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लॉकडाउन पार्ट-2ः बांद्रा स्टेशन पर बेकाबू हुये हालात, घर जाने को निकले हजारों मजदूर, पुलिस ने पीटा

Posted on: Tue, 14, Apr 2020 7:55 PM (IST)
लॉकडाउन पार्ट-2ः बांद्रा स्टेशन पर बेकाबू हुये हालात, घर जाने को निकले हजारों मजदूर, पुलिस ने पीटा

अशोक श्रीवास्तवः लॉकडाउन खुलने और रेल सेवायें शुरू होने की अफवाहों ने सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी तैसी कर दी। मामला मुंकई के बांद्रा स्टेशन का है जहां हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर घर जाने की उम्मीद लेकर अचानक पहुंच गये। बेकाबू हो रही भीड़ को तितर बितर करने के लिये पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। पुलिस को आक्रामक देख स्टेशन पर अफरा तफरी मच गयी। हर कोई खुद को बचाने के लिये भागने लगा। आधे घण्टे में पूरा स्टेशन खाली करा लिया गया। इस दौरान कई लोगों को चोटें आईं। प्रवासी मजदूर अपने घर जाना चाहते थे। लॉकडाउन पीरियड में इतनी बड़ी संख्या में मजदूर बांद्रा स्टेशन तक कैसे पहुंचे यह एक बड़ा सवाल है। फिलहाल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केन्द्र सरकार को इसके लिये जिम्मेदार ठहराया है। आपको बता दें 21 दिनों का लॉकडाउन खत्म होने के बाद बाहर फंसे मजदूरों को उम्मीद थी।

कि उन्हे घर जाने का अवसर दिया जायेगा। लेकिन बगैर कोई रियायत दिये प्रधानमंत्री ने 03 मई तक के लिये लॉकडाउन बढ़ा दिया। 25 मार्च को घोषित लॉकडाउन पार्ट-1 के दौरान लाखों की संख्या में लोग राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गये। दिल्ली के आनंद बिहार की भीड़ दुनियां भर ने देखी थी, निश्चित तौर पर नीति नियामाकों ने भी देखी होगी। लेकिन इसे गंभीरता से नही लिया गया। नतीजा सभी को पता है। पैदल, टैम्पू, ठेला, साइकिल, बाइक और ट्रकों पर सवार होकर लोग अपनी मंजिल की ओर चल दिये।

ऐसी तस्वीरें और हालात आजाद भारत में कभी नही देखी गयी। इन्हे रोक पाना मुश्किल था। ये रोज कमाने और रोज खाने वाले थे। बड़े शहरों में रहकर अपना परिवार चलाते थे। रोजगार छिन गया तो वे अपने गांव लौटना चाहते थे। इनका और कोई कसूर नही था। यह तो मानव स्वभाव है। विपत्तिकाल में अमीर हो या गरीब अपने परिवार के बीच रहना चाहता है। लेकिन सरकार न तो हालात की कल्पना कर पाई और न ही अचानक घोषित लॉकडाउन से उपजे हालात को काबू कर पाई। 25 मार्च को घोषित लॉकडाउन में तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों से रायशुमारी भी नही की गयी थी। इस बार सभी की राय ली गयी। प्रधानमंत्री का ये कदम स्वागत योग्य है।

लेकिन इस बार भी हालात की कल्पना नही की जा सकी। लॉकडाउन कितने दिनों का होगा, कब ढील और कब सख्ती होगी, इस दौरान हालात कैसे काबू किये जायेंगे, इन सब सवालों के जवाब गौड़ हैं इससे पहले इस पर बात होनी चाहिये कि प्रवासी मजदूर अपने घर कैसे पहुचेंगे। चाहे जो हालात हों और चाहे जितनी सख्ती हो कल्चर और सोच एक दिन में नही बदलता और यहां का कल्चर है विपत्तिकाल में हर व्यक्ति अपनों के बीच में रहना चाहता है। आसपास अस्थिरता का वातावरण बार बार व्यक्ति को विचलित करता है। लोग मानते हैं चाहे जितनी बड़ी विपत्ति आयेगी साथ रहकर झेलेंगे।

लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के पहले सरकार को इस पर जरूर विचार करना चाहिये था कि प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक जाने का साधन दिया जाये। लेकिन इस पर विचार नही किया गया और न रायशुमारी के दौरान प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर खींचा गया। लॉकडाउन-1 की घोषण के बाद वाले हालात फिर पैदा हुये और लोग पैदल, साइकिल बाइक टैम्पू से अपने घर चल दिये तो क्या होगा। डंडा मारकर कैसे समझायेंगे। फिलहाल ये पूरी जंग धैर्य और संयम से ही जीती जा सकती है। जरा सा विचलित हुये तो अपने साथ साथ देश और समाज को क्षति पहुचायेंगे।

घर में रहना बेहतर है। खुद अपनी व्यवस्था कीं। एक महीने से कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है। तरह तरह के दावे कर जनता क पेट भरने वाली सरकार अभी तक हर परिवार को मॉस्क और सेनेटाइजर तक नही मुहैया करवा पाई है। घर में मास्क बना लें या गमछा लगाकर मुंह नाक ढककर चलें। हर दूसरे दिन मॉस्क या गमछा साफ करते रहें। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रखें इसके लिये आयुष मंत्रालय के नुस्खे पर अमल कर सकते हैं। खांसते छीकते समय सवाधानी बरतें। ऐसे समय में टिशू पेपर या रूमाल से नाक और मुंह ढकें। सोशल डिस्टेंस की अब आदत डाल लें। यह हमेशा याद रखे, हम मानव है, सर्वशक्तिमान नही हैं। एक हद तक कोशिश कर सकते हैं बाकी को भगवान और परिस्थितियों पर छोड़कर चिंतामुक्त रहिये।


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