भाजपा की जीत आसान नही है नगरपालिका में
बस्ती, 01 मई। जिले में निकाय चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। नगरपालिका बस्ती सहित 10 नगर पंचायतों में बहुत कम सीटों पर भाजपा बेहतर स्थिति मे है। लोग प्रत्याशी तय करने में हुई चूक और बीते 5 साल में भाजपा के खराब प्रदर्शन को इसकी वजह बता रहे हैं। नगरपालिका में भी भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। निकाय चुनाव का बिगुल बजने के बाद से ही यहां की तस्वीर सभी को साफ नजर आने लगी थी।
पूरा शहर एक ही नाम को लेकर चर्चा कर रहा था। वह नाम है अंकुर वर्मा की पत्नी नेहा वर्मा का। दरअसल कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल होने के बाद उनकी स्थिति काफी मजबूत नजर आने लगी। भाजपा ने प्रत्याशी की घोषणा की तो उनकी जीत और आसान लगने लगी। लेकिन टिकट न मिलने से नाराज भाजपा नेता आशीष शुक्ल ने अपनी पत्नी नेहा शुक्ला का नामांकन करवा दिया। उनके मैदान में आते ही सारे समीकरण बदलने शुरू हो गये। उनके साथ व्यापक जन समर्थन दिखने लगा है। सहानुभूति का भी उन्हे लाभ मिल रहा है।
दूसरी ओर बीडीए और प्राइवेट स्कूलों के अत्याचार के खिलाफ जनता की आवाज उठाने वाले राजनीतिक संगठन पीआरजे ने व्यापारी नेता आनंद राजपाल की बहू शालू चौधरी राजपाल को मैदान में उतार दिया। व्यापारियों में उनकी गहरी पैठ भाजपा को कमजोर कर रही है। उनके प्रचार में काशी से आई टीम की कैम्पेनिंग का असर देखा जा रहा है। कुल मिलाकर बात की जाये तो भाजपा की जीत आसान नही है। चुनाव मैदान में उतरे अधिकांश प्रत्याशी भाजपा के ही वोटों में सेंध लगा रहे हैं। जबकि पहले से समीकरण में सेट हो चुके समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अंकुर वर्मा के मतों में सेंध नही लग पा रहा है। बसपा प्रत्याशी प्रीती त्रिपाठी भी अपनी प्रतिष्ठा बचाने में लगी हैं। कांग्रेस प्रत्याशी सबीहा खातून के प्रचार में कोई दम नही दिख रहा है।
इन सब चर्चाओं के बीच यह बात बार बार सामने आती है कि ‘अभी देखते रहिये यह भाजपा है, उसे चुनाव लड़ना और जीतना आता है’ जैसे जैसे चुनाव निकट आयेगा समीकरण उसके पक्ष में बदलते जायेंगे। दरअसल पिछले 5 सालों में नगरपालिका का प्रदर्शन बेहद घटिया किस्म का रहा। टूटी फूटी सड़कें, छुट्टा जानवरों का आतंक, जलजमाव, जाम, अतिक्रमण, खराब पड़ी रोड लाइटें, टैक्सी स्टेण्ड का विलुप्त हो जाना, नगरपालिका में छोटे छोटे कार्यों के लिये रिश्वतखोरी, शौचालयों और वाटर कूलरों, दुकानों के आवंटन के नाम पर हुई लूट, किराये में मनमाना बढ़ोत्तरी जैसे जनता के तमाम घावों पर कोई मरहम लगाने नही पहुंचा। सांसद से लेकर स्थानीय प्रशासन तक चुपचाप मनमानी और अत्याचार को बढ़ावा देते रहे। अब गेंद जनता के पाले मे है देखना होगा जनता इन समस्याओं पर मोहर लगाती है या समाधान पर।