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टीचरों का दर्द कौन सुनेगा ?

Posted on: Fri, 29, May 2020 8:53 AM (IST)
टीचरों का दर्द कौन सुनेगा ?

मऊ (सईदुज्ज़फर) कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते जहाँ प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है वहीं बच्चों का भविष्य संवारने वाले टीचरों का भविष्य वेतन ना मिलने के कारण अंधकारमय होता नज़र आ रहा है। लॉकडाउन के कारण स्कूल प्रबंधकों ने इन्हें वेतन नहीं दिया जबकि अधिकतर स्कूल वाले घर बैठे टीचरों की सेवाएं आनलाईन क्लासेज चलाकर ले रहे हैं।

प्रतिदिन यह टीचर्स वीडियो और फोटो के माध्यम से व्हाट्सएप ग्रुप से बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन फिर भी इनके सामने वेतन को लेकर समस्याएं पैदा हो गई हैं क्योंकि बहुत से शिक्षकों की आजीविका का माध्यम सिर्फ अध्यापन ही है। कुछ स्कूल कालेजों ने तो लाकडाउन से लेकर अब तक टीचरों को फूटी कौड़ी भी नहीं दी है। लेकिन प्राईवेट टीचर्स अपनी नौकरी खोने के डर से चुप्पी साधे हुए हैं। एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ा रही कुछ शिक्षिकाओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमें जनवरी माह का वेतन फरवरी माह में मिला था, जबकि फरवरी माह का वेतन मार्च में मिलना था इस बीच देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई तब से लेकर अब मई समाप्त होने को है अब तक एक रूपया भी स्कूल की तरफ से नहीं दिया गया।

जबकि इस लाकडाउन के बीच आनलाईन क्लासेज के माध्यम से यह अपनी सेवाएं देती रही हैं और वीडियो बनाकर यह बच्चों को पढ़ाती रही हैं आगे इन शिक्षिकाओं ने बताया कि लॉकडाउन से पहले हम लोगों से एडमिशन के लिए डोर टू डोर विजिट करवाया गया। इसके बाद भी फरवरी से लेकर अब तक वेतन नहीं दिया गया। ईद का पर्व होने पर जब इन लोगों ने स्कूल मैनेजमेंट से वेतन की मांग की तो इन्हें पढ़ाई के लिए बनाये व्हाट्सएप ग्रुप से ही बाहर कर दिया गया और फोन करने पर फोन भी नहीं उठ रहा, ऐसे में इन लोगों ने किसी तरह ईद का त्योहार तो गुज़ारा लेकिन अब इन लोगों का वेतन कैसे मिलेगा ये बड़ा सवाल है।

इन अध्यापिकाओं का कहना है कि अब स्कूल खुलने पर ही हम लोग स्कूल जाकर वेतन की मांग करेंगे। ऐसे में हम लोगों की नौकरी का भी सवाल है। अगर स्कूल मैनेजमेंट किसी तरह की आनाकानी करेगा तो हम लिखित रूप से जिला विद्यालय निरीक्षक, जिलाधिकारी व मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल तक अपनी शिकायत पहुंचाएंगे। इस बारे में जिला विद्यालय निरीक्षक मऊ डा राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि जब तक मुझ तक शिकायतें नहीं पहुंचेगी, हम किस आधार पर कार्रवाई करें। प्रबंधकों को नैतिकता और मानवता के आधार पर स्वयं शिक्षकों की मदद में आगे आना चाहिए। इस तरह देखा जाए तो जिला प्रशासन के आंकड़ों में भले ही टीचर्स खुशहाल हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और बयान कर रही हैं। टीचर्स इसलिये खामोश हैं कि कहीं वेतन मांगने और शिकायत करने पर अपनी नौकरी से हाथ ना धोना पड़े।




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