा बनने से परहेज करेगा। हर कोई दूसरे से दूरी बनाकर रहेगा। सोशल डिस्टेंस का प्रचार काफी हो चुका है जबकि हमें फिजिकल डिस्टेंस बनाना चाहिये था। इतना ही नही दुनियां अब तक की सबड़े बड़ी मंदी देखेगी। इन सबके मायने निकलने में अभी वक्त लगेगा। फिलहाल सभी को एक बड़े बदलाव के लिये अभी से तैयार रहना होगा।

सामने आई सीएम योगी की संवेदनशील छबि

हालांकि पलायन के दौरान उ.प्र. की योगी सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई और जो व्यवस्था दी उसका कोई जवाब नहीं। उनके द्वारा कोरोना कण्ट्रोल के लिये स्पेशल टीम बनाना, जांच के लिये लैब डेवलप करना, गरीबों मजदूरों के खातों में सहायता राशि, पेंशन आदि भेजना, यात्रियों के लिये बसें चलवाना, आवश्यक वस्तुओं के दाम तय करना, कोरोना से जुड़े मामलों का खुद मॉनीटरिंग करना सीएम योगी की सूझबूझ और निर्णय लेने की क्षमता उजागर करता है। ऐसा करके उन्होने तमाम मुद्दों को लेकर अपने ऊपर लग रहे अक्षम मुख्यमंत्री का दाग भी धो लिया।


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