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Maharashtra

आशुतोष जी महाराजः जीवन और समाधि

Posted on: Thu, 06, Jul 2017 12:01 AM (IST)
आशुतोष जी महाराजः जीवन और समाधि

मुंबईः (पंकज सोनी) दिव्य ज्योति जागृति संस्थान’ के संस्थापक आशुतोष महाराज भारतीय सनातन परंपरा के वाहक आध्यात्मिक गुरु रहे। उनका जन्म 1940 में बिहार के मिथालांचल में हुआ था। माना जाता है अपने बचपन और किशोरावस्था में धर्म की सत्यता जांचने के लिए अपने प्रहसनों के माध्यम से अंधविश्वासों को चुनौती दी थी। जिस समय पंजाब आतंकवाद की आग में जल रहा था उस समय आशुतोष महाराज ने पंजाब को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। ज्ञान की तलाश में उन्होंने कई गुरूओं से साक्षात्कार किया और पाया कि कोई भी गुरु पूर्ण नहीं हैं. अच्छे और सिद्ध गुरु की तलाश में वे कई धर्मगुरुओं के बीच रहे भी और उनसे शास्त्रार्थ भी किया, लेकिन उनकी ज्ञान पिपासा को कोई शांत नहीं कर सका।

हिमालय में मिला हठयोग का ज्ञानः सच्चे गुरु की तलाश करते-करते वे हिमालय की कंदराओं में चले गए और वहां 13 साल तक कठोर साधना की.हठयोग और क्रिया योग का ज्ञान उन्हें हिमालय की कंदराओं में निवास करने वाले सिद्ध महापुरुषों से ही मिला। ब्रह्मज्ञान की जिस तलाश में उन्होंने हिमालय में कठोर तपस्या की थी, उसकी प्राप्ति होते ही, दुनिया को इस ज्ञान से परिचय कराने हेतु हिमालय से निकलकर वे भारत भ्रमण पर निकले।

पंजाब को चुना अपनी कर्मभूमिः यह वो दौर था, जब पंजाब बुरी तरह से आतंकवाद की चपेट में था.उन्हें लगा कि जो ज्ञान की प्राप्ति हुई है, उसकी सबसे अधिक आवश्यकता अशांति से गुजर रहे पंजाब के लोगों को ही है. 1983 में कभी पैदल तो कभी साइकिल से आशुतोष महाराज ने पंजाब के गांव-गांव में जाकर लोगों को यह समझाना शुरू किया कि जब तक मनुष्य अंदर से शांत नहीं होगा, तब तक समाज में अशांति इसी तरह से फैलती रहेगी. पटियाला, अमृतसर, जालांधर, लुधियाना आदि में घूम-घूमकर शांति स्थापना के लिए सत्संग के जरिए वे ज्ञान का प्रसार करते रहे. आतंकवादियों ने उनका विरोध किया, लेकिन आशुतोष महाराज का कथन होता था कि ‘तुम पहले अपनी आंखों से ईश्वर को देख लो, उसके बाद ही मेरी बातों पर विश्वास करो।

लोगों को करते थे परमात्मा के दर्शनः ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मज्ञान के जरिए वे लोगों के तीसरे नेत्र को खोलकर साक्षात् प्रकाश पुंज परमात्मा का दर्शन कराते थे, जिसके कारण शिष्यों का हुजूम उनसे जुड़ता चला गया. ऐसा हम सब जानते हैं कि सिख देहधारी गुरुओं को नहीं मानते, लेकिन यहां तो बड़ी संख्या में सिख ही उनके शिष्य बनते जा रहे थे. इसलिए आशुतोष महाराज का पंजाब में जमकर विरोध हुआ इतना ही नहीं उनके शिष्यों पर और उन पर हमले हुए। अकालतख्त ने उन्हें अपने समक्ष हाजिर होने का फरमान जारी किया, लेकिन इन सबसे उनका कारवां रुकने की जगह और जोर पकड़ता चला गया.आशुतोष महाराज बिना डरे-बिना रुके लगातार अपने सत्संग में आतंकियों से हथियार छोड़ समाज की मुख्यधारा में लौटने और अपने अंदर ही शांति की तलाश करने की अपील करते थे.वे कहते थे, ‘मैं तुम्हें वही कह रहा हूं, जो गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है.तुम अपनी आंखों से जब ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हो तो फिर भय व आतंक के रास्ते पर क्यों चल रहे हो.’

जब भिंडरावाले से हुआ सामनाः एक समय था जब पंजाब में भिंडरावाले का आतंक जोरों पर था.उसने अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था और स्वर्ण मंदिर से ही आतंकी वारदातों को अंजाम दे रहा था.आशुतोष महाराज को पता चला कि भिंडरावाला उन्हें मारना चाहता था.इससे पहले कि भिंडरावाला उनतक पहुंचता, आशुतोष महाराज स्वयं उसके पास स्वर्ण मंदिर में पहुंच गए. उन्होंने भिंडरावाले को हथियार छोड़कर शांति का रास्ता अपनाने को कहाऔर उसे गुरुग्रंथ साहिब का उदाहरण देकर समझाया कि वह जो कर रहा है,उससे न केवल सिख समाज, बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष का अहित हो रहा है. उन्होंने भिंडरावाले से कहा- हथियार छोड़ो और ‘वाहे गुरु’ से नाता जोड़ो. भिंडरावाला गुस्से से तिममिला उठा और उसने अपने साथियों से कहा कि इसे पकड़ कर मार दो।

