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23 अप्रैल 2024
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किस सुशासन की शपथ ले रहे हैं अधिकारी ?

Posted on: Fri, 23, Dec 2022 4:18 PM (IST)
किस सुशासन की शपथ ले रहे हैं अधिकारी ?

संपादकीय (अशोक श्रीवास्तव) बस्ती जिले में बड़ा बड़ा बड़ा मंच लगाकर सुशासन की शपथ ली जा रही है, सच्चाई ये है कि लापरवाह अफसर सुशासन की मंशा पर खुद ही पानी फेर रहे हैं। बनकटी विकास क्षेत्र के बेहिल ग्राम पंचायत में 1 करोड़ 70 लाख रूपये की लागत से बना वाटर हेड टैंक सफेद हाथी साबित हो रहा है। पिछले 18 माह से ग्रामीणों को एक बूंद पानी नही मिला है।

अधिशाषी अभियन्ता की रिपोर्ट में बताया गया है कि स्टार्टर खराब होने के नाते पानी की सप्लाई बंद है। स्टार्टर खरीदने का पैसा ठेकेदार और जिला प्रशासन के पास नही है। बेहिल निवासी गंगाराम इस बावत कई बार शिकायत कर चुका है, नतीजा सिफर है। अब वह गांव में स्टार्टर खरीदने के लिये चंदा वसूल रहा है। उसका कहना है कि प्रशासन स्टार्टर खरीदने में अक्षम साबित हो रहा है, भीख मांगकर स्टार्टर खरीदेंगे और पानी की आपूर्ति बहाल करायेंगे। इससे अफसरों की जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का अंदाजा लगा सकते हैं।

ऐसे अनेक मामले हैं जिसमे अधिकारी सरकार की छबि खराब करने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। इसी गांव में गंगाराम की शिकायत पर 457 जॉब कार्डों में फर्जी पाये गये 212 जॉब कार्ड निरस्त कर दिये गये लेकिन इन फर्जी कार्डों पर पर ली गई मजदूरी की रिकवरी नही कराई गयी। सीडीओ आफिस से चलकर आदेश डीपीआरओ कार्यालय से गायब हो जाता है। आलम ये है कि सरकारी योजनाओं का जितना लाभ पात्रों को मिल रहा है उतना ही अपात्रों को भी। रूधौली विकास क्षेत्र के नेवादा ग्राम पंचायत में लकवाग्रस्त, शादी के बाद ससुराल रह रही महिलायें, अच्छी खासी पूंजी लगाकर व्यापार कर रहे लोग भी मनरेगा के जॉबकार्ड धारक हैं और मजदूरी का भुगतान ले रहे हैं।

इमिलिया गांव असलम के असलम ने शिकायत किया है, देखना है उसे सुशासन का कितना लाभ मिलता है। जिलाधिकारी, सीडीओ कई बार आदेश जारी कर चुके हैं कि सड़क पर घूम रहे छुट्टा पशुओं को गौशालाओं में संरक्षित किया जाये, इसमें जनता को कितनी राहत मिली है सभी जानते हैं। छुट्टा जानवरों से टकराकर अथवा उनके हमलों से लोगों की असमय मौत हो रही है। शहरी क्षेत्र में बंदरों ने जीना हराम कर दिया है। सड़कें बेहद खराब हैं, नालियां चोक हैं, शहर में गंदगी का अंबार है। शौचालयों और यूरिनल में गंदगी इतनी कि इस्तेमाल के लायक नही हैं। 50 फीसदी स्ट्रीट लाइटें खराब हैं।

अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सक नही हैं। न्यूरोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट की तैनाती की मांग करते करते जनता थक हार चुकी है। अस्पतालों में दवाइयां बाहर से लिखी जा रही है। रेडियोलाजिस्ट न होने से मरीजों को बाहर से जांच करानी पड़ रही है। आरटीओ, रजिस्ट्री दफ्तर, राजस्व विभाग में बगैर रिश्वत दिये काम नही हो सकता चाहे जनता सिर पटककर मर जाये। अधिकारी किस सुशासन की कसम खा रहे हैं समझ से परे है।

परिषदीय विद्यालयों में शैक्षिक सत्र दो महीने बाद समाप्त हो जायेगा, बच्चों को किताबें नसीब नही हुईं। कड़ाके की ठंड और शीतलहर में बच्चे स्कूल जा रहे हैं, उन्हे स्वेटर नही मिला। स्कूलों में कहीं बाउण्ड्री तो कहीं पेयजल तो कहीं शौचालय सुशासन की हकीकत बयां कर रहे हैं। कई परिष्दीय विद्यालयों की जमीनों पर अवैध कब्जा है, प्रशासन इसे हटवाने में नाकाम साबित हो रहा है। न्यायिक अधिकारी महीना भर नही बैठते, पीड़ित को तारीख पर तारीख दी जा रही है। साक्ष्य के साथ की गई शिकायतें भी दफ्तरों में धूंल फांक रही हैं।

न्यायमूर्तियों की न्यायपीठ के पास बैठे पेशकार और कार्यालय के सहायक धड़ल्ले से रिश्वत ले रहे हैं। दबंग मार पीट कर अधमरा कर दे रहे हैं, पुलिस थानों में मेडिकल और एफआईआर दर्ज कराने में पीड़ितों को पसीना छूट रहा है, जिम्मेदार अफसर किस सुशासन की शपथ ले रहे हैं, समझ से परे है। लोगों को समय से न्याय न मिले, समस्याओं और शिकायतों के सम्यक निस्तारण न हों, अपराधों को रजिस्टर करने में हीलाहवाली हो, अफसर सहज और सुलभ न हो, उनके पास पहुचकर पीड़ित राहत न महसूस करे, तो किस सुशासन की ढोल पीटी जा रही है। बेहतर होगा बेसुरा राग अलापने की बजाय कार्य संस्कृति बदली जाये और पीड़ितों को राहत पहुंचाने की हर कोशिश की जाये, वरना सुशासन की शपथ महज दिखावा साबित होगी और धीरे धीरे लोकतंत्र निष्प्राण होता जायेगा।


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