• Subscribe Us

logo
03 मई 2024
03 मई 2024

विज्ञापन
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।
Uttar pradesh

देवरिया में एक एक कर टूटते गये किसानों के सपने, बंद पड़ी चीनी मिलें सरकार की नाकामी का सबूत

Posted on: Thu, 21, Mar 2024 10:09 AM (IST)
देवरिया में एक एक कर टूटते गये किसानों के सपने, बंद पड़ी चीनी मिलें सरकार की नाकामी का सबूत

देवरिया, ब्यूरो (ओ पी श्रीवास्तव)। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में गन्ना उत्पादन यहां के किसानों के लिए आय का मुख्य स्रोत रहा है। लेकिन जैसे जैसे चीनी मिलें बन्द होती गई गन्ने की खेती भी बन्द होती गई। साथ ही गन्ना किसानों का गन्ने के बलबूते संजोए गए सपने भी टूटते गए। यहा यह उल्लेख करना समीचीन एवं उचित प्रतीत होता है कि जब भी चुनाव का समय आता है जिले के गन्ना किसानों का जख्म उभर जाता है।

वे राजनीतिक दलों से चीनी मिल चलाने हेतु गुहार लगाते हुए नजर आते हैं। यहां का गन्ना किसान अपना गन्ना बेचकर बिटियों की शादी, बच्चों की पढ़ाई के अलावा तमाम खर्चों का बोझ उठाते थे। एक तरह से चीनी मिलों के बंद होने के साथ ही गन्ना किसानों के तरक्की के द्वार बंद भी होते गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब भी देवरिया में सभा करते हैं, गन्ना किसानों के दर्द पर मरहम लगाने का प्रयास करते हुए शुगर काम्प्लेक्स बनाए जाने का वादा करते हैं। परन्तु डबल इंजन की सरकार बनने के बाद भी मिलों की चिमनियां ठंडी पड़ी हैं।

सन 90 के दशक में जिले में 14 चीनी मिलों की चिमनियां धधकती थीं। उस समय कुशीनगर भी देवरिया का हिस्सा हुआ करता था। 1993 में कुशीनगर बना तो नौ मिलें कुशीनगर के हिस्से में चली गईं। देवरिया के हिस्से में आईं पांच चीनी मिलें। सरकार की बेरूखी के कारण कालान्तर में एक-एक कर चीनी मिलों के बंद होने का सिलसिला शुरू हो गया था। जिससे देवरिया की चार मिलों पर ताले लग गए। बसपा सरकार ने एक-एक-कर चीनी मिलों को बेचना शुरू कर दिया। 2011 तक सभी मिलों को औने-पौने दाम पर बेच दिया गया। खरीदारों ने भी मिलों को चलाने की जहमत नहीं उठाई।

देवरिया की चीनी मिल जहां थी वहां एक पूर्जे तक नहीं बचे हैं। बैतालपुर, गौरीबाजार व भटनी की मिल खंडहर बन गई है। भटनी चीनी मिल 2006-07 में चलाकर बंद कर दी गई। बसपा सरकार में भटनी की चीनी मिल को 28 मार्च 11 को महज पौने पांच करोड़ रुपये में हनीवेल शुगर्स प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली को बेंच दिया गया। जबकि जमीन की कीमत करीब 50 करोड़ रुपये और उसके उपकरणों की कीमत 60 करोड़ रुपये आंकी गई थी। गौरीबाजार चीनी मिल कभी कपड़ा मंत्रालय की मिल हुआ करती थी। इसे 1996-97 में बंद कर दिया गया।

मिल को चालू कराने के लिए स्थानीय गन्ना किसानों ने लंबे समय तक आंदोलन किया, लेकिन उनकी आवाज शासन सत्ता के कानों तक नहीं पहुंच सकी। गौरीबाजार चीनी मिल को 2011 में राजेंद्रा प्राईवेट इस्पात लिमिटेड कोलकाता को बेच दिया गया। बैतालपुर चीनी मिल को 2007-08 में बंद कर दिया गया। इसे डायनामिक सुगर प्राइवेट लिमिटेड उन्नाव ने वर्ष 2011 में खरीदा। इसी तरह देवरिया चीनी मिल 2006-07 में बंद हो गई। इसे आइकान सुगर मिल प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली के हाथों 2011 में बेच दिया गया। देवरिया जिले में एकमात्र बची है प्रतापुर चीनी मिल जिसे सन 1903 में स्थापित की गई थी।

वर्तमान समय में एशिया की सबसे पुरानी चीनी मिल प्रतापपुर ही चल रही है। इस पर भी बीच-बीच में संकट के बादल मंडराते रहते हैं। 1993 से पहले देवरिया-कुशीनगर में देवरिया, बैतालपुर, गौरीबाजार, प्रतापपुर, भटनी, रामकोला पी, रामकोला (के), कप्तानगंज, सेवरही, छितौनी, खड्डा, पड़रौना, कठकुइयां, लक्ष्मीगंज चीनी मिलें थी। चीनी मिलों की बदहाली का असर गन्ने की उत्पादन एवं खेती पर साफ दिख रहा है। जब सभी चीनी मिलें चलती थी तो देवरिया जिले में ही गन्ने का रकबा करीब 40 हजार हेक्टेयर था। अब यह घटकर दस हजार से भी कम हो गया है। गन्ने का रकबा घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ा है। सूखे और बाढ़ से जूझ रही धान-गेहूं की संयुक्त खेती अक्सर किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। किसान अब उतनी आय नहीं कर पा रहे, जितना गन्ने की एक खेती से साल भर में कर लेते थे।




ब्रेकिंग न्यूज
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।