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Uttar pradesh

अंधता निवारण के नाम पर अंदाजिया हो रहा इलाज

Posted on: Fri, 27, Dec 2019 11:19 AM (IST)
अंधता निवारण के नाम पर अंदाजिया हो रहा इलाज

रायबरेली ब्यूरोः (आकाश अग्निहोत्री) सरकार की मंशा का पलीता और लोगो की दृष्टि से खिलवाड़ करने का मामला सदर जिला अस्पताल राणा बेनी माधव जिला अस्पताल से सामने निकलकर आया है, यहां डॉक्टरों की कारगुजारी वाकई चौकाने वाली है। आपरेशन के नाम पर मरीजो की आंखों से खिलवाड़ बदस्तूर जारी है। अच्छा आप ही तय कीजिये कि यदि किसी को दृष्टि दोष है तो उसे परीक्षण करने के क्या मानक होंगे।

निश्चित आप कहेंगे कि मरीज की आंखों का परीक्षण कुशल मशीनों के द्वारा कराया जाना चाहिए, जब सरकार करोड़ो के बजट पास कर रही है कि अंधता से निजात मिले, जिसके लिए सरकार आपरेशन से लेकर पूरे खर्चे स्वयं पास किये जा रही है कि गुणवत्ता पूर्ण इलाज कर अंधता का निवारण किया जाए, लेकिन सरकार की मंशा के पलट रायबरेली के डॉक्टर अंदाज से मोतियाबिंद का ऑपरेशन कर लेंस लगा दे रहे है, और यह क्रम बदस्तूर जारी है और अफसर मौन है, गरीब मरीज यह सोच अस्पताल का रुख कर रहे है कि उन्हें अंधता से निजात मिलेगी उनके पीछे कितना बड़ा कारनामा यह डॉक्टर कर रहे है शायद इसका अंदाजा नही है उन्हें, कि इस लापरवाही से किसी का जीवन भर अंधकार मय हो सकता है। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है इस कारनामे की जानकारी न तो नोडल अधिकारी को है और न ही मुख्य चिकित्साधिकारी को है।

ऐसे में राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम का पलीता लगना तय है जब लेंस का नम्बर पता करने की मशीन ही नही है तो भला कैसे लगाया जा रहा है। अप्रैल 2018 से अब तक जिला अस्पताल में मोतियाबिद के लगभग 1100 ऑपरेशन किए जा चुके हैं। इन सभी मरीजों को अंदाज लगाकर लेंस लगा दिया गया। इसका कारण ये है कि यहां पर लेंस का नंबर तय करने के लिए न तो किरेटोमीटर मशीन है और न ही ए-स्कैन। किरेटोमीटर से आंख की काली पुतली (कार्निया) की नाप ली जाती है। इसी को जब ए-स्कैन मशीन में डाला जाता है तो मरीज को कितने नंबर का लेंस लगना है, उसकी जानकारी आ जाती है। चौंकाने वाली बात ये है कि यहां कई साल पहले ए-स्कैन मशीन आई, मगर पिछले दो साल से खराब पड़ी है। किरेटोमीटर मशीन तो आई ही नहीं।

बावजूद इसके, यहां सप्ताह में दो दिन आंखों के ऑपरेशन हो रहे हैं और मरीजों को लेंस लगाए जा रहे हैं। इस कारण ऑपरेशन के बाद अधिकांश मरीजों को गलत लेंस लगने की वजह से भारी चश्मा लगाना पड़ रहा है। इस वजह से उनकी आंखों की रोशनी पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। 2018-19 में राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत 825 और वित्तीय वर्ष 2019-20 में नवंबर तक 318 मोतियाबिद के ऑपरेशन किए जा चुके हैं। इस वर्ष यहां पांच नेत्र सर्जन हैं। प्रत्येक सर्जन को माह में 60 ऑपरेशन करने होते हैं। मगर, सिर्फ दो चिकित्सकों को छोड़ दें तो बाकी तीन डॉक्टरों ने आठ माह में आठ ऑपरेशन भी नहीं किए हैं। वही इस मसले सीएमएस डॉ. एनके श्रीवास्तव का कहना है कि ए-स्कैन मशीन और किरेटोमीटर बनने को गया है लेकिन कब गयी मशीनें बनने यह जानकारी साहब को नही थी, असल बात यह है कि सदर अस्पताल में सूत्रों के मुताबिक कीरेटोमीटर है ही नही।




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