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29 मार्च 2024
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भीड़ से निराश हुये भूपेश बघेल, मिस मैनेजमेंट से अपने भी ख़फा

Posted on: Fri, 10, Dec 2021 8:53 AM (IST)
भीड़ से निराश हुये भूपेश बघेल, मिस मैनेजमेंट से अपने भी ख़फा

बस्तीः कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व पार्टी में सब कुछ ठीक मानकर विधानसभा चुनाव 2022 में सम्मानजनक जीत के सपने देख रहा है लेकिन जिलों में सांगठनिक कमजोरी और आपसी सिरफुटव्वल नेतृत्व के सपनों पर पानी फेर सकता है। जिला स्तर पर संगठन की मॉनीटरिंग सही ढंग से नही की गयी तो कांग्रेस के वनवास की अवधि और लम्बी हो सकती है।

दरअसल बस्ती समेत कई जिलों में संगठन में एका की कमी है। पदाधिकारियों में वैचारिक भिन्नता इतनी ज्यादा है कि पार्टी कई टुकड़ों में बंटी है। एक गुट दूसरे को देखना नही चाहता, या फिर समय मिलने पर नीचा दिखाने का मौका नही छोड़ना चाहता। हम बात करते हैं बस्ती जिले की और संदर्भ लेते हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आगमन पर 07 दिसम्बर को रूधौली में आयोजित किसान सम्मेलन का। यहां सभी विधानसभाओं के कांग्रेस नेता पहुंचे थे, हालांकि जनता नही पहुंची, क्योंकि इसके लिये प्रयास नही किये गये। जनपद मुख्यालय छोड़कर सुदूर रूधौली विधानसभा के ग्रामीण अंचल में आयोजित इस कार्यक्रम को आयोजित करने का श्रेय यहां से टिकट के प्रबल दावेदार कहे जा रहे बसंत चैधरी को जाता है।

गैर विधानसभा में आयोजित कार्यक्रम में पार्टी के नेता केवल अपना शरीर लेकर पहुंचे। यहां से टिकट मांग रहे व्यापारी बसंत चैधरी को मुख्यमंत्री की सभा में 2 हजार लोगों की भीड़ जुटाने में पसीना छूट गया। कहने को उनका पूरा कुनबा लगा था लेकिन न कोई प्रचार प्रसार और न ही जनसंपर्क। कार्यक्रम की सफलता रामभरोसे छोड़ दी गयी। अंततः कार्यक्रम मिस मैनेजमेंट का शिकार हो गया। करीब दो दर्जन दिग्गज कांग्रेसी कार्यक्रम स्थल से नाराज होकर बगैर मुख्यमंत्री के सुने ही चल दिये। लोगों ने मान मनौव्वल की कोशिश की लेकिन बेनतीजा रहा। आरोप लगा कि उन्हे तरजीह नही दी गयी। कार्यक्रम मुट्ठी भर लोगों के इर्दगिर्द ही रह गया। हालांकि रूधौली मे मुख्यमंत्री का कार्यक्रम आयोजित कियें जाने को लेकर भी कांग्रेसियों में मुनमुटाव था।

फिलहाल कार्यक्रम में तौहीन नागवार लगी और लोग नाराज होकर चल दिये। जब मुख्यमंत्री 30 किमी बस्ती से दूर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे उस वक्त लोग वापस बस्ती पहुंच गये। ये कार्यक्रम कांग्रेस के लिये सेमीफाइनल था। इसकी सफलता से जनता में एक अच्छा संदेश जाता और कांग्रेसी नेता जिला स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को भी सफल बना ले जाते। लेकिन सेमीफाइनल के नतीजों ने नेतृत्व को काफी निराश किया। खबर है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेले ने भी भीड़ को लेकर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी। अब आप कांग्रेस की ताकत का अंदाजा लगा सकते हैं, विधानसभा चुनाव में टिकट मांगने वाले कद्दावर भी 2 हजार की भीड़ में सिमटकर रह गये। यही हाल रहा तो व्यापारी से नेता बनने की मंशा धरी रह जायेगी।

अब बात करते हैं जिले के संगठन की। जिला स्तर पर संगठन के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण नेताओं का आपस में तालमेल न होना है। दरअसल जिलाध्यक्ष को 50 प्लस वाले कांग्रेसी पसंद नही करते। जो कई दशक से कांग्रेस के लिये काम कर रहे हैं, खुद को उनसे ज्यादा अनुभवी मानते हैं उन्हे जिलाध्यक्ष का आदेश मानना पड़ता है, कहीं न कहीं उनका सुपिरारिटी काम्प्लेक्स बीच में आ जाता है। आजिज आकर कुछ महीने पहले जिलाध्यक्ष ने पार्टी नेतृत्व को अपना इस्तीफा भेज दिया था। लेकिन मान मनौव्वल के बाद वे मान गये और पुनः जिम्मेदारी संभालने लगे। लेकिन 50 प्लस वाले कांग्रेसियों से बेहतर तालमेल आज भी नही है।

इतना ही नही विगत दिनों प्रदेश महासचिव जयकरन वर्मा और प्रदेश सचिव करमराज यादव की प्रेस वार्ता के बाद तो एक युवा नेता से हाथापाई की नौबत आ गई। कुछ लोगों ने बीच बचाव न किया होता तो हालात धरपकड़, और मारपीट तक पहुंच जाते। ये सब प्रदेश महासचिव और सचिव की मौजूदगी में हुआ तो आप समझ सकते हैं जब आपस में लोग बैठते होंगे तो कितना बेहतर तालमेल होंगा। विधानसभा चुनाव निकट है और एक ताकतवर पार्टी सत्ता में है, जो अच्छा काम करती हो या न करती हो लेकिन चुनाव जीतने के तरीके उससे बढ़िया किसी दूसरे दल के पास नही हैं। ऐसे में काग्रेस की इन तैयारियों के बलबूते तो रनर का खिताब भी नही जुटा पायेंगे जीत की बात तो इन हालातों में बेमानी है।


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