सेवा, सिद्धान्त हाशिये पर, स्वार्थ की राजनीति सिर माथे पर
अशोक श्रीवास्तवः राजनीति में लोग सेवा के लिये आते हैं और उनके इरादे निजी स्वार्थों पर अटक जाते हैं। जो पार्टी और सिद्धान्त पहले अच्छे लगते हैं कुछ समय बाद उसी पार्टी में लोगों का दम घुटने लगता है। राजनीतिक धोखेबाजी इस कदर अपना मुकाम बनाती जा रही है कि लोग सफाई में यह कहावत कहने लगे हैं राजनीति में कुछ भी हो सकता है ‘एव्री थिंग इज राइट इन पॉलिटिक्स’। ऐसी ही तमाम प्रतिक्रियायें मध्य प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम पर आ रही है। लोग सोशल मीडिया पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वजों को स्वतंत्रता आन्दोलन का गद्दार बताते हुये अंग्रेजों का साथ देने का आरोप लगाया है।
लोगों के ऐसा कहने की गुंजाइश इसलिये बनती है कि अभी 14 दिन पहले दिल्ली में हुई कांग्रेस पार्टी की उच्चस्तरीय बैठक में शामिल हुये सिंधिया ने दिल्ली हिंसा के लिये बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया था। बात 26 फरवरी की है, बैठक में दिल्ली हिंसा में मारे गये लोगों के लिये दो मिनट का मौन भी रखा गया था। ठीक 14 दिन बाद वे बीजेपी के साथ खड़े हो गये। अचानक ऐसा नही हुआ, 26 फरवरी से पहले भी वे बीजेपी के टच में रहे होंगे। दरअसल नेताओं के मन मे जो रहता वह बाहर नही निकलता और जो बाहर निकलता है वह मन में नही रहता। इसीलिये अक्सर ऐसा देखा जाता है जब नेता की जुबान पर जो बात रहती है।
उससे उसकी भाव भंगिमा कतई मेल नही खाती। हसंराज मीणा ने अपने ट्वीटर अकाउण्ट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी में आयोजित एक कार्यक्रम में सिंधिया ने 7000 किसानों को 47 करोड़ रूपये की फसली कर्ज माफी का प्रमाण पत्र बाटा था। उन्होने कार्यक्रम के बाद अपने ट्वीटर पर लिखा था कि कांग्रेस अपने वचन पत्र के एक एक वादे को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध है। कुछ ही दिनों में कांग्रेस उनके लिये बेहद खराब पार्टी हो गयी। यह घटनाक्रम महज बानगी है, ऐसे मामले राजनीति में रोज सामने आते हैं जब नेता अपने आचरण से गिरगिट को भी पीछे छोड़ देते हैं। ऐसे घटनाक्रम और नेताओं के दोहरे चरित्र के बीच जनता को तय करना होगा कि देश को स्वार्थो की राजनीति आगे ले जायेगी या सिद्धान्तों की।