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12 मई 2024
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Uttar pradesh

बस्ती में विकास पुरूषों की भरमार, फिर भी समस्यायें हजार

Posted on: Sat, 20, Apr 2024 6:41 PM (IST)
बस्ती में विकास पुरूषों की भरमार, फिर भी समस्यायें हजार

बस्ती, 20 अप्रैल। जिले में विकास पुरूषों की भरमार है, लेकिन जनता बुनियादी समस्याओं के लिये तरस रही है। मोहल्लों में पसरी गंदगी, चोक नालियां, बंदरों का आतंक, बिजली तथा वाईफाई के तारों का मकड़जाल सड़कों पर टूटे फूटे डिवाइडर, फ्यूज लाइटें, उड़ती हुई धूल, डिवाइडर किनारे महीनों से जमी धूल, रोडवेज के निकट की पुलिया, बंद पड़े वाटरकूलर बस्ती शहर की पहचान बन गये हैं। विकास पुरूषों को ये समस्यायें नही दिखाई दे रही हैं। भारी भरकम टैक्स का बोझ और आसमान छूती महंगाई झेलने के बाद नागरिकों को चलने के लिये शुद्ध सड़कें, मोहल्लों में सुरक्षित जीवन जीने का अवसर नही मिल पा रहा है। अधिकारी हों या नेता सभी की संवेदनायें मर गयी हैं।

बता दें मालवीय रोड बस्ती जनपद मुख्यालय का प्रमुख मार्ग है। इसमें हजारों गड्ढे हैं, वर्षों से यही स्थिति है, दुर्घटनाओं में कई लोग जान गंवा चुके हैं, मुख्यमंत्री ने जनपद आगमन पर 04 अक्टूबर को ही रेलवे स्टेशन से सुबाष तिराहा तक सड़क के मरम्म्त की घोषणा की थी, दूसरे दिन डीएम अंद्रा वामसी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सड़क की मरम्मत के अनुमोदन की जानकारी दी थी। हैरानी है कि मुख्यमंत्री के कहने के बावजूद यहां के जनप्रतिनिधि पहल करके सड़क की मरम्मत नही करा पाये।

इसे किसकी लापरवाही कही जाये, सांसद, विधायक, नगरपालिका अध्यक्ष या जिलाधिकारी की या फिर जनता की जिसने सड़कों पर उतरकर इनका जीना हराम नही किया। दूसरी ओर झुण्ड के झुण्ड बंदरों ने गली मोहल्लों में राह चलना मुश्किल कर दिया है। अक्सर महिलाओं और बच्चों को रास्ते में रूककर बंदरों के हटने का इंतजार करते देखा जाता है। बंदरों का इतना आतंक इतना है कि लाखों करोड़ों रूपये की लागत से मकान बनवाकर लोग छतों पर नही जा पाते, अनाज कपड़े नही सुखा पाते और न ही स्वच्छन्द होकर बरामदे, लॉन में बैठकर खुली हवा में सांस ले पाते हैं।

बंदरों के हमले से अनकों लोग घायल हो चुके हैं, कइयों का अभी तक इलाज चल रहा है। ट्राफिक लाइटें जहां भी लगी थीं वर्षों से खराब पड़ी हैं, फौव्वारे बंद पड़े हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद कसौधन बिरादरी को जाति प्रमाण पत्र नही दिये गये। लेकिन अंधभक्तों के ये सारी बातें मजाक लगती हैं और नेता समझते हैं कि बिना ये सारे काम किये हम रिकार्ड मतों से चुनाव जीत जाते हैं तो फिर ये सब करने की क्या जरूरत है। अगर ये सही है तो सारी गलती जनता की मानी जानी चाहिये जो समय पर इन अफसरों और नेताओं को सबक नही सिखा पाती। फिलहाल एक पत्रकार को जो करना चाहिये उसे हम करते रहेंगे आप बेशक अपनी जिम्मेदारियां समझें या न समझें।




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