सिर मैंने कलम का कलम कर दिया- अर्चना श्रीवास्तव
सिर मैंने कलम का कलम कर दिया- अर्चना श्रीवास्तव
सिर मैंने कलम का कलम कर दिया
पहचान की खातिर निगोड़ी बिकने लगी थी
सच्चाई से मुंह उसने जरा मोड़ लिया था
झूठ के गलियारे में वो दिखने लगी थीं
दामन था जिसका पाक नजरों में थी हया
अब उसको लग गयी थी ज़माने की बद़ हवा
दामन पकड़ लिया था गुनहगारों का उसने
कर्तव्य अपना भूल के वो उड़ने लगी थी
पैसों की चमक ने उसे गुमराह किया था
सत्ता की दमक ने उसे हमराह किया था
पंगत में सबसे आगे दिखने की ललक में
सजने संवरने और निखरने लगी थी
घोटा था गला उसने मेरी भावनाओं का
छोड़ा था उसने साथ मेरी कामनाओं का
लड़ने लगी थी अब वो मेरे ही विचारों से
अर्चना पटक के कलम रोने लगी थी
-- अर्चना श्रीवास्तव ‘शब्द शिल्पी’