विर्सजन के दर्द आज भी
सिलीगुड़ी (पवन शुक्ल) 11 सितंबर 2011 को सूर्य अस्तचल की ओर था, मोक्षदायिनी, महानंदा और तिस्ता शांत हो रही थी, लेकिन सब मोक्षदायिनी नदियों की ओर भाग रहे थे, समय था, सृष्टी के यांत्रिक वस्तुओं के निर्माता भगवान विश्वकर्मा के विर्सजन का। शाम ढलते ही 6.10 मिनट पर आये 6.9 की तीब्रता वाले भूकंप ने भगवान के जयकारे को हाहाकार में बदल दिया। धरती के हिलने की आज 7 वीं वर्षगांठ है। करीब 30 से 40 सेकेंड तक धरती हिलने में 76 लोग काल के गाल में समा गए। 18 सितंबर 2011 की रात कितनी भयानक थी।
संचार सेवा ठप, विद्युत आपूर्ति ठप और लोग घरों को छोड़ कर आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर हो गए। पूरी रात हाहाकार और अस्पतालों में भारी भीड़ के बीच लोगों को अपनों की तलश, जो मिला तो राहत, जो नही मिला उसका दर्द कितने लोग अपनों से बिछडे इसका आकलन अस्पतालों की चीख से समझ आ रहा था। सबसे अहम बात यह रही की सिक्किम को देश से जोडने वाली सडक एनएच 31 पर रंगपों से सेवक के बीच करीब 100 जगहों पर छोटा बड़ा भूस्खलन होने के कारण रास्ता पूरी तरह से ठप हो गया था। केन्द्र व राज्य सरकार ने रातों रात सेना की मदद ली और राहत बचाव शुरुआत की।
इन्द्र देव भी ले रहे परीक्षा
11 सितंबर 2011 दिन रविवार को आए भूकंप के बाद हो रही वर्षा के कारण राहत और बचाव कार्य में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, बावजूद इसके सेना के जवानों ने दुर्लभ जगहो से लोगों को बचाया था।