पत्रकारिता पर कोई संकट नहीं, अपना आचरण सुधारें पत्रकारः अशोक श्रीवास्तव

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। ये सफर अब 197 साल पुराना हो गया। इस बीच पत्रकारिता की तमाम नई विधायें जुड़ गयीं। इसके साथ ही जिन आदर्शों पर पत्रकारिता की शरूआत हुई थी अब वह दूर दूर तक दिखाई नहीं देती, अब पत्रकारिता मिशन नही रही। पूरी पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान पॉवरफुल लोगों के साथ खड़े हैं। एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है।
अखबारों या समाचार माध्यमों में क्या छपेगा और क्या छिपेगा यह संपादक नही तय करता, इसे अब मार्केटिंग हेड तय करता है जो तनख्वाहशुदा व्यक्ति होता है। उसे इस बात का ज्ञान कम होता है कि कौन सा समाचार या फीचर समाज के लिये उपयोगी है, बल्कि उसे अच्छी जानकारी होती है कि क्या छपने से अखबार का व्यापार ऊंचाइयों को छुयेगा। समाचारों का प्रकाशन जब व्यापार बन गया तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि उन आदर्शों में अब कितना दम बंचा होगा जिनको लेकर उदंड मार्तण्ड अखबार निकाला गया होगा।
पत्रकारिता पूरी तरह अर्थप्रधान हो चुकी हैं होना भी चाहिये, देश भी अर्थ प्रधान हो रहा है। अब नैतिक मूल्यों की बात बेमानी होती जा रही है। राजनीति, वकालत, डाक्टरी में कितना आदर्श बंचा है बताने की जरूरत नही है। इसी मिट्टी की उपज पत्रकार भी हैं। सरकारी नौकरी मिलती है तो अभिभावक और सभी जानने वाले पूछते हैं कि ऊपर की आमदनी कितनी हो जो जाती है। ये बात और है कि इमानदारी का उदाहरण देना होता है तो वे लालबहादुर शास्त्री को याद करना नही भूलते। केवल कल्पनाओं से कुछ नही होता, कोई किरदार पसंद है तो उसे जीना पड़ता है। तकलीफें सहनी पड़ती हैं।
नई पीढ़ी के पत्रकारों की जेब में 500 रूपया कोई डाल देता है या मदद कर देता है तो पत्रकार उसका ऐसा महिमामंडन करते हैं कि उनका वश चले तो भारतरत्न छपवाकर उनका दे आयें। हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष कोई संकट न था और है, आगे भी नही रहेगा। संकट पत्रकारों के आचरण में आई गिरावट का रहा है और आगे भी रहेगा। मनुष्य प्रजाति ही ऐसी है जो काम लोभ छोड़ नही पाता। ऐसे में मूल्यों का क्षरण कोई आश्चर्यजनक बात नहीं। आज इस संपादकीय के माध्यम से पत्रकारिता क्षेत्र में आ रही युवा पीढ़ी से कहना चाहेंगे कि आचरण जैसा भी करो, उसका रिटर्न किसी न रूप में आपको मिलेगा।
लेकिन एक बात हमेशा याद रखना पत्रकारिता कभी पेशा नही हो सकती। यह मिशन है और मिशन रहेगी। आदर्शों पर चलने वाले हर देश काल परिस्थिति में मुट्ठी भर ही रहते हैं। बहुत हैरान होने की जरूरत नही है। ऐसे में पत्रकारिता क्षेत्र में पूरे स्वाभिमान के साथ टिके रहने के लिये कोई व्यापार जरूर करें, जहां से आपके परिवार का खर्च चलता रहेगा और अपने बुनियादी जरूरतों के लिये किसी के सामने सिर नही झुकाना पड़ेगा। चुनौतियां आयेंगी लेकिन टिके रहने से ही नई पहचान और ऊंचाइयां मिलेंगी। फिलहाल पत्र और पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े सभी जाने अंजाने साथियों को हार्दिक शुभकामनायें। याद रहे जिन रास्तों पर चल रहे हो वहां कंकड़ पत्थर, कांटे, पहाड़ सब आयेंगे, लक्ष्य एक होना चाहिये पीड़ित लाचार बेबस लोगों की मदद करना।