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पं. दीन दयाल उपाध्याय गोविवि में एनएसएस के स्वयंसेवकों का हुआ संवेदीकरण

Posted on: Thu, 23, Mar 2023 6:53 PM (IST)
पं. दीन दयाल उपाध्याय गोविवि में एनएसएस के स्वयंसेवकों का हुआ संवेदीकरण

गोरखपुर, 22 मार्च। वैसे तो नाखून और बाल छोड़ कर क्षय रोग (टीबी) शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है, लेकिन पल्मनरी यानि फेफेड़े की टीबी का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक खांसने और छींकने के जरिये प्रसार होता है। ऐसे में अगर टीबी मरीज को समय से ढूंढ कर इलाज न किया जाए तो वह वर्ष में दस से पंद्रह लोगों को टीबी संक्रमित कर सकता है।

अगर टीबी के लक्षण, जांच और इलाज की जानकारी जन जन तक पहुंचाई जाए तो नये मरीजों को खोज कर टीबी का उन्मूलन करना संभव होगा। इस कार्य में राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) समन्वयकों की अहम भूमिका हो सकती है। यह बातें जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश यादव ने कहीं। वह पं. दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में एनएसएस स्वयंसेवकों के संवेदीकरण कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में पहुंची राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन अभियान की टीम ने बीमारी और योजनाओं के बारे में स्वयंसेवकों को विस्तार से जानकारी दी।

सैकड़ों स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए जिला क्षय रोग अधिकारी ने कहा कि अगर किसी को दो सप्ताह से अधिक की खांसी, रात में बुखार, पसीने के साथ बुखार, तेजी से वजन घटने, भूख न लगने जैसी दिक्कत हो तो वह संभावित टीबी रोगी हो सकता है। इन लक्षण वाले लोगों को प्रोत्साहित कर टीबी जांच करवाएं। जांच की सुविधा सरकारी प्रावधानों के अनुसार सभी सीएचसी, पीएचसी, जिला क्षय रोग केंद्र और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध है। जांच में टीबी की पुष्टि होने पर तुरंत इलाज शुरू किया जाता है और मरीज के निकट सम्पर्कियों की भी टीबी जांच कराई जाती है।

अगर निकट सम्पर्की में कोई टीबी मरीज मिलता है तो उसका भी इलाज कराया जाता है। निकट सम्पर्कियों में टीबी की पुष्टि न होने पर भी बचाव की दवा खिलाई जाती है। उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने कहा कि तमाम प्रयासों के बावजूद सभी टीबी मरीज खोजे नहीं जा पा रहे हैं। टीबी मरीजों को ढूंढ कर उन्हें इलाज से जोड़ना अति आवश्यक है। टीबी का सम्पूर्ण इलाज संभव है, बशर्ते मरीज बीच में दवा न बंद करें और दवा की पूरी डोज लें। बीच में दवा छोड़ देने या इलाज न करवाने से ड्रग रेसिस्टेंट टीबी हो जाता है जिसका इलाज जटिल है।

टीबी मरीज को इलाज चलने तक 500 रुपये प्रति माह पोषण के लिए दिये जाते हैं। सरकारी प्रावधानों के अनुसार ही मरीज की सीबीनॉट, एचआईवी और मधुमेह की भी जांच कराई जाती है। निजी अस्पतालों में इलाज करवाने वाले टीबी मरीज भी चिकित्सक की सहमति से सरकारी अस्पताल की सेवा प्राप्त कर सकते हैं। जिले में इस समय कुल 9263 टीबी मरीजों का इलाज चल रहा है। पब्लिक प्राइवेट मिक्स (पीपीएम) समन्वयक अभय नारायण मिश्र ने कहा कि टीबी मरीजों को गोद लेने वाले लोगों को निक्षय मित्र के तौर पर पंजीकृत किया जाता है और समय समय पर उन्हें सम्मानित भी किया जाता है।

मरीज को गोद लेने का आशय स्वेच्छा से हर माह पोषक सामग्री जैसे चना, गुण, मूंगफली, फल आदि मुहैय्या कराने से है और साथ में मरीज को मानसिक सम्बल व सहयोग भी प्रदान करना है। एनएसएस के कार्यक्रम समन्वयक डॉ जितेंद्र कुमार और कार्यक्रम अधिकारी डॉ सुशील कुमार ने कहा कि संस्था के स्वयंसेवकों द्वारा टीबी मरीजों को ढूंढने और इस बीमारी के प्रचार प्रसार में हर संभव योगदान दिया जाएगा। कार्यक्रम को डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ दीपक चतुर्वेदी और सीफार प्रतिनिधि वेद प्रकाश पाठक ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर पीपीएम समन्वयक डॉ मिर्जा आफताब बेग, राजकुमार, अभयनंदन, पवन श्रीवास्तव, महेंद्र चौहान और राजू भी प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।

लोगों को करेंगे जागरूक

एमए द्वितीय वर्ष के छात्र व एऩएसएस स्वयंसेवक कृष्ण मुरारी मिश्रा (20) ने बताया कि टीबी के बारे में पहले से भी जानकारी थी लेकिन इस कार्यक्रम के जरिये योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिली। यह भी बताया गया का नया टीबी रोगी खोज कर नोटिफाई करवाने वाले गैर सरकारी व्यक्ति को भी टीबी की पुष्टि हो जाने के बाद 500 रुपये खाते में देने का प्रावधान है।




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