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विलुप्त होती कला, संस्कृति को बचाने में आगे आये सरकार

Posted on: Thu, 21, Sep 2017 3:40 PM (IST)
विलुप्त होती कला, संस्कृति को बचाने में आगे आये सरकार

गाजीपुर ब्यूरो, विकास राय की कलम सेः ग्रामीण इलाको में भारतीय संस्कृति में मिट्टी के बर्तन में खाना-पकाने तथा पानी पीने के लिए मिट्टी से बने कुल्हड़ आदि का बहुत बड़ा महत्व हैं। मिट्टी के कुल्हड़, हडिया, सुराही, गगरा, गुल्लक, दीया तथा बहुत सी घरेलू उपयोगी चीजे भारत मे कलाकार अपनी कला से निर्मित करता हैं। जिसे पवित्र माना जाता हैं। यह कला विश्व मे अपनी एक पहचान रखती हैं। भारत मे तो इन कलाकारो की जाति भी पायी जाती है लेकिन यह कला भारत मे पश्चिमी रीति रिवाज की भेंट धीरे-धीरे चढ़ती जा रही हैं। जो कि हमारी संस्कृति को काफ़ी नुकसान पहुंचा रही हैं। जहां इस विरादरी के लोग अपनी कला के जरिए अपनी जीविका चलाते हैं। सरकारी मदद न मिलने के कारण भूखमरी की कगार पर पहुंच कर कला से दूर हो रहे है. समय रहते अगर सरकार ने इनके हित में कोई ठोस कदम नही उठाया तो यह कला समाप्त हो जाएगी।

पूर्व रेलमंत्री ने यह आदेश जारी किया था कि रेल स्टेशनों पर कुल्हड़ में चाय लस्सी, दही की बिक्री होगी लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हमारे स्टेशनो पर कुल्हड़ सिर्फ दिखाने को मिलता हैं, ग्राहक को चाय, कॉफी, दही डिस्पोजल गिलास मे दी जाती है जबकि मिट्टी के जरिए इन चीजो को बनाना एक कला है, और इसमे मेहनत भी इतनी की पहले कलाकार मिट्टी को भिगोता है फिर मिट्टी को तैयार करके चकरी पर रखकर उसे अपनी कला से तरह तरह की चीजे तैयार करके सुखाने के बाद आग मे पकाकर रंग पेन्ट कर उसकी शोभा को बढ़ाता हैं। बदले मे महगाई के इस दौर मे मेहनत के बराबर पैसा भी नही मिलता हैं। लेकिन जब वह सामानो को बाजार मे ले जाता है तो विदेशी तर्ज पर आये सामानो की तुलना मे दुकानदार को महंगा पड़ता हैं और वह लेने से इंकार कर देता है।

बताया जाता है कि भारत का प्रत्येक व्यक्ति इन बातो को मानता हैं कि मिट्टी के बर्तन मे पका हुआ खाना पानी दोंनों बहुत स्वादिष्ट होता हैं। हमारे देश के कलाकार तो ऐसे हैं कि मिट्टी से तैयार सामान रख दे तो चाहे वह फल हो या कोई भी वस्तु खराब नही हो सकता हैं। बता दे कि कुम्हारों की खोज खबर तीज त्योहारों या शादी-ब्याह और मेले मे होती है जैसा कि दीपावली मे धर्मानुसार जरूरी हैं कि दीप जलाया जाय। सालभर मे एक बार या दो बार मिट्टी के बर्तनो का उपयोग किया जाता हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि हम सभी समय रहते अपने देश की संस्कृति नही बचाया गया तो आने वाले समय मे हमारी संस्कृति का स्वरूप बहुत भयावह हो सकता हैं। अतः इस परिस्थिति मे सरकार को कुम्हार बिरादरी के ऊपर ध्यान देते हुए कुछ रोजगार देना होगा अन्यथा कलाकारो के आगे संकट उत्पन्न हो सकता हैं। इस प्रकार सरकार विदेशी सामानो के निर्यात को बन्द कराए जिससे हमारा शरीर, हमारा पर्यावरण तथा हमारी संस्कृति दोंनो सदियों तक बनी रहे।


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