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Bihar

बातचीत से बुझेगी नेपाल के आंदोलन की आग

Posted on: Thu, 01, Oct 2015 4:17 PM (IST)

मधवापुर, मधुबनी, बिहार: (दीपक कुमार) नेपाल में 67 साल बाद नया संविधान 20 सितंबर से लागू हो गया है। सात साल पहले पहली संविधान सभा अस्तित्व में आई थी और उसके साथ ही वहां राजशाही का औपचारिक अंत हो गया था। पहली संविधान सभा नेपाल को नया संविधान नहीं दे पाई। दूसरी संविधान सभा के पास अभी करीब दो वर्ष से ज्यादा का समय शेष था। इस बीच वहां की तीन बडी पार्टियों ने आपस में एजेंडा तय कर संविधान पारित कराने का संकल्प लिया और ऐसा कर दिखाया। संविधान लागू हो गया है। यह मौका था जश्न मनाने का, गुलाल डउाने का, भविष्य संवारने की नीतियों पर मंथन करने का, पडोसी देश से मंत्रणा कर नेपाल की तरक्की की बुनियाद रखने का, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसके विपरीत नेपाल के बडे हिस्से में हिंसा,प्रदर्शन,धरना, आत्मदाह और भारत की तरफ पलायन से नए संविधान को सलामी मिली। ऐसे में बडा सवाल यह है कि आखिर, नेपाल में जल रही आंदोलन की आग कब और कैसे बुझेगी? मधेशी पार्टियां 2008 के समझौते को लागू करने के बाद ही किसी तरह की बातचीत के अपने फेसले पर अडी हुई है। मधेश में दो राज्य बनाने की बात थी, लेकिन भारत की सीमा से सटे एक कडी में लगे आठ जिलों का एक प्रदेश बनाया गया है। मधेश के बांकी जिलों को छह भाग में बांट कर पहाडी राज्यों में शामिल कर दिया गया है। जनजातीय बहुल थरूहट को अलग प्रदेश नहीं बनाया गया। नेपाल की आबादी तो महज तीन करोड है। ऐसे में जब वहां लाखों लोग एक महीने से सडक पर थे तो उन लोगों से संवाद कर उनका भरोसा जीतने की पहल न करना, क्या नेपाल के शासन पर काबिज लोगों की बडी चूक नहीं है। और हालात अगर ऐसे ही बने रहे तो क्या नेपाल की सरकार शासन कर पाएगी? नेपाल में किसी तरह की अस्थिरता हो, भारत के सीमावर्ती राज्यों समेत पूरे देश को उसकी आंच सहनी ही पडती है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और पश्चिम बंगाल का नेपाल से न केवल बेटी-रोटी का रिश्ता है, बल्कि भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ता भी है। नेपाल की आग सिर्फ मधेशियों तक सीमित नहीं है। आदिवासी थारू और दलित समाज भी ठगा महसूस कर रहा है।

बहरहाल, नेपाल में भारतीय मूल के लोगों को हाशिये पर रखने के प्रबंध तो कर लिए गए हैं, लेकिन जो हालात बने हैं, उससे नहीं लगता कि मधेश और थरूहट की आग को नेपाल का शासन सेना और पुलिस के बलबूते दबा पाएगा। नेपाल में शांति बहाली के लिए जरूरी है कि वहां की सरकार मधेशी और जनजातीय समुदाय की भावना की कद्र करते हुए बातचीत से समस्या का समाधान निकाले। बिना बातचीत के समस्या का समाधान नहीं हो सकता।




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