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कृषि/बागवानी

डिग्री एमबीए, पेशा फूलों की खेती, आमदनी लाखों में

Posted on: Wed, 29, May 2019 11:23 PM (IST)
डिग्री एमबीए, पेशा फूलों की खेती, आमदनी लाखों में

बाजार में अब वर्ष भर गेंदा के फूलों की डिमांड रहती है। त्योहारों पर प्रतिष्ठानों या घरों की सजावट करनी हो, या फिर वैवाहिक कार्यक्रम हों, बिना फूलों के पूरे नहीं हो सकते, वहीं मंदिरों पर पूजन के लिए भी फूलों की जरूरत रहती है। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में भी फूलों की मांग बनी रहती है। ऐसे में गेंदा की खेती करना काफी फायदे का सौदा है। एमबीए के बाद चार साल नौकरी करने के बाद जब एक नौजवान गाँव में फूलों की खेती करने लौटा तो सभी चकित रह गये। घर के लोगों ने भी विरोध किया। नतीजा ये हुआ कि आज वही नौजवान मैनपुरी जिले का सबसे बड़े फूल उत्पादक किसान बन गया। करने की लगन हो और इच्छाशक्ति हो

तो हर मुश्किल आसान हो जाती हैं और सफलता खुद मेहलतकश इंसान के घर का पता ढूढ़ लेती है। मैनपुरी ज़िले के सुल्तानगंज ब्लॉक के पद्मपुर छिबकरिया के रहने वाले रवि पाल (27 वर्ष) एक साल पहले तक नोएडा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। मगर अब रवि अपने गाँव में वापस आकर गेंदे के फूलों की खेती करने लगे हैं। दो बीघे में खेती शुरू करने वाले रवि ने इस बार 20 बीघा खेत में गेंदा लगाया है। खास बात ये है कि गेंदे की फसल को जानवर खराब नहीं करते, और इसी को अपनी ताकत समझकर उन्होने नौकरी छोड़ दी और फूल उगाने लगे। गाँव वापस आने के बारे में रवि बताते हैं, ‘‘हमारे गाँव में नीलगाय का बहुत आतंक है।

हर साल नीलगाय हमारे तरफ सैकड़ों बीघा खेत बर्बाद कर देते हैं। मुझे पता चला कि गेंदे की फसल को नीलगाय और दूसरे जानवर खराब नहीं करते हैं।’’ वो आगे कहते हैं, ‘‘बस तभी से घर आ गया और दो बीघा खेत में गेंदे के पौधे लगा दिए। इसकी सबसे अच्छी खासियत है ढाई-तीन महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है।’’नौकरी करने से ज्यादा अच्छा किसान बनकर लगा। रवि के खेत से कई क्विंटल गेंदा मैनपुरी जिले में जाने लगा। दूर से भी डिमांड आने लगी। अभी इससे कई गुना ज्यादा गेंदा का उत्पादन होगा। दस दिनों में फूल तोड़ने लायक हो जाते हैं। मैनपुरी ज़िले में ये पहला उदाहरण है, जब कोई एमबीए जैसी डिग्री वाला किसान हो। साल 2011 में एमबीए करने के बाद रवि पाल ने एलएनटी और कोटेक महिन्द्रा जैसी कंपनियों में नौकरी की है। रवि इस बारे में कहते हैं, ‘‘मुझे इन नौकरियों में इतना अच्छा नहीं लगा, जितना किसान बन कर।

अब मुझसे मिलने ज़िले भर के किसानों के अलावा दूसरे ज़िलों के भी किसान आते हैं।’’ ढाई-तीन हजार लागत में 40-50 हजार की आमदनी एक बीघा गेंदा लगाने से होती है। नर्सरी लगाने से लेकर खाद तक में प्रति बीघा ढाई से तीन हजार रुपए की लागत आती है। उसी खेती में 40 से 50 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। रवि की प्रेरणा से दूसरे किसान भी लाभ कमाने लगे।रवि दूसरे किसानों को भी गेंदा की खेती की जानकारी दे रहे हैं। अब रवि के खेतों से फूल आगरा, कानपुर और दिल्ली के फूल मंडी में जाता है। रवि अपने जिले के दूसरे किसानों को भी गेंदा की फूलों की खेती करा रहे हैं। जिले के कछपोरा, बहादुरपुर, मधाऊ, मंगलाझाला जैसे गाँवों के 12 और भी किसान गेंदा की खेती कर रहे हैं। जिलाधिकारी ने रवि को सम्मानित भी किया।

अब उसे सैकड़ों किसान जुड़ गए हैं। रवि फूलों के बीज थाईलैंड और कोलकाता से मंगाते हैं। रवि ने गर्मी वाली फसल के लिए थाइलैंड से गेंदे के बीज मंगाकर बाग लगायी थी। कहते हैं, ‘‘पिछली बार थाईलैंड से गेंदे के कुछ बीज मंगाए थे, अपने यहां के गेंदे के फूल तीन-चार महीने तक फूल देते हैं, जबकि थाईलैंड के गेंदे के पौधे 12 महीने फूल देते हैं। थाईलैंड से मंगाए गेंदों को बुके में भी लगा सकते हैं।’’ इस बार सर्दी की फसल में रवि ने कलकत्तिया और जाफरी किस्म का गेंदा लगाया है। रवि बताते हैं गेहूं धान जैसी फसलों से इसमें अधिक कमाई होती है। “ज्यादातर किसान धान, गेहूं, मक्का जैसी परंपरागत फसलों की खेती करते हैं जिसमे में उतना फायदा नहीं होता है, जितना हम किसान फूलों की खेती से कमा रहे हैं।“


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