फ्लाइंग बाबा के नाम से हुए मशहूरः इससे पहले की आतंकी आशुतोष महाराज को पकड़ पाते, देखते ही देखते वे भिंडरावाले के आतंकी घेरे को तोड़कर स्वर्ण मंदिर से बाहर निकल आए.उस समय यह काफी चर्चा का विषय बना था और पंजाब के कई अखबारों ने इस पर रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी.इस घटना पर पंजाब केसरी अखबार का ‘फ्लाइंग बाबा’ शीर्षक काफी मशहूर हुआ था।

नूरमहल की स्थापनाः आशुतोष महाराज के घूम-घूमकर सत्संग करने की वजह से शिष्यों को उन्हें ढूंढ़ने में काफी तकलीफ होती थी.शिष्यों के आग्रह पर उन्होंने जालंधर के नूरहमल को अपना स्थायी ठिकाना बनाया.ऐसा कहा जाता है कि नूरमहल के बेलगा गांव में सिखों के गुरु अर्जुनदेव एक बार ठहरे थे.यही नहीं, इलाके में यह कहानी भी प्रचलित है कि जहांगीर की बेगम नूरजहां यहां एक रात के लिए रुकी थी, जिसके कारण इस इलाके का नाम नूरमहल सराय पड़ा था. आशुतोष महाराज ने 1983-84 में नूरमहल में आश्रम की स्थापना की और ‘ब्रह्मज्ञान’ के द्वारा विश्व शांति के अपने अभियान को आगे बढ़ाया।

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की स्थापनाः सन 1991 में ‘दिव्य ज्योति जागृति संस्थान’ की स्थापना हुई और दिल्ली के पीतमपुरा में 1997 में इसके मुख्यालय का निर्माण हुआ. दिल्ली के ही पंजाब खोड़ गांव में ‘दिव्यधाम’ के रूप में एक अन्य बड़े आश्रम का निर्माण किया गया है, जहां प्रत्येक महीने के पहले रविवार को भव्य सत्संग का आयोजन होता है, जिसमें देश भर से भाग लेने लोग दिल्ली आते हैं.आज देश के हर छोटे-बड़े जिले में ‘दिव्य ज्योति जागृति संस्थान’ का भवन है, लेकिन इसका मुख्यालय दिल्ली और मुख्य केंद्र नूरमहल आश्रम ही है.

क्या है समाधि का रहस्यः 29 जनवरी 2014 से आशुतोष जी महाराज समधी में लीं हो गए. लेकिन उनकी समाधि के बारे में कई सवाल उठाये गए. 29 जनवरी की रात को सांस लेने में तकलीफ होने के बाद अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने जांच के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया था. तब मीडिया को एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बताया था कि 60 घंटे के इंतजार के बाद एक फरवरी को आशुतोष महाराज का अंतिम संस्कार करने की योजना है. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हो सका. एक फरवरी को संस्थान की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहा गया कि आशुतोष महाराज की मौत की खबर एक ‘अफवाह’ है. उनकी मृत्यु नहीं हुई बल्कि वे लंबे वक्त के लिए समाधि में चले गए हैं।

दिलीप झा नाम के व्यक्ति ने किया अपने पिता होने का दावाः आशुतोष महाराज का रहस्य तब और गहरा गया जब 7 फरवरी को दिलीप झा नाम के व्यक्ति ने कोर्ट में यह दावा पेश किया कि आशुतोष महाराज दरअसल उनके पिता हैं, उनका असल नाम महेश झा है जो बिहार के मधुबनी जिले के लखनौर गांव के रहने वाले हैं. 1970 में जब दिलीप झा एक महीने के थे तो महेश झा उर्फ आशुतोष महाराज गांव छोड़कर दिल्ली आ गए थे. दिलीप ने याचिका में अपने पिता का अंतिम संस्कार करने की अनुमति भी मांगी.

कोर्ट ने खारिज किये दोनों फैसलेः इसके लगभग दस महीने बाद एक दिसंबर, 2014 को हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट के जज एमएमएस बेदी ने दिलीप झा की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे ऐसा कोई भी साक्ष्य अदालत में पेश नहीं कर पाए जिससे यह साबित हो सके कि आशुतोष महाराज उनके पिता हैं. इसी सुनवाई में पूरण सिंह की याचिका को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने आशुतोष महाराज की हत्या की आशंका जताते हुए पोस्टमॉर्टम की मांग की थी. हालांकि इसके साथ ही अदालत ने पंजाब सरकार को 15 दिन के भीतर आशुतोष महाराज का अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया. अदालत ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा ‘समाधि’ बताकर आशुतोष महाराज के शरीर को अनिश्चितकाल के लिए संरक्षित किए जाने के अधिकार को खारिज कर दिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित अधिकारों के तहत ऐसी कोई प्रथा उस धर्म विशेष का अनिवार्य भाग नहीं है जिसे आशुतोष महाराज के अनुयायी मानते हैं. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता, सवाल करने और सुधार करने की प्रवृत्ति को बढ़ाए।




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