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आशा और RBSK की पहल से अनुज के टेढ़े पंजों की हुई सर्जरी

Posted on: Fri, 31, Mar 2023 11:46 AM (IST)
आशा और RBSK की पहल से अनुज के टेढ़े पंजों की हुई सर्जरी

गोरखपुर, 30 मार्च। आशा कार्यकर्ता गीता देवी की सजगता और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) कीटीम की मदद से 11 माह के बच्चे अनुज के पैरों की सेहत सुधरनेलगी है। अब वह न केवल सही से बैठ लेता है, बल्कि धीरे धीरे पैरों पर खड़े होने की कोशिश भी करने लगा है। वह जन्मजात टेढ़े मेढ़े पैरों की विकृति से पीड़ित था।

बच्चे के परिजन परेशान थे लेकिन आशा कार्यकर्ता ने मानसिक सम्बल दिया और आरबीएसके टीम से मुलाकात करवाई। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अनुज की सर्जरी हुई और वह ठीक हो गया। उसे विशेष प्रकार के जूते भी मिले हैं। चरगांवा ब्लॉक के जंगल धूषण की संध्या (24) बताती हैं कि उनके पति पेशे से राजगीर हैं। उससे किसी तरह परिवार का खर्च चल पाता है। उनकी चार साल की बेटी भी है जो पूरी तरह से स्वस्थ है। अप्रैल 2022 में उन्हें बेटा अनुज पैदा हुआ। उसके पंजे अंदर की तरफ मुड़े हुए थे। परिवार के लोग घबरा गये।

अस्पताल पर प्रसव के लिए आशा कार्यकर्ता गीता देवी ही लेकर आई थीं। गीता ने बच्चे को देखा तो बताया कि इसे क्लब फुट कहते हैं और यह इलाज से ठीक हो जाता है। घबराने की कोई बात नहीं है। उन्होंने एक महीने बाद चरगांवा की आरबीएसके टीम से मिलवाया। टीम के चिकित्सक डॉ मनोज, डॉ अर्चना, स्टॉफ नर्स सरिता व पैरामेडिकल सहयोगी गरिमा सरकारी गाड़ी से बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गये। वहां चिकित्सकों ने बताया कि पांच से छह बार बच्चे के साथ आना पड़ेगा और फिर सर्जरी की जाएगी।

संध्या बताती हैं कि पांच बार प्लास्टर के लिए मेडिकल कॉलेज जाना पड़ा। छठवीं बार ऑपरेशन हुआ और फिर बुलाकर जूते भी दिये गये। बच्चा नौ महीना का होने के बाद सहारा पकड़ कर पैरों से खड़ा होने की कोशिश करता है। हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि किसी बड़े अस्पताल में इलाज करवाते। सर्जरी से पहले बच्चा बैठ नहीं पाता था लेकिन अब आराम से बैठ लेता है। आशा कार्यकर्ता गीता देवी का कहना है कि उन्हें प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ धनंजय और आरबीएसके टीम ने बताया था कि जन्मजात विकृति वाले बच्चों का योजना के तहत इलाज होता है। इसलिए उन्होंने टीम से बच्चे का सम्पर्क करवा दिया।

योजना की डीईआईसी मैनेजर डॉ अर्चना का कहना है कि क्लब फुट सर्जरी की सुविधा जिला अस्पताल में भी उपलब्ध है। मेडिकल कॉलेज के नजदीक के ब्लॉक योजना शुरू होने से अब तक 11 से अधिक बच्चों को मेडिकल कॉलेज ले जाकर सर्जरी की सुविधा दिलवा चुके हैं। सीएमओ डॉ आशुतोष कुमार दूबे और कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ नंद कुमार के दिशा निर्देशन में योजना के तहत बच्चों में 48 प्रकार की बीमारियों को चिन्हित कर इलाज कराया जा रहा है। डॉ अर्चना ने बताया कि मिरेकल फीट इंडिया संस्था के प्रतिनिधि की मदद से क्लब फुट वाले बच्चों की आरबीएसके टीम के जरिये और प्रसव केंद्र से भी पहचान कराई जा रही है।

समय से पहचान आवश्यक

आरबीएसके के नोडल अधिकारी डॉ नंद कुमार का कहना है कि जन्मजात टेढ़े मेढ़े पैर (क्लब फुट) की अगर समय से पहचान हो जाए और उसका अतिशीघ्र इलाज किया जाए तो बीमारी का निदान हो जाता है और बच्चे सामान्य जीवन जीने लगते हैं। जन्म के बीस दिनों के भीतर चिकित्सक से सम्पर्क करने पर छह से आठ प्लास्टर व सर्जरी से बच्चे के पैरों में सुधार होने लगता है। इस बीमारी का इलाज 18 माह की उम्र तक संभव है लेकिन प्लास्टर की संख्या बढ़ जाती है। इस आयुवर्ग में इलाज शुरू करवाने पर दस से 16 प्लास्टर लगते हैं और सर्जरी होती है। सर्जरी के बाद पांच साल की उम्र तक विशेष जूते जिन्हें ब्रेस शू कहते हैं, पहनने होते हैं ताकि बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाए।




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