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दंत चिकित्सक के व्यवहार से मरीज परेशानी में....

Posted on: Mon, 21, Sep 2015 1:53 PM (IST)
दंत चिकित्सक के व्यवहार से मरीज परेशानी में....

दन्त चिकित्सकों की टरकाऊ नीति और अभद्र व्यवहार से मरीज परेशान

अम्बेडकरनगर: (सत्यम सिंह) महात्मा ज्योतिबाफुले संयुक्त जिला चिकित्सालय की दन्त इकाई में बैठने वाले दन्त चिकित्सकों व सर्जन की टरकाऊ नीति से दांत की समस्या से ग्रस्त मरीजों को दिक्कतें पेश आ रही हैं। मरीजों का कहना है कि दन्त ईकाई में बैठने वाले दन्त चिकित्सक मरीजों को न तो ठीक से देखते हैं और न ही उनकी समस्या को सुनना गंवारा करते हैं। दांतों की किसी भी समस्या से पीड़ित लोग इन चिकित्सकों के दुर्व्यवहार के कारण यहाँ आने से कतराने लगे हैं। कई मरीजों ने बताया कि यहाँ के दन्त चिकित्सक व सर्जन मरीजों के साथ जानवरों की तरह पेश आते हैं। ये लोग किसी भी दांत के मरीज को देखना नहीं चाहते हैं। दाँत दर्द से पीड़ित या हिलते हुए दाँतों को यदि कोई जिला अस्पताल में निकलवाना चाहे तो उसे इसके लिए काफी पापड़ बेलना पड़ता है।

दन्त सर्जन दांत निकालने में आना-कानी करके मरीजों को टरकाते रहते हैं। चाहे कोई मरीज दांत दर्द से कराहे या तड़पे फिर भी इनका रवैय्या वैसा ही होता है जैसे ‘‘भैंस के आगे बीन बजाना’’। 10 से 15 दिन की दवा लिखकर मरीजों को टाल देते हैं और कहते हैं कि इन दवाओं को खाओ अगर फिर भी समस्या न दूर हुई तो कभी आ जाना दांत निकाल देंगे। यदि कोई मरीज दांत की किसी समस्या से ग्रस्त हो अपना दांत तत्काल निकलवाना चाहे तो यह जिला अस्पताल में कदापि संभव नहीं है। कभी 15 दिन बाद आने का बहाना तो कभी फलां दिन ओटी रहती है तब आना दाँत निकलवाने कहकर मरीजों को टरकाया जाता है। जबकि दन्त इकाई में दाँत निकालने की सारी व्यवस्थाएँ हर वक्त मौजूद रहती हैं।

यही नहीं जिला अस्पताल की दन्त इकाई के चिकित्सको का अक्सर कमरे में न रहकर दूसरे कमरे में बैठकर गप्पबाजी करना भी मरीजों के लिए समस्या उत्पन्न करता है। मरीज दन्त चिकित्सकों को कहाँ, किस कमरे में ढूंढे वे समझ ही नहीं पाते हैं। कई मरीजों ने तो यहाँ तक बताया कि दन्त इकाई के डेन्टिस्टों द्वारा दांतों को निकालने, दाँत की सफाई व दांतो में कैविटी (सड़न) की वजह से हुए गैप (खाली जगह) को भरने के नाम पर पैसों की मांग की जाती है। दांत की इसी तरह की समस्या से ग्रस्त एक महिला मरीज ने बताया कि जब वह अपने दांत के गैप को फिलअप कराने के लिए जिला अस्पताल गई तो वहाँ के एक दन्त चिकित्सक ने उसे टरकाते हुए बताया कि इसमें जो मसाला भरा जाता है वे विदेशों से महंगे दामों पर खरीद कर आता है। जिसे लगवाने का पैसा लगता है। कितना पैसा लगता है पूंछने पर उक्त चिकित्सक ने कहा कि जब लगवाना होगा तब बता देंगे, लेकिन इतना जान लो कि बिना पैसे के नहीं हो पायेगा।

उक्त चिकित्सक की बात सुनकर मरीज सन्न रह गयी? वह यह नहीं समझ पा रही थी कि दाँत में भरा जाने वाला मसाला सरकारी अस्पतालों के लिए सरकार द्वारा खरीदा जाता है या फिर उक्त चिकित्सक स्वयं खरीदते हैं जो इस तरह पैसों की मांग कर रहे हैं। यदि पैसा ही खर्च करना है तो सरकारी अस्पताल में निःशुल्क चिकित्सा का नारा कैसा? इससे बेहतर है पैसा खर्च करके प्राइवेट अस्पताल का सहारा ले लिया जाए। सिर्फ यही एक मरीज नही है जिसने अपना दर्द बयाँ किया बल्कि ऐसे प्रतिदिन न जाने कितने मरीज जिला अस्पताल की दन्त इकाई में आते और डेन्टिस्टों व डेन्टल सर्जनों की टरकाऊ बातों के अलावा उनके दुत्कार का शिकार होकर बैरंग वापस लौट जाते हैं। न चाहते हुए भी ये लोग (दांत के मरीज) अपना इलाज प्राइवेट दन्त चिकित्सकों से कराने को विवश हैं। ऐसे में मरीजों को प्राइवेट दन्त चिकित्सकों के पास जाकर अधिक पैसे तो खर्च करने ही पड़ रहे हैं, साथ ही कुछ अप्रशिक्षित चिकित्सकों के चंगुल में फंसकर तरह-तरह की अन्य समस्याओं का भी सामना करने को मजबूर हो रहे हैं।




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