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13 मई 2024
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Uttar pradesh

आपके प्रयासों से फिर घर में फुदक सकती है नन्ही गौरैया

Posted on: Wed, 20, Mar 2024 5:27 PM (IST)
आपके प्रयासों से फिर घर में फुदक सकती है नन्ही गौरैया

बस्ती। “विश्व गौरैया दिवस“ पर नानक नगर पचपेड़िया रोड स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्प्यूटर एजुकेशन के डायरेक्टर के डायरेक्टर अंकित गुप्ता ने पक्षियों का महत्व और उनके संरक्षण पर जानकारी देते हुए कहा कि आज भी स्थान ऐसे हैं, जहां लोगों की आवाजाही अपेक्षाकृत कम होने से गौरैया सुरक्षित महसूस करती हैं।

यही नहीं, यहां की कच्ची भूमि पर उगने वाली घास के बीज, यहां पनपने वाले कीड़े आदि इनका भोजन हैं। यदि हम अपने घर में भी ऐसा ही वातावरण इन्हें दें, तो ये वहां भी आ सकती हैं। उन्होंने आगे बताया कि छोटे-छोटे तरीकों को अपनाकर हम आवासीय क्षेत्र में भी गौरैया को बुला सकते हैं। इसके लिए घर के बाहर थोड़ा स्थान ऐसा रखें, जहां मिट्टी और देसी घास लगी हो। कोई स्थान ऐसा सुनिश्चित करें जहां इनके लिए दाना डाला जा सकता हो और पानी के सकोरे रखे हों। किंतु ऐसी जगह पर जानवर या इंसान की आवाजाही नहीं होनी चाहिए।

घर के आसपास या कालोनी के बगीचे में कुछ झाड़ियां हों ताकि वह उनमें बैठ सके। वर्तमान में घर में आले जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती, जहां गौरैया घोंसला बना सके इसलिए घर में बर्ड हाउस लगाएं, जिसमें वह घोंसला बनाकर अपना जीवनचक्र आगे बढ़ा सके। बबूल, शहतूत, गुड़हल, करोंदे, फालसे, मेंहदी जैसे पौधे लगाकर भी इन्हें आकर्षित किया जा सकता है। गौरैया को धूल के मैदान इसलिए चाहिए ताकि उसमें पाए जाने वाले कीट को वे अपने बच्चों को खिला सके। चूंकि अब धूल के मैदान खत्म हो गए हैं और लोग बारीक अनाज भी नहीं डालते।

इसलिए शहरी क्षेत्र में गौरैया नजर नहीं आती। इसके अलावा कीटनाशक भी इन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं। यदि आपके घर-आंगन में पौधे हैं, तो जैविक पद्धति से उनके कीट हटाएं ताकि हानिकारक रसायन का दुष्प्रभाव गौरैया पर न पड़े। देसी घास लगाएं जिसके बीज गौरैया खा सके। इसके अलावा विभिन्न तरह के अनाज का दलिया बनाकर उसे मिलाकर डालें क्योंकि गौरैया बारीक अनाज ही खा पाती है। गौरैया या अन्य पक्षियों को बचाने की बात तो की जाती है, परन्तु यह जानना जरूरी है कि आखिर हम क्यों इन्हें बचाना चाहते हैं। गौरैया की ईकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका है।

वह नेचुरल फार्मर है जो बीजों को स्थानांतरित करती है और कीट-पंतगों को भी खाती है। गौरैया जंगलों में नहीं, बल्कि इंसानो के बीच ही रहती है। आज कंक्रीट के घरों और कम होती हरियाली में उसके पास घोंसला बनाने तक की जगह नहीं है। इसके लिए हमें प्रयास करने होंगे। गौरैया हमारी और प्रकृति की सहचरी है। एक वक्त था, जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते थे और गौरैया के साथ उसके चूजे चीं-चीं-चीं का शोर मचाते थे , लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई है। उसकी आमद बेहद कम दिखती है।

गौरैया इंसान की सच्ची दोस्त भी है और पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका भी है। गौरैया के निवास के लिए घर के बाहर थोड़ा स्थान ऐसा रखें, जहां मिट्टी और देसी घास लगी हो। कोई स्थान ऐसा सुनिश्चित करें जहां इनके लिए दाना डाला जा सकता हो और पानी के सकोरे रखे हों। किंतु ऐसी जगह पर जानवर या इंसान की आवाजाही नहीं होनी चाहिए। दुनियाभर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में समय रहते इन विलुप्त होती प्रजाति पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्धों की तरह गौरैया भी इतिहास बन जाएगी और यह सिर्फ गूगल और किताबों में ही दिखेगी।

पूर्व छात्रों ने प्रातः गौरैया पक्षी के लिए लकड़ी तथा कार्ड बोर्ड की सहायता से विभिन्न घोसलों के मॉडल तैयार कर भेंट किया और अपने घर के आसपास पौधें लगाने तथा उनका संवर्धन करने का संकल्प लिया कि पक्षियों को बचाना और वृक्षों को काटने से रोकना हमारा दायित्व हैं, तभी हमारे देश का वातावरण प्रदूषण मुक्त हो सकेगा। इस अवसर पर अंकित गुप्ता, छात्र कुलदीप कन्नौजिया, आकांक्षा चौधरी, अनन्या गुप्ता, अंजू ने गौरैया पक्षी बचाने के लिए संकल्प हेतु अपने घर के आसपास पौधे लगाने का भी संकल्प लिया। गौरैया को बचाने के लिए अपने घरों के अहाते और पिछवाड़े डेकोरेटिव प्लान्ट्स , विदेशी नस्ल के पौधों के बजाए देशी फ़लदार पौधे लगाकर इन चिड़ियों को आहार और घरौदें बनाने का मौका दे सकते है।




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