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बीएचयू को दान किया मालिनी ने अपनी तनख्वाह

Posted on: Sun, 24, Dec 2017 9:30 AM (IST)
बीएचयू को दान किया मालिनी ने अपनी तनख्वाह

काशीः (विकास राय) घुंघट पिछड़ापन का प्रतीक नहीं है। यह भारतीय नारी की सांस्कृतिक धरोहर है। यह लोक परंपराओं में नारी की सशक्त स्वरुप का परिचायक भी है। नारी सशक्त तब है जब वह कंधे से कंधा मिलाकर परिवार के साथ चले।

आज की पीढ़ी सशक्तिकरण का मतलब व्यक्तिगत समझती है। समिष्टि का भाव जिस नारी के अन्दर होगा वही सशक्त होगी। यह बात शनिवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारत अध्ययन केन्द्र की ओर से आयोजित “लोकगीतों में स्त्री सशक्तिकरण के स्वर“ विषयक विशिष्ट व्याख्यान में बीएचयू भारत अध्ययन केन्द्र की चेयर प्रोफेसर लोक कोकिला पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कही। उन्होंने कहा कि जितनी सशक्त स्त्री हमारी पुरखों के काल में थी उतनी आज नहीं है। हमें स्त्री सशक्तिकरण की अवधारणा को अपनी माँ और दादी के जीवन चरित्रों के माध्यम से ही समझना होगा। उनके त्याग और प्रतीक्षा में भारत का समूचा आदर्श समाया हुआ है। भारत को समझने के लिए हमें स्त्री को समझना होगा और स्त्री को समझने के लिए लोक को समझना होगा और लोक लोकगीत में समाया हुआ है।

लोक कोकिला ने कहा कि भारतीय नारी की सशक्त उदाहरण के रूप में सीता हमारे सम्मुख वाल्मीकि की सीता, तुलसी की सीता अन्यान्य लेखकों की रचना में उभरी है किन्तु सीता का सर्वाधिक सशक्त स्वरूप तो लोकगीतों में ही उभरा है। अनपढ़ स्त्रियों ने सीता के सशक्त चरित्र को अपने अनगढ़ गीतों में अपनी सशक्त चेतना के साथ गढ़ा है। मातृत्व के माध्यम से स्त्री सशक्तिकरण की चर्चा करते हुए मालिनी जी ने कहा कि लोकगीत में स्त्री को जन्म देने और जन्म के निमित्त का भी अधिकार प्राप्त है। लोकगीतों के महत्त्व को स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि हमें पुराणों के साथ लोकगीतों को भी इतिहास मानना चाहिए क्योंकि हमारे यहाँ इतिहास लेखन की परम्परा नहीं रही है। भारतीय इतिहास तो इन पुराणों और लोकगीतों में समाया हुआ है।

बीएचयू को, बेटियों खातिर मालिनी ने दान किया अपनी तनख्वाह..

बीएचयू विशिष्ट व्याख्यान में पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि शताब्दी चेयर प्रोफेसर के रुप में 5 वर्ष के लिए मेरी नियुक्ति महामना की तपोभूमि में हुई है। बीएचयू से मुझे मिलने वाली प्रतिमाह 1 लाख रुपये की धनराशि को मैने बीएचयू को ही दान कर दिया। इस आशय का मैने पत्र भी विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप दिया है। उन्होंने बताया कि इस धनराशि से लोक विद्या में उल्लेखनीय कार्य करने वाली बेटियों को छात्रवृत्ति दी जायेगी। समारोह की अध्यक्षता करते हुये प्रख्यात लोक गीतकार पं. हरिराम द्विवेदी ने कहा कि हर अंचल की तस्वीर में आकार वहाँ के लोकगीतों में समाया हुआ है। लोकगीतों की भाषा लोक से ही आती है उसे हम अलग से गढ़ नहीं सकते। मातृत्व के कारण ही स्त्री प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट रचना है। स्त्री लोकमर्यादा को निभाते हुए पूरे समाज को एक सूत्र में बाँधती है।

अतिथियों का स्वागत प्रो. राकेश उपाध्याय ने किया। मंगलाचरण डॉ. पल्लवी त्रिवेदी, कुलगीत सुश्री नीतू तिवारी ने प्रस्तुत किया। संचालन डॉ. अमित कुमार पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन समन्वयक प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने दिया। इस अवसर पर अंबेडकर चेयर के प्रो. मंजीत चतुर्वेदी, भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रो. राजावशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो. चन्द्रभूषण झा, प्रो. रामवचन मिश्रा, प्रो. कृपाशंकर ओझा, प्रो. मंजूला चतुर्वेदी, डॉ. अवधेश दीक्षित, डॉ. मलय कुमार झा, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. ज्ञानेन्द्र राय, दिग्विजय, रामप्रवेश चैहान, जितेन्द्र, संजय आदि उपस्थित रहे।




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