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Uttar pradesh

गृहस्थ आश्रम मुक्ति का खुला दरबार

Posted on: Sun, 01, Sep 2019 7:01 PM (IST)
गृहस्थ आश्रम मुक्ति का खुला दरबार

गाजीपुर व्यूरो (विकास राय) गृहस्थ आश्रम मुक्ति का खुला दरबार है। अपने परिवार में रहो। आराम से सोना, खाना और परिवार के सदस्यों के साथ जीवन बिताना। ऐसा तो कोई आश्रम ही नहीं। यह सिर्फ गृहस्थ आश्रम में ही उपलब्ध है। इसी लिए कहा गया है। इसमें किसी तरह का बंधन नहीं है। बस इतना करना है कि अपने काम भी करते रहो और भगवान को याद करते रहो।

ऋषियों ने इसमें इतनी छूट दी है, जैसे गलीचे पर मखमल की चादर बिछा दी गयी हो। यह बातें जीयर स्वामी जी महाराज ने चन्दौली जनपद के कैलावर गांव में अपने प्रवचन में कहीं। उन्होंने भागवत कथा के दौरान गृहस्थ आश्रम की मर्यादा का वर्णन किया। गृहस्थ के लिए कहा गया है आप शादी करें और संतान भी पैदा करें। इसके साथ घर में पहले अतिथि को भोजन दें। इसके बाद पिता, वृद्ध, छोटे बच्चों को खाना देने के बाद ही भोजन करें। इतना ही नहीं भोजन से पहले तीन तरह की बली देने को भी कहा गया है। जिसे आम भाषा में ग्रास निकालना भी कहते हैं। खाने से पहले कौवा, कुत्ता और गाय के लिए भोजन का कुछ हिस्सा निकालना चाहिए। लेकिन भोजन से पहले कौवा और कुत्ते को खाना खिला देना चाहिए।

इसके बाद स्वयं भोजन करें और उसके बाद गौ माता को भोजन दें। इसकी व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने कहा कि आज लोग मांस का भक्षण कर रहे हैं। जीव हत्या कर रहे है। ऐसा करने पर मानव के सभी पुण्य नष्ट हो जाते है। वह नरक का भागी होता है। भगवान ने जीवों का निर्माण प्रकृति के संतुलन के लिए किया है। मछली जल को स्वच्छ करती है। मुर्गा जमीन में मौजूद हानिकारक वायरस और जीवों को खाते हैं। सर्प वायु मंडल की जहरीली गैस को आहार बनाते हैं। इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को हवन करने को भी कहा गया है। हवन करने से वायुमंडल के विकार दूर होते हैं। स्वामी जी इन दिनों उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला अंतर्गत कैलावर गांव में प्रवास कर रहे हैं। जहां चातुर्मास व्रत चल रहा है।




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