मलिन बस्तियों में तबले के उस्ताद बना रहे हैं तबला सम्राट
वाराणसीः (विकास राय) ठोकरें गर लगी तो संभलता गया, दर्द के गांव ठहरा कई बार मैं, हर बदन ढांकता चल रहा इसलिए, तन न तरसे कभी एक “कफन“ के लिए। शायर की इसी पंक्तियों को चरितार्थ कर रहे हैं प्रख्यात तबला साधक पं. सुभाष कांति दास। दिल्ली के श्री करुणामयी मां शक्ति पीठ आश्रम में प्रख्यात तबला साधक श्री दास मलिन बस्तीयों के बच्चों और उनके माता-पिता को देश की सांस्कृतिक धारा में जोड़ने के लिए उन्हें शास्त्रीय संगीत के साथ ही तबला वादन में भी निपुण करने का बीड़ा उठाया है।
मलिन बस्ती के लड़के-लड़कियों की जिंदगी में अब तबले पर बस ताक-धिनक, धिन-धा सीखा रहे हैं। अपने गुरु पिता पं. सतीश चंन्द्र दास ओर से तबले की तालीम लेने वाले पं. सुभाष फर्रूखाबाद घराना और समर साह के बनारस घराने के तबला साधकों में नाम शुमार है। देश विदेश के प्रतिष्ठित मंचों के साथ ही नामचीन कलाकारों के साथ संगत कर चुके सुभाष कांति दास दर्जनों सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं। वाराणसी संगीत समारोह में शिरकत करने आये मलिन बस्ती के बच्चों को संगीत से जुड़ाव के बाबत सुभाष कांति दास ने बताया कि यह बात हमेशा उन्हें सालती रही की सामान्य लोगों के बच्चे स्कूलों में पढ़ने जाते है वहां संगीत के अलावा अन्य गतिविधियों की तालीम लेते हैं।
लेकिन मलिन बस्तियों के बच्चे इन सब से विवसता और अनुकूल मार्ग दर्शन के अभाव में समाज के मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाते है। यही कारण है कि उन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़कर तबले की निःशुल्क तालीम देकर सांस्कृतिक विरासत से उन्हें रुबरु करा रहे है। उन्होंने बताया कि मेरे दिल्ली के आश्रम में मलिन बस्ती के कुल 127 बच्चे तबले की तालीम ले रहे हैं। यह बच्चे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर एक साथ तबला वादन कर लोगों की वाहवाही लुटने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि तबले की बारिकियां सीखने वालों में लड़के-लड़कियों के साथ ही उनके माता-पिता की भी अब दिलचस्पी कम नही रह गई है।