बस्ती लोकसभा : बसपा पर दारोमदार
समीक्षाः बस्ती लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है। इस सीट पर दो बार शानदार जीत दर्ज करा चुके सांसद हरीश द्विवेदी पर भाजपा नेतृत्व ने इस बार फिर भरोसा जताया है, वहीं इण्डिया गठबंधन की ओर से पूर्व कैबिनेट मंत्री को उम्मीदवार बनाया गया है। वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर मौजूदा सांसद को चुनौतियां दे रहे हैं।
परिस्थितियां नही बदलीं तो दोनो प्रत्याशियों का आमने का मुकाबला होना तय है। दोनो बस्ती जनपद के राजनीति की मुख्य धुरी हैं। हरीश द्विवेदी विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं और पार्टी नेतृत्व का विश्वास जीतने में हमेशा कायमाब रहे हैं। जब जब लोकसभा चुनाव आते हैं अटकलों का दौर शुरू हो जाता है कि इस बार हरीश द्विवेदी को पार्टी टिकट नही देगी। उनकी जगह आधा दर्जन नाम हवा में तैरने लग जाते हैं। लेकिन सभी कयासों को दरकिनार कर हरीश द्विवेदी अपने नाम पर नेतृत्व की मुहर लगवाने में सफल हो जाते हैं। हरीश द्विवेदी के खेमे में अनगिनत समर्पित कार्यकर्ता हैं और विरोधी भी।
जैसे ही चुनाव का बिगुल बजता है उनके विरोधी सक्रिय हो जाते हैं। आरोप है कि उन्होने सबको साथ लेकर चलने की बजाय अनेकों को हाशिये पर कर दिया। तमाम कार्यकर्ता पार्टी की मुख्य धारा में आने को तरस गये लेकिन उनकी मंशा पर पानी फिर गया। हालांकि इसका हरीश द्विवेदी के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा। इस बार वे हैट्रिक लगाने के चक्कर में हैं। लेकिन उनका मुकाबला एक बार फिर पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी से है। उन्हे पिछड़ों, दलितों का नेता कहा जाता है। इस कम्यूनिटी में उनकी अच्छी खासी पकड़ है। वे 9 वीं लोकसभा में खलीलाबाद से सांसद (ज.द.) रहे। इसके बाद वे 1993 से 2017 तक वे लगातार कप्तानगंज से विधायक रहे। 2017 में वे भाजपा प्रत्याशी सीए चन्द्रपकाश शुक्ला से 6827 वोटों के अंतर से चुनाव हार गये थे।
रामप्रसाद चौधरी के बारे में लोगों का मानना है कि वे हर तरह से सक्षम हैं। धनबल, जनसमर्थन, चुनावी रणनीति आदि में उनका कोई मुकाबला नही है। जाहिर है वे चुनाव जीतने के लिये हर हथकंडा अख्तियार करेंगे। 2019 में बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हे पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के चलते पार्टी से निकाल दिया। 2019 में उन्होने सपा-बसपा गठबंधन से चुनाव लड़ा, लेकिन 30,354 वोटों से हरीश द्विवेदी ने उन्हे चुनाव हरा दिया था। राजकिशोर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और तीसरे नम्बर पर रहे। 2014 में हरीश द्विवेदी का मुकाबला सपा के बृजकिशोर सिंह डिम्पल से था। हरीश द्विवेदी 33562 वोटों से चुनाव जीत गये, बृजकिशोर सिंह डिम्पल दूसरे और रामप्रसाद चौधरी तीसरे स्थान पर रहे। परिणाम के साथ साथ 2014 और 2019 के चुनाव की परिस्थितियों को भी समझने की जरूरत है। 2014 में बस्ती की सभी 5 विधासभा सीटों पर भाजपा का परचम था।
आपसी तालमेल भी शुरूआती दौर में था। कुछ कार्यकर्ताओं की नाराजगी थी लेकिन सभी हरीश द्विवेदी को चुनाव जिताने के लिये पूरे मनोयोग से लगे। पिछले 10 सालों में तमाम कार्यकर्ताओं, पूर्व विधायकों और टिकट की लाइन में लगे नेताओं ने दूरी बना लिया, चुनौतियां बड़ी होती गईं। इस बार जनपद के 5 में 3 विधायक उन्हे चुनाव हराने में पूरी ताकत झोंकेंगे। सैद्धान्तिक तौर पर इस बार दो विघायकों का समर्थन मिल रहा है। यानी ताकत पहले से कमजोर हुई है। दूसरी ओर दो दशक से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का सपना सजाकर बैठे कई नेता नाराज हैं। उनका कहना है हर बार एक ही व्यक्ति को अवसर दिया जाना अच्छा नही है। जो कार्यकर्ता पार्टी में तरह तरह के सफल इवेन्ट करते हैं, दरी बिछाने से लेकर मैनेजमेन्ट तक जिम्मेदारियां संभालते हैं उन्हे आखिर कब मौका मिलेगा ?
बसपा पर टिकी निगाहें
चुनावी माहौल हालांकि अभी शवाब पर नही है। राम प्रसाद चौधरी और मौजूदा सांसद लगातार नुक्कड़ सभायें कर रहे हैं। एक सरकार की उपलब्धियां गिनाने में व्यस्त है तो दूसरे उस पर हमले का कोई अवसर छोड़ना नही चाहते। करीब करीब बराबरी के इंस जंग में बसपा की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि बसपा उम्मीदवार ने सवर्ण मतदाताओं में सेंध लगा लिया और उसे 1 लाख के करीब वोट मिले तो मौजूदा सांसद के लिये तीसरी बार चुनाव जीतना आसान नही होगा। इसी रणनीति के तहत बसपा से जिस उम्मीदवार को मैदान में उतरने की संभावना व्यक्त की जा रही है वह भी भाजपाई पृष्ठभूमि के हैं। पूर्व भाजपा अध्यक्ष दयाशंकर मिश्रा का नाम चर्चा मे है। वे साफ सुथरे व्यक्तित्व के धनी हैं, उनका अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल भी निर्विवाद रहा। सामाजिक पकड़ और प्रतिष्ठा में किसी से कम नही हैं। यदि अटकलें सच साबित हुई और वे चुनाव मैदान में उतरे तो लड़ाई त्रिकोणीय हो जायेगी गठबंधन और उम्मीदवार को इसका फायदा होगा।