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वैवाहिक जीवन

जानिये कहां निषेध है भोजन

Posted on: Sun, 27, Nov 2016 11:39 AM (IST)
जानिये कहां निषेध है भोजन

भोजन किसके यहयं करना चाहिये किसके यहां नही जानना जरूरी है। आइये आपको बताते हैं कि शास्त्रों में भोजन कहां निषेध किया गया है। चरित्रहीन स्त्री से तात्पर्य ऐसी स्त्री है जो अपनी इच्छा से अनैतिक कृत्यों में लिप्त है। गरुण पुराण के अनुसार जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के हाथ से बना भोजन करता है तो वह उसके द्वारा किए जा रहे पापों को अपने सिर ले लेता है।

आज के समय में यूं तो ब्याज पर पैसा देना और लेना बहुत सामान्य हो गया है लेकिन गरुण पुराण के अनुसार ब्याज पर पैसे देना और सूद समेत वापस लेना निर्धन लोगों की मजबूरी का फायदा उठाना है। जो व्यक्ति ऐसा करता है वह तो अत्याचारी होता ही है साथ ही उस व्यक्ति के घर भोजन करने वाला व्यक्ति भी उसके पाप का भागीदार हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति गंभीर रोग से पीड़ित होता है या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे कोई असाध्य रोग अपनी चपेट में लिए हुए है, उसके घर भोजन करने से आप भी उस रोग की चपेट में आ जाते हैं। सामाजिक और धार्मिक, दोनों ही तौर पर क्रोध को इंसान का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। गरुण पुराण में उल्लिखित है कि जो व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति के घर भोजन करता है, उसका मस्तिष्क भी क्रोध की चपेट में आ जाता है। वह भी अच्छे और बुरे में अंतर करना भूल जाता है। हमारी संस्कृति और धर्म-ग्रंथों में किन्नरों को दान करना शुभ बताया गया है। दरअसल किन्नरों को अच्छा-बुरा, हर व्यक्ति दान करता है इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि जिस भोजन को ग्रहण किया जा रहा है वह अच्छे व्यक्ति का है या बुरे, इसलिए किन्नरों के घर भोजन करना निषेध है। दूसरों को कष्ट देने वाले, अमानवीय व्यवहार वाले व्यक्ति के घर भोजन तो दूर की बात है, कदापि प्रवेश तक नहीं करना चाहिए। उसके अनैतिक कार्यों का दंड हमें भी भोगना पड़ सकता है।

प्रजा को परेशान कर, उन पर अत्याचार कर, धन एकत्रित करने वाले निर्दयी राजा या शासक के घर कदापि भोजन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अपने अधीनस्थों पर अत्याचार कर उनसे धन एकत्रित करता है, उसके घर का अन्न पूर्णतरू दूषित होता है।

चुगली करने वाले लोग दूसरों की परेशानी का कारण बनते हैं और आत्मसंतुष्टि के लिए दूसरों को फंसा देते हैं। ये भी किसी पाप से कम नहीं है। ऐसे लोगों के घर भोजन कर उनके पाप का भागीदार नहीं बनना चाहिए। नशा, मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना जा सकता है। जो व्यक्ति ऐसे पदार्थों का व्यापार करता है वह भी पापी ही माना जाएगा। एक पापी के घर कदापि अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए। अकसर लोग फ्रिज में पड़े बासी खाने या फिर खराब हो चुके अन्न को दूषित कहकर उसका त्याग कर देते हैं, लेकिन हमारे शास्त्रों में दूषित अन्न की परिभाषा अन्य शब्दों में ही दी गई है, जो शायद बहुत हद तक ज्यादा सटीक बैठती है।


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