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चुनाव

लोकसभा चुनाव में गायब है स्थानीय मुद्दे

Posted on: Thu, 25, Apr 2019 9:56 AM (IST)
लोकसभा चुनाव में गायब है स्थानीय मुद्दे

अनिल कुमार पाण्डेय-(बस्ती) जिले के 1247 ग्राम पंचायतों व 15 विकास खंडों के 4200 से अधिक ग्राम सभाओं व पुरवों, मजरों में समस्याओं का अंबार है। कुछ पुरवे व मजरे ऐसे हैं, जहां खंभे लगे हैं पर अभी तक बिजली नहीं पहुंची हैं। छोटी-बड़ी 1250 से अधिक सड़कों में से राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश यात्रा के लायक नहीं हैं। धान गेंहूं की सिंचाई के सीजन में न तो नहरें चलती हैं और न ही नलकूप पानी दे देता हैं। किसान पंपसेट से खेत सींचते हैं। जो नलकूप चल रहे हैं वह बिजली के अभाव में ठप पड़े रहते हैं।

यह सब तब है जब चुनाव का समय चल रहा है। कोई राष्ट्रवाद तो कोई जातिवाद के अपनी नाव पार कराने की जुगत में लगा हुआ हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे पूरी तरह से गायब है। मतदान में मात्र 20 दिन का समय शेष है। मतदाता अपनी समस्याओं से जूझ रहा है। राजनीतिक दलों के लोग वोट मांगने गांवों व मजरों तक पहुंच रहे हैं। इन सबके बीच गायब है तो आम जनता की परेशानी का मुद्दा। विक्रमजोत के रघुनाथ कहते हैं कि राजनीतिक दलों ने घोषणा पत्र जारी कर दिया है। लोक लुभावने वादों की झड़ी लग रही है। सभी की झोली में मतदाताओं के लिए कुछ न कुछ जरूर है। जबकि आम मतदाता को पानी, बिजली, सड़क व स्वास्थ्य सेवा की दरकार है। अपने जनपद में जो उपलब्ध है उसको सुधारने की पहल कोई नहीं कर रहा है।

विक्रमजोत के जगदेव त्रिपाठी कहते हैं कि भौंसिया पंप कैनाल में पानी तब आता है जब चारो तरफ बाढ़ आई रहती है। साल भर किसी को इस बात की चिंता नहीं रहती है कि किसान अपने खेत की सिंचाई कैसे कर रहा है। दुबौलिया ब्लाक के बभनपुरा निवासी राधेश्याम ने बताया कि यह क्षेत्र हर साल बाढ़ में डूबता है, बीडी बांध कब धोखा दे जाए कोई पता नहीं। बांध मरम्मत के नाम पर हर साल सरकार का करोड़ों रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता है लेकिन स्थायी निजात के लिए कोई प्रबंध नहीं किया जा रहा है।

धरमूपुर निवासी रामचंद्र वर्षों से बंधे पर झोपड़ी में रह रहे हैं, उनका कहना है कि आज तक उन्हें अथवा उन जैसे सैकड़ों लोगों के बिस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं हुई। हर साल बाढ के मौसम में प्रशासन उन्हें दूसरी जगह जमीन देकर बसाने की बात तो करता है पर बाढ़ उतरते ही सब कुछ भूल जाता है। संवेदनशील एक दर्जन से अधिक गांवों को सुरक्षित करने के लिए अब तक कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हुआ। बालू माफिया राजनैतिक संरक्षण में सरयू की बीच धारा से बालू निकालकर बंधे को दिन प्रतिदिन संवेदनशील बनाते जा रहे है।

इससे निजात का कोई स्थाई प्रबंध नहीं किया जा रहा है। हर पांच साल बाद नेता जनता को मूर्ख बनाकर चले जाते हैं। स्थानीय मुद्दों पर बात हो, नेता उसके समाधान की दिशा में पहल करें तब तो लगे कि उनको हमारी फिक्र है। सभी राजनैतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र को लोक लुभावना बनाने के लिए स्थानीय मुद्दो को पूरी तरह दरकिनार कर देते है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से स्थानीय मुद्दे पूरी तरह गायब है।


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