• Subscribe Us

logo
09 मई 2024
09 मई 2024

विज्ञापन
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।
Uttar pradesh

बुनकरों की भी सुन लो सरकार !

Posted on: Tue, 28, Apr 2020 8:59 PM (IST)
बुनकरों की भी सुन लो सरकार !

मऊ (सईदुज़्जफर) लाकडाउन का बुनकरों के कारोबार पर बहुत बुरा असर है। लूम बंद होने के कारण प्रतिदिन तैयार होने वाली करीब एक लाख साड़ियां अब नही बन रही हैं। नतीजा ये है कि बुनकर भुखमरी के कगार पर पहुंच रहे हैं। उनका जीवन थम सा गया है। भारत मे तेजी से पाँव पसार रहे कोरोना महामारी से बचने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की अवधि बढ़ाकर 3 मई तक कर दी। यह रोज कमाकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर बज्रपात जैसा है। अब तो हर वर्ग के लोंगो के सामने रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। पूरे विश्व में साड़ियों के लिए प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश का मऊ जनपद जिसे कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुस्तान का मैनचेस्टर कहा था यहां पर बड़ी संख्या में बुनकर निवास करते हैं। आंकड़े के अनुसार शहर क्षेत्र की आबादी करीब 2.78 लाख है। इसमें से एक लाख लोग बुनकरी से जुड़े हैं।

इसके चलते अकेले मऊ शहर में करीब 50 लाख लूम हैं। जो दिन रात चलते है। बुनकर परिवार इन लूमों को चलाकर अपने घर का खर्च चलाता है। बुनकरों के परिश्रम से प्रतिदिन करीब एक लाख साड़ियां तैयार होती थी। इन उत्पादों को भेजने के लिए शहर में प्रतिदिन तीस से चालीस ट्रक लगते थे। लेकिन लाकडाउन से बाजारों में सन्नाटा पसरा है। लूम और साड़ी से जुड़े हुए कारोबार ज़री मशीन, इम्बराइडरी मशीन, कटर मशीन आदि भी पूरी तरह से बंद हो गए हैं क्योंकि ये सभी कारोबार साड़ियों से ही चलते हैं।

इसके अतिरिक्त साड़ी साफ करने, चिम्की और स्टोन लगाने, ठेला चलाने वाले आदि मज़दूर वर्ग के सामने भी रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। मऊ की गलियों में प्रवेश करते ही हर घर से हमें लूम के खटरपटर की आवाज़ सुनाई देती थी। दिनरात एक करके बुनकर साड़ी तैयार करते हैं और उन्हें अन्य जनपदों या दूसरे राज्यों में भेजने का काम करते हैं। लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने से आज बुनकरों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। सरकार की तरफ से कुछ विशेष रियायत की घोषणा अब तक नहीं की गई जिससे बुनकरों में निराशा छायी हुयी है।

बुनकर कलाम, अब्दुल्लाह , असअद का कहना है कि हम लोग सेठ, साहूकारों से कच्चा माल लेकर साड़ी तैयार करते हैं, जिसके एवज में हमें प्रति साड़ी 200 से 300 रूपया ही मिलता है और पूरा परिवार मिल कर जब दिन भर ये काम करता है तो दो वक्त की रोटी नसीब होती है, लेकिन आज वह भी नसीब नहीं हो रही है। ऐसी आवाज़ें और दर्द ना जाने कितने बुनकरों के घरों से निकल रही हैं। हालांकि सरकार के निर्देश पर प्रशासन द्वारा हर जरूररतमन्दों को चिन्हित कर उनके घर तक राहत सामग्री पहुचाने की काम हो रहा है। लेकिन कुछ ऐसे बुनकर है, जो इससे भी वंचित है, वह लोग किसी तरह से इस महामारी में अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं।




ब्रेकिंग न्यूज
UTTAR PRADESH - Gorakpur: पति पत्नी ने किया सुसाइड