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09 मई 2024
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नसबंदी का निर्णय लेकर नजीर बने विजय

Posted on: Fri, 05, Apr 2024 12:08 PM (IST)
नसबंदी का निर्णय लेकर नजीर बने विजय

बस्ती, 05 अप्रैल। परिवार नियोजन की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही नहीं है। इसमें न सिर्फ पुरुषों को भागीदारी निभानी चाहिए, बल्कि साधन अपनाने के लिए खुद भी आगे आना चाहिए। पुरुष भागीदारी के साधन सरल और सुरक्षित भी हैं। इसी संदेश को आत्मसात कर 39 वर्षीय विजय कुमार सिंह ने पुरुष नसबंदी का निर्णय लिया और अब दूसरों के लिए भी नजीर बन गये हैं।

उन्होंने पत्नी की सहमति से परिवार नियोजन का स्थायी साधन नसबंदी को कोविड काल में अपनाया। खुशहाल जीवन जी रहे विजय का ही उदाहरण देकर स्वास्थ्य विभाग के लोग पुरुष नसबंदी के इच्छुक लाभार्थियों के मन में बैठे भय और भ्रांति को भी दूर कर रहे हैं। स्वास्थ्य डॉ नीरज कुमार पांडेय का कहना है कि विजय कुमार सिंह की कहानी दूसरों को प्रेरित करने वाली है। खासतौर से उन दंपति को जिनके मन में भय होता है कि पुरुष नसबंदी से शारीरिक कमजोरी आती है या फिर यौन क्षमता दुर्बल हो जाती है।

खास बात यह है कि पुरुष नसबंदी कराने का निर्णय इस दंपति ने सही समय पर खुद किया। बस्ती मंडल में वर्ष 2023-24 के फरवरी माह तक 74 पुरुषों ने नसबंदी कराई है, जबकि 5254 महिलाओं ने नसबंदी कराया। विजय की कहानी के जरिये पुरुष नसबंदी के प्रति सही और सटीक परामर्श देने की कोशिश की जा रही है। उम्मीद है कि आने वाले समय में लाभार्थी खुद से इस सेवा को अपनाने के लिए आगे आएंगे। बस्ती मंडल के संतकबीरनगर जिले के शंकरपुर सिबरवली गांव के निवासी विजय कुमार सिंह बताते हैं कि उनकी शादी 29 नवम्बर 2010 को हुई।

उस समय वह दिल्ली में रहते थे। शादी के बाद परिवार नियोजन के बारे में बहुत अच्छी जानकारी उन्हें भी नहीं थी। उनकी पहली बच्ची ने तीन नवम्बर 2011 को दिल्ली के एक अस्पताल में ही जन्म लिया। बच्ची ऑपरेशन से हुई। जब बच्ची थोड़ी बड़ी हुई तो दंपति ने आपसी सलाह से दो बच्चों में अंतर रखने का निर्णय लिया। इसके लिए विजय आगे आए। उन्होंने खुद अस्थायी साधन अपनाया। वह कहते हैं कि उन्होंने जानकारी इकट्ठा किया कि पुरुषों के लिए उपलब्ध अस्थायी साधन के किसी प्रकार के हार्मोनल प्रभाव नहीं होते हैं, जबकि महिलाओं के मामले में ऐसा नहीं है। इसलिए अपनी तरफ से ही साधन अपनाने की पहल करना उन्हें ज्यादा ठीक लगा।

वर्ष 2017 में वह गांव लौट आए और उनका दूसरा बेटा अपने क्षेत्र के ही सरकारी अस्पताल में पैदा हुआ। दूसरे बेटे के गर्भ और प्रसव के दौरान स्वास्थ्य तंत्र से जुड़ाव बढ़ा। विजय का कहना है कि दूसरे बच्चे के बाद भी वह अस्थायी साधन अपनाते रहे। वर्ष 2019 में त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन के बारे में उनकी पत्नी को जानकारी मिली तो पत्नी ने आगे बढ़ कर यह साधन अपनाया। दूसरा बच्चा जब तीन साल का हो गया तो दंपति ने स्थायी विधि अपनाने के बारे में सोचा। विजय खुद की नसबंदी कराने के इच्छुक थे। इसी बीच विजय का सम्पर्क सीएमओ कार्यालय और साऊंघाट के स्वास्थ्यकर्मियों से हुआ जिन्होंने पुरुष नसबंदी के बारे में उन्हें जानकारी दी। उन्होंने खुद भी इंटरनेट के जरिये जानकारी जुटाई और अपनी पत्नी को भी इस निर्णय में शामिल किया। जब दंपति संतुष्ट हो गये तो वर्ष 2020 में बस्ती जिला अस्पताल पहुंच कर विजय ने नसबंदी करवा लिया।

चंद मिनट में हो गयी नसबंदी

विजय बताते हैं कि नसबंदी से पहले उनकी जांचें हुईं और पूरी प्रक्रिया में आधे घंटे का समय लगा। नसबंदी तो महज चंद मिनट में हो गयी। तीन से चार दिन तक आवश्यक दवाएं खाईं। इस दौरान वह सामान्य कामकाज भी करते रहे। शुक्राणु जांच के बाद उन्हें नसबंदी की सफलता का प्रमाण पत्र मिला। उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है और वह अपने छोटे परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।

99.5 फीसदी है सफल

संयुक्त निदेशक डॉ पांडेय का कहना है कि पुरुष नसबंदी 99.5 फीसदी सफल है। इसमें कोई चीरा या टांका नहीं लगता है। यह महिला नसबंदी की तुलना में सरल और सुरक्षित है। जो भी दंपति स्वास्थ्य केंद्र आते हैं उन्हें परिवार नियोजन के सभी साधनों के बारे में जानकारी दी जाती है। साधन का चुनाव करना दंपति की इच्छा पर है, लेकिन अगर कोई भ्रम के कारण पुरुष नसबंदी नहीं अपना रहा है तो उसके मन में बैठी भ्रांति को दूर भी किया जाता है।




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