सैकड़ों साल पुरानी है भस्म से होली खेलने की परंपरा
गाजीपुर व्यूरो (विकास राय) पौराणिक नगरी काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं और मुर्दों के बीच भस्म (राख) से होली खेलने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। सोमवार को यहां रंग भरी एकादशी के ठीक एक दिन बाद ये परंपरा एक बार फिर से निभाई गई।
वहीं, मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक एवम भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलशन कपूर ने बताया कि महादेव शिवरात्रि के दिन मां पार्वती संग विवाह के बाद रंग भरी एकादशी को गौना करा कर उन्हें साथ लेकर काशी आए थे। इसके एक दिन बाद शिव भक्त अपने बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलते रहे हैं। गुलशन कपूर के मुताबिक, इस दिन महादेव अपने प्रिय गण, भूत-प्रेत, पिशाच, दृश्य और अदृश्य शक्तियों के साथ महाश्मशान पर चिता भस्म की होली खेलते हैं। काशी ही एक मात्र ऐसी जगह है, जहां मौत को भी मंगल माना जाता है। यहां स्थानीय लोगों के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों ने भी भस्म होली खेली। इस दौरान ढोल-मृदंग बजाते हुए भक्तों ने फगुआ के गीत गाने भी गाए।