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25 अप्रैल 2024
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बेबस, लाचार जनता को चिढ़ाने के लिये है स्वनिधि दीपोत्सव

Posted on: Fri, 29, Oct 2021 9:28 AM (IST)
बेबस, लाचार जनता को चिढ़ाने के लिये है स्वनिधि दीपोत्सव

बस्ती, उ.प्र.। शहर के एपीएन पीजी कालेज में आयोजित स्वनिधि दीपोत्सव कार्यक्रम फ्लाप शो साबित हो रहा है। पहले दिन ही दर्शकों की संख्या बहुत कम रही। पंडाल में कुर्सियां खाली पड़ी थीं। सत्ताधारी दल के नेता न हों तो दर्शकों की संख्या कलाकारों को निराश करने वाली होगी। एक्सपर्ट की मानें तो मंच और बैठे की व्यवस्था भी सटीक नही है। कार्यक्रम को लेकर शुरू से सवाल उठ रहे हैं।

दो बार कोरोना का कहर झेलने के बाद मुश्किल से धीरे धीरे व्यवस्था और गृहस्थी पटरी पर आ रही थी। इस बीच आसमान छू रही महंगाई जनता को असहनीय दर्द रही है। 106 रूपये पेट्रोल, 195 रूपये में 900 एमएल फारचून, 190 रूपये ली. सरसों का तेल, सेब से महंबा टमाटर, 80 रूपये किलों परवल व रोज के जरूरत की चीजें जनता कैसे खरीद रही है ये सभी को पता है। ऐसे में स्वनिधि महोत्सव लोगों की समझ से परे है। ऐसे विरीत परिस्थितियों में उत्सव और महोत्सव के आयोजन का साहस सिर्फ मौजूदा सरकार और स्थानीय प्रशासन ही कर सकता है। प्रबुद्ध इसका मन ही मन विरोध कर रहा है और आलोचना भी।

लोग सवाल उठा रहे हैं स्वनिधि क्या है ? इस उत्सव की जरूरत क्यों पड़ी ? इसके जरिये शासन प्रशासन जनता को क्या संदेश देना चाहता है ? इस आयोजन मे खर्च हो रही भारी भरकम धनराशि कहां से आ रही है ? यदि क्राउड फण्डिंग से कार्यक्रम हो रहा है तो फण्डिंग करने वाले कौन लोग हैं ? उनके पास ऐसे निरर्थक आयोजनों पर खर्च करने के लिये पैसे कहां से आ रहे हैं ? सूत्रों की मानें तो प्रधानों को जांच कराने की धमकी देकर से वसूली की गयी हैं। ऐसे अनेक सवाल हैं जो जनमानस के मन में उठ रहे हैं।

कार्यक्रम में कोविड प्रोटोकाल भी हाशिये पर है। न कोई मास्क लगाकर आ रहा है और न ही उचित दूरी का पालन किया जा रहा है। छोटे छोटे कार्यक्रमों के आयोजनों की अनुमति देने में जो प्रशासन आनाकानी करता है वह खुद के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कोविड प्रोटोकाल की ऐसी तैसी करने में जुटा है। याद रहे ऐसी ही लापरवाहियों के बीच कोरोना दूसरी बार आया था। वर्तमान में उ.प्र. में 102 मरीज एक्टिव हैं।

गुरूवार को प्रदेश में 11 नये मरीज मिले हैं। निजी कार्यक्रम के आयोजन में आयोजक को कोविड प्रोटोकाल का पाठ पढ़ाने वाले प्रशासनिक अधिकारियों ने खुद के आयोजन में पैमाना बदल दिया है। फिलहाल ऐसे कार्यक्रमों में रूचि लेने वाले अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को एक बार जनता के बीच जाकर कमरतोड़ महंगाई, खराब सड़कों, छुट्टा जानवरों, बदहाल शिक्षा, कानून व्यवस्था, बढ़ते अपराधों और बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर जनता का दर्द भी जान लेना चाहिये, वरना यही समझा जायेगा कि मजबूर लाचार परेशान जनता की छाती पर यह ऐसा उत्सव महज उन्हे चिढ़ाने के लिये है।


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