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सेहत/प्राकृतिक चिकित्सा

मुंह के कैंसर की राजधानी बना भारत

Posted on: Sun, 03, Feb 2019 11:03 PM (IST)
मुंह के कैंसर की राजधानी बना भारत

नई दिल्लीः स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने विश्व कैंसर दिवस पर लोगों से तंबाकू से दूर रहने की अपील की है। भारत दुनिया की मुंह के कैंसर की राजधानी बन गया है। तंबाकू जनित बीमारियों से हर साल 13.5 लाख भारतीयों की मौत होती है। इसमें तम्बाकू के कारण होने वाले कैंसर से 10 प्रतिशत से अधिक लोग शामिल हैं। तम्बाकू, कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। 90 प्रतिशत मुंह और फेफड़े के कैंसर के साथ-साथ कई अन्य तरह के कैंसर को रोका जा सकता है क्योंकि इनका कारण तंबाकू है। टाटा मेमोरियल सेंटर के हैड नेक कैंसर सर्जन प्रोफेसर डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, मेरे लगभग नब्बे प्रतिशत मरीज तम्बाकू के उपभोक्ता हैं।

हमने पाया है कि धुआं रहित तम्बाकू सेवन करने वालों को कम उम्र में कैंसर हो जाता है और इनकी मृत्यु दर भी अधिक है। अधिकांश उपयोगकर्ता युवावस्था में तम्बाकू का सेवन आकर्षित करने वाले विज्ञापनों और प्रचार के चक्कर में आकर शुरू करते हैं। ऐसे युवाओं की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो जाती है। हमें अपने युवाओं को बचाने के लिए गुटखा, खैनी, पान मसाला आदि के खिलाफ आंदोलन चलाने की आवश्यकता है। भारत की समस्या धूम्रपान से अधिक चबाने वाले तंबाकू की है। ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण, 2017 के अनुसार 10.7 प्रतिशत वयस्क भारतीय (15 वर्ष और उससे अधिक) धूम्रपान करते हैं, जबकि चबाने वाले तंबाकू का सेवन 21.4 प्रतिशत लोग करते हैं। भारत में पान मसाला का विज्ञापन जारी हैं, जो इसी नाम के तंबाकू उत्पादों के लिए भी विपणन को प्रोत्साहन (सरोगेट एडवरटाइजमेंट) दे रहें हैं। सिगरेट और तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) के प्रावधानों के अनुसार तंबाकू उत्पादों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विज्ञापन प्रतिबंधित है। पाया गया है कि देश में धूम्रपान करने वाले 10.7 प्रतिशत वयस्क भारतीय (15 वर्ष और उससे अधिक) की तुलना में धूम्रपान धुआं रहित तंबाकू (एसएलटी) का सेवन करने वाले 21.4 प्रतिशत हैं।

इससे त्रिपुरा (48प्रतिशत), मणिपुर (47.7 प्रतिशत ), ओडिशा (42.9 प्रतिशत ) और असम (41 प्रतिशत ) सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश (3.1 प्रतिशत), जम्मू और कश्मीर (4.3 प्रतिशत), पुदुचेरी (4.7 प्रतिशत) और केरल (5.4 प्रतिशत) सबसे कम प्रभावित राज्य हैं। संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी संजय सेठ ने कहा, “विभिन्न कार्यक्रमों और बड़े आयोजनों में पान मसाला के आकर्षित करने वाले विज्ञापन होते हैं जो तंबाकू उत्पादों के लिए सरोगेट हैं। कई फिल्मी सितारे हॉलीवुड, पियर्स ब्रॉसनन सहित टेलीविजन, सिनेमा और यहां तक कि क्रिकेट मैचों में पान मसाला का प्रचार करते हैं। चबाने वाले तंबाकू के निर्माता पान मसाला का बहुत विज्ञापन कर रहे हैं, लेकिन जब आप पान मसाला खरीदने जाते हैं, तो आपको इसके साथ एक तम्बाकू पाउच मुफ्त मिलता है। 23 सितंबर, 2016 के फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे जुड़वां पैक की बिक्री पर रोक लगा दी गई है, लेकिन इसका पालन बहुत कम हो रहा है।

आक्रामक विज्ञापन से आकर्षित होने वाले बच्चों को बचाने के लिए राज्य सरकारों को इसे प्रभावी रूप से लागू करना चाहिए। ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण, 2017 के अनुसार देश में कुल धुआं रहित तम्बाकू उपयोगकर्ताओं (199.4 मिलियन) में से 29.6 प्रतिशत पुरुष और 12.8 प्रतिशत महिलाएं हैं। भारत में महिलाओं द्वारा धूम्रपान अभी भी सामाजिक रूप से अस्वीकार्य है लेकिन उनके बीच धुआं रहित तम्बाकू का उपयोग आम बात है। वर्तमान में 7 करोड़ महिलाएं 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की धुआं रहित तम्बाकू का उपयोग करती हैं। धुआं रहित तम्बाकू की आसानी से उपलब्धता और कम लागत महिलाओं द्वारा एसएलटी के उपयोग को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक में है। डॉक्टरों का कहना है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान धुआं रहित तम्बाकू का सेवन करती हैं, उनमें एनीमिया होने का खतरा 70 प्रतिशत अधिक होता है।

महिलाओं में धुआं रहित तम्बाकू उपयोगकर्ताओं में मुंह के कैंसर का खतरा पुरुषों की तुलना में आठ गुना अधिक होता है। इसी तरह धुआं रहित तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा पुरुषों की तुलना में दो से चार गुना अधिक होता है। इस तरह की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मृत्यु दर भी अधिक होती है। वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संरक्षक व मैक्स अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. हरित चतुर्वेदी ने कहा “धूम्ररहित तम्बाकू के उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हुई है क्योंकि पहले के तंबाकू विरोधी विज्ञापनों में सिगरेट और बीड़ी की तस्वीरें दिखाई जाती थी। लोगों का मनना है कि केवल सिगरेट और बीड़ी का सेवन हानिकारक है और इसलिए धीरे-धीरे धुआं रहित तम्बाकू की खपत बढ़ गई। उन्होंने कहा, लोग लंबे समय तक तम्बाकू चबाते हैं ताकि निकोटीन रक्त में पहुंचे, जिसके कारण वे लंबे समय तक बैक्टीरिया के संपर्क में रहते हैं जिसके कारण कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।


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