जानिये नफरत कौन फैला रहा है वेब पोर्टल्स या कोई और ?
अशोक श्रीवास्तव की संपादकीय- कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आई थी कि वेब पोर्टल्स नफरत फैला रहे हैं, वेब पोर्टल्स पर ताकतवर लोगों का नियंत्रण है, वेब पोर्टल्स व्यक्ति ही संस्थाओं के खिलाफ भी बहुत बुरा लिखते हैं। बात जहां से भी उठी हो हर बात के माकूल जवाब हैं। फर्क बस इतना है खामियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिये, पूरे सिस्टम को दोषी करार देना उचित नही है।
साल 2014 के चुनाव में चुनाव में बिहार में राजनीतिक रैलियों के दौरान देश के एक बड़े नेता ने तीन राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को थ्री इडियट कहा था। उसी के कुछ साल बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता बदलती है, दूसरी सरकार का गठन होता है और जो नया मुख्यमंत्री आता है वह पूरी विधानसभा को गंगाजल से धुलवाता है। अब इन दिनों हर मंच से पूर्व मुख्यमंत्री के पिता को अब्बाजान कहकर उनके पूरे कुनबे को खुले आम गाली दी जा रही है और प्रदेश बर्दाश्त कर रहा है। अभी उक दिन पहले कांग्रेस को आतंकवाद की जननी कहा गया। इसका मतलब ये नही कि प्रदेश की जनता और राजनीतिक दल नपुंसक हो गये है, बल्कि इसका मतलब ये है कि धीरे धीरे लोकतंत्र मर रहा है।
प्रायः ऐसी स्थितियां तब आती हैं जब प्रचण्ड बहुमत की सरकारें बनती हैं। वहां हिटलरशाही, कट्टरवाद जन्म लेता है और लोकतंत्र दम तोड़ने लगता है। उपरोक्त 4 उदाहरणों से समझा जा सकता है कि नफरत कौन फैला रहा है। अगर देश में अदालतें हैं तो इसे स्वतः सज्ञान क्यों नही लेती ? दिल्ली में कोरोना काल में मजलिस का आयोजन करने वाले मुसलमानों को आतंकवादी कहा गया, एक बिकाऊ चैनल का रिपोर्टर चीखते चीखते बीमार हो गया, लेकिन उसने उस वक्त सवाल नही उठाया जब हरिद्वार के कुभ में 29 लाख श्रद्धालु पहुंचे। कोरोना काल में जब पूरा देश दहशत के साये में जी रहा था, दो गज दूरी जिंदा रहने का सबसे प्रथम सिद्धान्त बन गया था दस वक्त कुंभ में 29 लाख लोगों के इकट्ठा होने पर सवाल आखिर कौन उठायेगा ?
किसी हिन्दू के पिता को आप अब्बाजान कहेंगे तो उसे कैसा लगेगा, आप जरा महसूस करेंगे, वह भी पूर्व मुख्यमंत्री हो। ऐसा कहना न केवल उनके पूरे कुनबे को गाली दी जा रही है बल्कि पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचाया जा रहा है। आप किसी कार्यकर्ता से अकेले में पूछिये कि इस पर उसकी क्या टिप्पणी है, आपको खुद पता चल जायेगा कि समाज में जो जहर बोया जा रहा है उसका असर कितना खतरनाक है। देश को आजादी मिलने के बाद उत्तर प्रदेश में 22 बार कांग्रेस की सरकार थी, हम सभी इसी पीरियड में पले बढ़े हैं। हम लोगों का पोषण एक ऐसी सरकार ने किया था जो आतंकवादियों की जननी थी।
यानी उस कालखण्ड में जन्म लेने वाले सभी आतंकवादियों की औलाद हैं। एक मुख्यमंत्री को ये भाषा किसी भी सूरत में शोभा नही देती। हम नही जानते वे कैसा प्रदेश बनाना चाहते हैं लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि ऐसा बयान देने वाले समाज या राष्ट्र के सचेतक किसी कीमत पर नही हो सकते। राजनीति में अपना समीकरण सेट करके मुकाम पा लेने का ये मतलब नही कि वहां से कुछ भी कहा जाये उसे उचित समझा जायेगा। हम फिर वापस सीजेआई के कमेन्ट पर आना चाहते हैं। उन्होने कहा है कि वेब पोर्टल्स व्यक्तियों ही नही संस्थाओं के खिलाफ भी बहुत बुरा लिखते हैं। दरअसल सच्चाई ये है कि डिजिटल मीडिया के आने के बाद ही देश में अभिव्यक्ति की असली आजादी आई, ये बहुत कम लोगों को बर्दाश्त हो पा रही है।
शालीनता की परिधि में रहकर, संसदीय भाषा में किसी भी राजनीति, सामाजिक और आर्थिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाई जा सकती है। पहले गिने चुने समाचार माध्यम होते थे, बातें इतने बड़े पैमाने पर वायरल नही हेती थीं, अब बड़ा कहे जाने वाले समाचार माध्यम जब तक खबरे कागज पर छापकर जनता के बीच पहुंचाते हैं तब तक हर खबर बासी हो जाती है। ये माध्यम अब उतने ही बचे हैं जैसे पुरानी आदत छूटते छूटते ही छूटती है। वक्त लगता है। आजकल जो अखबार खरीदते हैं वे इसलिये खरीदते हैं कि उनकी पुरानी आदत है। ऐसे समाचार माध्यमों में खबरे छापने और छिपाने का दबाव भी समय समय पर आता है। लेकिन डिजिटल समाचार माध्यमों की संख्या इतना ज्यादा है कि अब यह कोरी कल्पना बनकर रह गयी है। रोकते रोकते भी खबर वेब पोर्टल्स पर चल जाती है।
जहा तक संस्थाओं की बात है तो मासूम बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में लोवर कोर्ट 10 साल की सजा सुनाता है, वैसे ही एक दूसरे मामले में हाईकोर्ट मुत्यु दण्ड की सजा सुनाता है तो इसकी समीक्षा कौन समाज करेगा ? किसकी जिम्मेदारी है ये ?ऐसा होने पर क्या पीड़ित पक्ष और कुनबा कानून से नफरत नही करने लगेगा ? दोनो न्यायविदों के लिये क्या अलग अलग किताबें हैं ? वेब पोर्टल्स को लेकर एक टिप्पणी ये भी आई है कि इन पर प्रभावशाली लोगों का नियंत्रण है। सवाल ये उठता है क्या इससे पहले संचालित किये जा रहे समाचार माध्यमों पर प्रभावशाली लोगों का नियंत्रण नही है ?
हर दल और हर प्रभावशाली आदमी के अपने समाचार माध्यम हैं। कहीं बात जाहिर है तो कहीं छिपी हुई है। फिलहाल मै वेब पोर्टल्स पर लगाये सभी आरोपों का खण्डन करता हूं और यह अपील करना चाहता हूं कि समाचार माध्यम कोई हों जब जब इन्हे नियंत्रित करने की कोशिश की गयी है या इनकी आजादी छीनने का प्रयत्न किया गया है, माध्यम और सशक्त होकर उभरे हैं। जहां तक वेब पोर्टल्स की बात है, सरकार को एक पॉलिसी बनाकर ऐसे सभी माध्यमों को सहजता से सूचीबद्ध करना चाहिये। अभिव्यक्ति के आजादी की जो धारा अब देश में प्रवाहित हो रही है उसे अवरूद्ध नही किया जा सकता।