नीतीश-पासवान-कुशवाहा की तिकड़ी, बदले हैं सुर
पटना (इंद्र भूषण कुमार) आरक्षण के मुद्दे को लेकर बिहार में राजनीति की एक नयी कड़ी बनती दिख रही है, या यूं कहें कि आने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के लिए मुद्दे तलाशे जा रहे है। इस बीच भाजपा के साथ रहकर छोटे दल अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के साथ ही रालोसपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं, जो आने वाले समय में आरक्षण के मुद्दे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ने का मैदान तैयार करते नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दो टूक कि कुछ भी हो, सांप्रदायिक ताकतों से कभी समझौता नहीं करेगे। उनकी इस तल्खी के साथ ही विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर केंद्र सरकार की ओर कड़ा रूख उनके बदले रूप का इशारा कर रहा है। वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती, पर 14 अप्रैल को हो रहे एक कार्यक्रम में देखने को मिल सकता है, जिसमें सीएम नीतीश, रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एक साथ एक मंच पर नजर आ सकते हैं। इससे पहले इन तीनों नेताओं ने एक-दूसरे से कई बार मुलाकात की है।
ऐसा भी माना जा रहा है ये नेता आम चुनाव में भाजपा पर दबाव बनाने की तैयारी में जुटे हैं। रविवार को पटना में नीतीश कुमार के साथ लगभग डेढ़ घंटे की मुलाकात के बाद रामविलास पासवान ने इस बात को भी साफ कर दिया कि हम सभी एनडीए का हिस्सा हैं और आगे भी रहेंगे। लोजपा सुप्रीमो ने कहा कि हमारी कोशिश होगी कि 2014 की स्थिति फिर से देश में बने और एनडीए की जीत हो। ऐसे में सवाल उठता है कि एनडीए के अंदर नीतीश और पासवान की गुटबंदी के सियासी मायने क्या हैं? एनडीए के घटक दलों के नेता भी ऑफ रिकॉर्ड लगातार इस बात का जिक्र करते हैं कि वाजपेयी सरकार वाली बात इस गठबंधन में नहीं है। बिहार में जातिगत राजनीति की बात करें तो नीतीश कुमार को राज्य में कुर्मी और कोयरी जातियों के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा कोयरी वोटबैंक पर पहले ही सेंध लगा चुके हैं। लेकिन अगर कुशवाहा भी नीतीश के साथ आते हैं तो कोयरी वोटबैंक और मजबूत होगा।
वैसे इन तीनों में भी दरार कम नहीं रही है। बता दें कि जब नीतीश कुमार ने पिछले चुनाव में दलितों पर मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए दलितों में महादलित की घोषणा की थी तो राम विलास पासवान ने इसका विरोध किया था। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार से समय-समय पर दूरी बनाते नजर आते हैं और मानव श्रृंखला में नीतीश के साथ नहीं, राजद के साथ नजर आते हैं। जाति की बात करें तो महादलित आयोग की सिफारिशों पर, 22 दलित जातियों में से 18 (धोबी, मुसहर, नट, डोम और अन्य) को महादलित का दर्जा दे दिया गया था। दलितों की कुल आबादी में इनकी संख्या 31 फीसदी के लगभग है। इतना ही नहीं चमार, पासी और धोबी को भी इसमें शामिल कर दिया था। अब सिर्फ पासवान (दुसाध) ही महादलित से बाहर हैं जिन्हें राम विलास पासवान का वोटबैंक कहा जाता है।
आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि पासवान और आरजेडी के बीच बातचीत चल रही है। पासवान एनडीए में रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं। हालांकि राम विलास पासवान ने इसपर सफाई देते हुए कहा है कि वह एनडीए को छोड़ने नहीं जा रहे हैं, लेकिन राजनीति में अब ऐसे दावों का बहुत ज्यादा महत्व नहीं रह गया है। इसके अलावा बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने पासवान का किसी और गठबंधन या पार्टी में शामिल होने की खबरों को सिरे से नकार दिया है। बीजेपी के नेता का कहना था कि 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के दिन हो रहे दलित अधिवेशन का निमंत्रण तो डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी को भी मिला है और वह भी उस अधिवेशन में शामिल होंगे। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह कोई अलग फ्रंट बनाएंगे।