छात्रों की आवाज दबाना चाहता है विश्वविद्यालय
प्रयागराज ब्यूरो (प्रिंस श्रीवास्तव) लोकतंत्र के महापर्व अर्थात लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान के दिन इलाहाबाद के समाचार पत्रों की ये खबर कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपने प्रांगण में लोकतंत्र की हत्या को आतुर है, ये बात विश्विद्यालय मे बैठे जिम्मेवार लोगों की लोकतांत्रिक चेतना को परिलक्षित करने के लिये पर्याप्त है। जिस दिन देश के करोंडो लोग मतदान के उत्सव में भागीदार होने को आतुर हैं।
उस दिन इस विश्वविद्यालय द्वारा लोकतंत्र की हत्या की यह घोषणा मन में अनेक सवाल पैदा करती है। पहला सवाल तो यह है कि अचानक ऐसा क्या हो गया की विश्वविद्यालय को ऐसा सोचने की जरुरत पड़ गई। जिस संस्थान के छात्रसंघ ने देश को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अनेको नेता दिये हो, वहाँ का छात्रसंघ आँख की किरकिरी क्यो बन गया है। पिछ्ले तीन वर्षों मे कुलपति महोदय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानियो और कुकर्मो का काला चिट्ठा अगर किसी ने जनता के सामने रखा तो वो छात्रसंघ ही तो था।
प्रवेश परीक्षा में हुई व्यापक धांधली, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से फीस वृद्धि, कुलपति के गुण्डे पालने का शौक, भीषण गर्मी मे हॉस्टल के विद्यार्थियों को सड़क पर कर देने और अगले वर्ष जनवरी तक आवंटित छात्रो को कमरा ना मिल पाने की लड़ाइयां छात्रसंघ ही लड़। छात्रसंघ भी अगर कुलपति साहब की हाँ में हाँ मिलाने लग जाये तो कुलपति महोदय की कृपा से लाखों के ठेके और फर्जी नियुक्तियाँ मिलनी तय हैं, और तब कुलपति साहब और उनके चाटुकारो और दलालों को छात्रसंघ उतना ही प्रिय होता जितना शिक्षक संघ है।